यूं ही नहीं पक गयी खिचड़ी.....

Update:2017-11-09 11:24 IST
मुगल बादशाह अकबर के जमाने में भले ही बीरबल की खिचड़ी न पक पाई हो पर हमारे वर्तमान राजनैतिक परिवेश में ऐसी खिचड़ी पकी कि वह ब्रांड इंडिया बन गयी। गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में खिचड़ी का नाम दर्ज हो गया है।
आमतौर पर खिचड़ी बीमार लोगों को पथ्य के रुप में खाने को खिचड़ी दी जाती है। हालांकि खिचड़ी के ऐतिहासिक और पौराणिक साक्ष्य मौजूद हैं। विष्णु पुराण में इसका उल्लेख है। इसमें यह भी कहा गया है कि स्वयं भगवान विष्णु ने खिचड़ी खाई, सराहा और इसे सुपाच्य बताया था। यूनान के शासक सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस ने भी खिचड़ी के बारे में लिखा है। इब्नबतूता ने भी अपने यात्रा संस्मरणों में खिचड़ी का जिक्र किया है लेकिन उन्हें मूंग के दाल वाली खिचड़ी खाने को मिली थी, जिसे उन्होंने स्वादिष्ट बताया था। पंद्रहवीं शताब्दी में भारत आए रूसी यात्री अफानसीनि निकेतिन ने भी भारतीय उपमहाद्वीप में पकने वाली लोकप्रिय खिचड़ी का जिक्र किया है। अबुल फ़ज़ल ने ‘आइने अकबरी’ में सात तरह की खिचड़ी बनाने के तरीके दिए हैं। अकबर के बेटे जहांगीर को खिचड़ी बहुत पसंद थी। इसीलिए शाहजहांनी खिचड़ी भी बनाई और खाई जाती है। उसने इसे लाजवाब कहा था। शाहजहां ने मुगल दस्तरख्वान में खिचड़ी को शामिल किया था। हालांकि उसमें सूखे फल, सूखे मेवे, केसर, तेजपत्ता, जावित्री लौंग का इस्तेमाल किया जाता था। मुगलकाल में ही इस शाकाहारी व्यंजन मांसाहारी बनाया गया। उसे हलीम नाम दे दिया गया।
खिचड़ी शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के खिच्चा से हुई है। यह चावल और विभिन्न प्रकार की दाल से बनने वाला भोजन होता है। भारत में खिचड़ी खाने का मकरसंक्रांति पर्व ही मनाया जाता है। नाथ संप्रदाय के बीच इस पर्व का सबसे अधिक महत्व है। लोकमान्यता के मुताबिक खिलजी ने जब भारत पर आक्रमण किया था उस समय नाथ योगी उसका ड़टकर मुकाबला कर रहे थे। उन्हें भोजन पकाने का समय ही नहीं मिल पाता था। भूखे रहना पड़ता था। नतीजतन, नाथ संप्रदाय के बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जी को एक साथ पकाने का यह नुस्खा निकाला। इसीलिए इस संप्रदाय के मठों और मंदिरों पर खिचड़ी का पर्व बहुत उल्लास से मनाया जाता है। दक्षिण में पोंगल पर भी खिचड़ी खाए जाने की परंपरा है।
खिचड़ी का त्यौहार मनाने की तारीख तय है। यह 14 जनवरी को मनाई जाती है। जब सूर्य उत्तरायण की तरफ जा रहा होता है। आयुर्वेद के जनक माने जाने वाले धनवन्तरि ने भी सप्ताह में एक दिन खिचड़ी खाने की सलाह दी है। हिंदू धर्म में तो शनिवार को खिचड़ी खाने का विशेष महत्व है। उत्तर भारत में विवाह तब तक संपन्न नहीं माना जाता जब तक खिचड़ी खिलाने की रस्म पूरी न कर ली जाय। इस अवसर दी जाने वाली रस्मी गारी काफी मनभावन होती है।
खाने पीने की वस्तुओं में सबसे अधिक मुहावरे खिचड़ी के हिस्से में ही आते हैं। खिचड़ी भारतीय सांस्कृतिक एकता और विविधता दोनों की प्रतीक है। खिचड़ी पूंजीवाद और समाजवाद दोनों का पर्याय है। शासक से लेकर सेवक तक, अमीर से लेकर गरीब तक, शाकाहारी से लेकर मांसाहारी तक सबकी पसंद बन जाती है। सबने जीवन में एक बार खिचड़ी का स्वाद जरुर चखा होगा। खिचड़ी में आप अपनी दूसरी स्वादिष्ट चीजों को मिलाकर लुत्फ उठा सकते हैं। महाराष्ट्र में झींगा मछली ड़ालकर खिचड़ी बनाई जाती है। गुजरात के भरुच खिचड़ी में गेहूं से बने पतले सॉस, कढी पत्ता, जीरा और सरसों दाना मिलाया जाता है। विदेशों में दालों की जगह उबले अंडे और मछलियां मिला दी जाती हैं।
दुनिया भर में खिचड़ी को लोकप्रिय करने का श्रेय हरे कृष्ण बुक आफ वेजीटेरियन कुकिंग को जाता है जिसे हरे कृष्ण संप्रदाय ने प्रकाशित किया है। वैज्ञानिक दृष्टि से जब चावल और दाल को संतुलित मात्रा में मिलाकर पकाया जाता है तो एमीनो एसिड बनता है, जो शरीर के लिए बहुत जरुरी है। बीमार मरीजों को मूंग की दाल की खिचड़ी दी जाती है, क्योंकि यह अत्यधिक सुपाच्य होती है, ब्लड प्रेशर कंट्रोल करती है, कमजोरी दूर करती है और अतिरिक्त वजन घटाती है।
भारतीय खानपान के बहुत बड़े विद्वान रहे वाग्वट्ट ने कुछ चीजों के खाने और कुछ चीजों के न खाने का जिक्र किया है। कुछ के एक साथ न खाने का जिक्र किया है। उन्होंने कहा है कि दो ऐसी वस्तुएं एक साथ ऩ खाएं जिनके गुण एक दूसरे के खिलाफ हों। ऐसी 103 वस्तुओं की उन्होंने सूची दी है। उनका कहना है कि दूध और प्याज साथ खाएंगे तो त्वचा की बीमारी होगी। कटहल और दूध एक साथ न खाएँ, दूध के साथ सीट्रिक एसिड प्रधान वस्तुओं के खाने से बचें। इसमें संतरा और अंगूर आदि आते हैं। हालांकि आवंला इसका अपवाद है, उसमें सिट्रिक एसिड होता है, पर उसे दूध के साथ खा सकते है। खट्टा आम भी दूध के साथ खाना वर्जित है। दही बड़ा खाने से उन्होंने मना किया है। क्योंकि उडद की दाल और दही एक साथ खाना बीमारी को बुलाना है। अगर दही बड़ा खाना हो तो उसे मूंग की दाल का बनाना होगा। इसीलिए अगर आप उड़द के दाल की की खिचडी खा रहे हों तो दही साथ न खाएं। यदि बहुत अनिवार्य हो तो दही को बघार लें, छौंक लें। लोकोक्तियों में खिचड़ी के साथियों का जिक्र कुछ यूं है- खिचड़ी के चार यार- दही, पापड़, घी, अचार।

महाकवि कालीदास ने कहा है- ‘शरीरमाद्यं खलुधर्म साधनं।’ यानी शरीर से ही सारे धर्म-कर्म सधते हैं। भारतीय वांग्ड्मय ने शरीर मन और आत्मा इन तीनों की देखभाल के लिए अनुभव आधारित कई ज्ञान-परंपराएं हैं। कहा जाता है कि आचार-विचार आहार से बनते है। खिचड़ी एकमात्र ऐसा आहार है, जो शरीर को आचार को और विचार को सबको संतुलित और साधे रहने में सफल है क्योंकि  वह सुपाच्य है। वह हर तबके के लिए अलग-अलग आकार और प्रकार में है। भागदौड़ की इस वर्तमान जिंदगी में लोगों में सबसे ज्यादा चिंता और भय उनके स्वस्थ बने रहने की चुनौती है। खिचड़ी इस चुनौती को जीतने की शक्ति देती है। चार ब्रह्मसूत्र हैं तीसरा है- एको अहं, द्वितीयो नास्ति -



यानी ब्रह्म सर्वत्र एक ही है दूसरा नहीं। वृहदारण्यक उपनिषद् में कहा गया है- एकोहम् बहुस्याम्। यानी मैं एक हूं मैं अनेक हूं फिर एक हूं। खिचड़ी ब्रह्मसूत्र और वृददारण्य उपनिषद् दोनों के इन बहुप्रचलित वाक्यों की दार्शनिक व्याख्या भी है।
 
 

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