होली इकलौता ऐसा पर्व है जिसे लेकर सबसे अधिक दृश्य और गाने फिल्माए गए हैं। यह अवसर भारत के किसी भी पर्व को नहीं मिला है। ऐसा महज इसलिए नहीं कि होली के गानों वाली फिल्में हिट हुईं। होली के गाने लोगों की जुबां पर चढ़ गए। राजकपूर के आरके स्टूडियो को भी अच्छी कलात्मक कसी हुई समस्यापरक फिल्म बनाने के साथ ही साथ होली के लिए भी जाना जाता है। मुंबई में शायद ही ऐसा कोई हो जिसकी जुबान पर आरके स्टूडियो की होली न हो। होली की इस हैसियत की वजह होली में रंग, राग और फाग का होना है। बसंत के जिस कालखंड में होली होती है उसमें प्रकृति अपने रंग बिरंगे यौवन के साथ चरम अवस्था में होती है इसीलिए इसे वसंतोत्सव, मदनोत्सव या काम महोत्सव भी कहा जाता है। यह खुशी और उत्साह का उत्सव है। आनंद, मस्ती, नृत्य मदहोशी का महोत्सव है। इस पर आप घर में सब लोगों की जानकारी में कम से कम भांग तो छान ही सकते हैं। यह बिछुड़े हुए लोगों के मिलने का उत्सव है। आपके मन में किसी को लेकर जो भी गुबार भरा हो कबीरा सररर के साथ निकाल सकते हैं।
अंजान से जान पहचान का अवसर भी देती है होली किसी के गाल पर गुलाल लगाएंगे। तो गले मिलने का रास्ता खुल जाएगा। होली इतना अवसर देती है कि बाबा भी देवर लगने लगते हैं। सृष्टि राग और रंगों का खेल है। हर इंसान किसी ने किसी रंग में रंगा है। किसी न किसी राग में मस्त है। फागुन में सृष्टि के राग और रंगों का खेल शबाब पर होता है।
नारद पुराण, भविष्य पुराण, जेमिनी के पूर्व मीमांसा सूत्र कथा ग्राह्य सूत्र में भी होली का जिक्र है अलबरूनी ने अपने संस्मरण में इस पर्व का जिक्र किया है। मध्ययुगीन कालीन में कृष्ण लीला होली वर्णन से अटी पड़ी है। विजयनगर की राजधानी हम्पी के सोलवीं शताब्दी के चित्र फलक पर होली का चित्र मिलता है। फिल्मों के अलावा संस्कृत साहित्य और भोजपुरी होली के गीतों और कथाओं से अटी पड़ी है। हर्ष की प्रियदर्शिका और रत्नावली, कालिदास की कुमारसंभवम् तथा मालविकाग्नि मित्रम् में होली का खूब जिक्र मिलता है। उनकी किताब ऋतुसंहार का तो पूरा एक सर्ग वसंतोत्सव में समर्पित है। सूरदास ने बसंत और होली पर 78 पद लिखे हैं।
संगीत में धमार का होली से करीबी रिश्ता है। लगता है बाद में इसी धमार को धमाल मान लिया। नतीजतन होली धमा चौकड़ी और धमाल का पर्व बन गया। धमार के अलावा ध्रुपद छोटे व बड़े ख्याल तथा ठुमरी में भी होली के गीतों का सौंदर्य देखते बनता है। चैती दादरा और ठुमरी में भी खूब होली गाई जाती है। अनुराग-प्रीत, प्रेम-छेड़छाड़ भी होली के ही रंग हैं। शायद ही कोई ऐसा हो जिसकी जिंदगी में रंग की अहमियत न हो। कोई न कोई रंग या फिर कोई न कोई राग उसे प्रेरित संचालित उद्वीपित न करता हो। उसके संवेग न बढ़ाता हो। संवेग कभी तटस्थ नहीं होते हैं। रंगों ने तो अब धार्मिक और ज्योतिषीय अर्थ भी ग्रहण कर लिया हैं। 12 राशियां हैं रंग भी 12 ही होते हैं। होली लाल रंग से खेलने का चलन है। गुलाल भी लाल ही होता है। लेकिन जैसे जैसे आदमी की फितरत ने करवट बदली वह चेहरे की जगह मुखौटे लगाने लगा तबसे ही होली में नीले काले रंग और पेंट प्रयोग होने लगे। लाल रंग मानवीय चेतना में सबसे अधिक कंपन पैदा करता है। यह अपनी ओर सबसे ज्यादा ध्यान खींचता है। सूर्य लाल होता है। आप खुद जांचिए परखिए तो पता चलेगा कि जो चीजें आपके लिए महत्वपूर्ण हैं वह सब लाल हैं। मसलन आपका खून भी लाल है। होली राधा कृष्ण के रास कामदेव के पुनर्जन्म से जुड़ी है। होलिका और प्रह्लाद का रिश्ता है।
यह खुशी और सौभाग्य का उत्सव है क्योंकि किसान की फसल खेतों में लहलहा रही होती है। होली खुद पर हंसने का भी मौका देती है। दूसरों पर हंसने का मौका देती है। हास परिहास का अवसर मुहैया कराती है। उपहास को बुरा न मानने की प्रज्ञा देती है। विज्ञापन उद्योग इस उपहास का खूब इस्तेमाल करता है। विज्ञापन की बेहतरीन कैच लाइनें उपहासयुक्त होती हैं। उपहास अपनी प्रतिक्रिया में बेहतर हास्य नहीं पैदा कर पाता है तो खिसियाहट या गुस्सा पैदा करता है। यह मानव की अंतश्चेतना है। यह शरीर क्रिया विज्ञान भी है लेकिन होली का अवसर उपहास अंतश्चेतना और शरीर क्रिया विज्ञान के इस सिद्धांत को पलट कर रख देता है। यानी होली पर आप किसी का उपहास करते हैं तो खिसियाहट या गुस्सा नहीं आता है।
होली वसंत में होती है। जब पेड़ अपने सूखे पत्ते छोड़ चुके होते हैं पेड़ों पर नये कोमल पत्ते आकार ले रहे होते हैं। पेड़ों के पत्ते हमें आक्सीजन देते हैं।
शरद की समाप्ति पर्यावरण और शरीर में बैक्टीरिया बढ़ा देता है पर होलिका जलने से 145 डिग्री फारेनहाइट तापमान बढ़ता है जब लोग जलती होलिका की परिक्रमा करते हैं तब उसके जलने से निकलने वाला ताप शरीर और आसपास के वातावरण में मौजूद बैक्टीरिया को नष्ट कर देता है। जीवन में कड़वे की उपस्थिति के कारण ही मिठास का महत्व हम जान पाते हैं दोनो एक दूसरे के पूरक हैं इन दोनो के कारण ही जीवन का वास्तविक जायका है। होली इस वास्तविक जायके का संगम है। क्योंकि किसी के लिए जो कुछ आपके मन में होता है उसे इस उत्सव में बुरा न मानो होली है कहकर निकाल सकते हैं और जो चाहिए होता है उसे इस पर्व के मार्फत गले लगा सकते हैं। गुलाल लगा सकते हैं। उसे उसके मनचाहे रंगों से रंग सकते हैं। अपने लिए मनचाहे रंग चुन सकते हैं और किसी भी राग में मस्त होकर कह सकते हैं कबीरा सररर सररर..।
अंजान से जान पहचान का अवसर भी देती है होली किसी के गाल पर गुलाल लगाएंगे। तो गले मिलने का रास्ता खुल जाएगा। होली इतना अवसर देती है कि बाबा भी देवर लगने लगते हैं। सृष्टि राग और रंगों का खेल है। हर इंसान किसी ने किसी रंग में रंगा है। किसी न किसी राग में मस्त है। फागुन में सृष्टि के राग और रंगों का खेल शबाब पर होता है।
नारद पुराण, भविष्य पुराण, जेमिनी के पूर्व मीमांसा सूत्र कथा ग्राह्य सूत्र में भी होली का जिक्र है अलबरूनी ने अपने संस्मरण में इस पर्व का जिक्र किया है। मध्ययुगीन कालीन में कृष्ण लीला होली वर्णन से अटी पड़ी है। विजयनगर की राजधानी हम्पी के सोलवीं शताब्दी के चित्र फलक पर होली का चित्र मिलता है। फिल्मों के अलावा संस्कृत साहित्य और भोजपुरी होली के गीतों और कथाओं से अटी पड़ी है। हर्ष की प्रियदर्शिका और रत्नावली, कालिदास की कुमारसंभवम् तथा मालविकाग्नि मित्रम् में होली का खूब जिक्र मिलता है। उनकी किताब ऋतुसंहार का तो पूरा एक सर्ग वसंतोत्सव में समर्पित है। सूरदास ने बसंत और होली पर 78 पद लिखे हैं।
संगीत में धमार का होली से करीबी रिश्ता है। लगता है बाद में इसी धमार को धमाल मान लिया। नतीजतन होली धमा चौकड़ी और धमाल का पर्व बन गया। धमार के अलावा ध्रुपद छोटे व बड़े ख्याल तथा ठुमरी में भी होली के गीतों का सौंदर्य देखते बनता है। चैती दादरा और ठुमरी में भी खूब होली गाई जाती है। अनुराग-प्रीत, प्रेम-छेड़छाड़ भी होली के ही रंग हैं। शायद ही कोई ऐसा हो जिसकी जिंदगी में रंग की अहमियत न हो। कोई न कोई रंग या फिर कोई न कोई राग उसे प्रेरित संचालित उद्वीपित न करता हो। उसके संवेग न बढ़ाता हो। संवेग कभी तटस्थ नहीं होते हैं। रंगों ने तो अब धार्मिक और ज्योतिषीय अर्थ भी ग्रहण कर लिया हैं। 12 राशियां हैं रंग भी 12 ही होते हैं। होली लाल रंग से खेलने का चलन है। गुलाल भी लाल ही होता है। लेकिन जैसे जैसे आदमी की फितरत ने करवट बदली वह चेहरे की जगह मुखौटे लगाने लगा तबसे ही होली में नीले काले रंग और पेंट प्रयोग होने लगे। लाल रंग मानवीय चेतना में सबसे अधिक कंपन पैदा करता है। यह अपनी ओर सबसे ज्यादा ध्यान खींचता है। सूर्य लाल होता है। आप खुद जांचिए परखिए तो पता चलेगा कि जो चीजें आपके लिए महत्वपूर्ण हैं वह सब लाल हैं। मसलन आपका खून भी लाल है। होली राधा कृष्ण के रास कामदेव के पुनर्जन्म से जुड़ी है। होलिका और प्रह्लाद का रिश्ता है।
यह खुशी और सौभाग्य का उत्सव है क्योंकि किसान की फसल खेतों में लहलहा रही होती है। होली खुद पर हंसने का भी मौका देती है। दूसरों पर हंसने का मौका देती है। हास परिहास का अवसर मुहैया कराती है। उपहास को बुरा न मानने की प्रज्ञा देती है। विज्ञापन उद्योग इस उपहास का खूब इस्तेमाल करता है। विज्ञापन की बेहतरीन कैच लाइनें उपहासयुक्त होती हैं। उपहास अपनी प्रतिक्रिया में बेहतर हास्य नहीं पैदा कर पाता है तो खिसियाहट या गुस्सा पैदा करता है। यह मानव की अंतश्चेतना है। यह शरीर क्रिया विज्ञान भी है लेकिन होली का अवसर उपहास अंतश्चेतना और शरीर क्रिया विज्ञान के इस सिद्धांत को पलट कर रख देता है। यानी होली पर आप किसी का उपहास करते हैं तो खिसियाहट या गुस्सा नहीं आता है।
होली वसंत में होती है। जब पेड़ अपने सूखे पत्ते छोड़ चुके होते हैं पेड़ों पर नये कोमल पत्ते आकार ले रहे होते हैं। पेड़ों के पत्ते हमें आक्सीजन देते हैं।
शरद की समाप्ति पर्यावरण और शरीर में बैक्टीरिया बढ़ा देता है पर होलिका जलने से 145 डिग्री फारेनहाइट तापमान बढ़ता है जब लोग जलती होलिका की परिक्रमा करते हैं तब उसके जलने से निकलने वाला ताप शरीर और आसपास के वातावरण में मौजूद बैक्टीरिया को नष्ट कर देता है। जीवन में कड़वे की उपस्थिति के कारण ही मिठास का महत्व हम जान पाते हैं दोनो एक दूसरे के पूरक हैं इन दोनो के कारण ही जीवन का वास्तविक जायका है। होली इस वास्तविक जायके का संगम है। क्योंकि किसी के लिए जो कुछ आपके मन में होता है उसे इस उत्सव में बुरा न मानो होली है कहकर निकाल सकते हैं और जो चाहिए होता है उसे इस पर्व के मार्फत गले लगा सकते हैं। गुलाल लगा सकते हैं। उसे उसके मनचाहे रंगों से रंग सकते हैं। अपने लिए मनचाहे रंग चुन सकते हैं और किसी भी राग में मस्त होकर कह सकते हैं कबीरा सररर सररर..।