मोदी है तो मुमकिन है। सात अजूबे इस दुनिया में आठवीं इनकी जोड़ी। सावन के तीसरे सोमवार को नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने मिलकर इन दोनों कहावतों को सच साबित कर दिखाया। सावन देश के लिए खुशियों और उपलब्धियों की ऐसी बारिश लेकर आया है, जिससे मुट्ठीभर लोगों को छोड़ दिया जाए तो हर भारतवासी का मन गौरव से लहलहाने लगा है। पहले सोमवार को चंद्रयान-2 छोड़ा गया। दूसरे सोमवार को कु-प्रथा तीन तलाक का अंत हुआ। तीसरे सोमवार को देश के भव्यभाल पर लगा अनुच्छेद 370 का कलंक हमेशा के लिए मिटा दिया गया। जम्मू-कश्मीर और शेष भारत के लोग एक तरह के नागरिक हो गये।
अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर की उन महिलाओं के लिए भी गैर बराबरी जनता था, जो सूबे से बाहर निकाह कर लेती थीं। हालांकि पाकिस्तान के नागरिक से निकाह के बाद उसे जम्मू-कश्मीर में नागरिकता समेत सब हक हासिल हो जाते हैं। गृहमंत्री अमित शाह ने जैसे ही राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर को लेकर चार संकल्प पढ़े वैसे ही दोहरी नागरिकता का चलन बीते जमाने की बात हो गई।
जम्मू और कश्मीर ऐसे केंद्र शासित प्रदेश के रूप में तब्दील हो गये जिसकी अपनी विधानसभा होगी। लद्दाख में बीते 50 सालों से चली आ रही केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग को कुबूल किया गया। केंद्र की भाजपा सरकार ने जम्मू-कश्मीर को लेकर जो फैसले किए हैं वह उसके संकल्प पत्र का हिस्सा है। एक दल जो अपने शुरुआती काल में यह नारा देता हो- ‘जहां हुए बलिदान मुखर्जी वह कश्मीर हमारा है।‘
उन्होंने दो निशान और दो संविधान के सवाल पर जम्मू-कश्मीर में प्रदर्शन किया था। गिरफ्तार हुए। जेल में ही काल कवलित हो गये। ऐसे में जब वह पार्टी प्रचंड बहुमत के साथ दूसरी बार सत्ता में हो तो यह उम्मीद करना बेमानी नहीं होना चाहिए कि वह दो निशान और दो संविधान का खात्मा करे।
35-ए को जम्मू-कश्मीर विधानसभा की सहमति से 14 मई, 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने जोड़ा था। यह संसद में पारित नहीं है। इसको चुनौती देने वाली जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। हैरत है कि जब केंद्र ने जम्मू में 280 कंपनी पैरा मिलेट्री फोर्स तैनात किया, 20 साल में पहली बार अमरनाथ की यात्रा रोकी, बाहर के छात्रों को जम्मू से अपने राज्य लौटने का कहा, वायुसेना को सतर्क रहने की हिदायत दी, गृह मंत्रालय ने एडवाइजरी जारी की, इंटरनेट सेवाएं बाधित की गईं, राज्यों को अलर्ट किया गया आदि-इत्यादि।
लेकिन अटकलें बहुत लगीं पर हकीकत समझ नहीं पाए लोग। एक ऐसे समय जब पत्थरबाजों की फौज ने आतंकवाद का चेहरा बदल दिया हो। भाड़े पर पत्थरबाज और आतंकी तैयार किये जा रहे हों। आतंकवादियों के मारे जाने पर शौर्य से जनाजा उठाया जा रहा हो। बरसी मनाई जा रही हो। युवाओं को गुमराह करके हथियार थमाये जा रहे हों। आतंकवाद को धर्म की ढाल दी जा रही हो। पाकिस्तानी झंडे फहराये जा रहे हों। अलगावादियों को पाकिस्तान से धन मुहैया कराया जा रहा हो।
घर-घर में अफजल की बात कही जा रही हो। कश्मीरी पंडितों को जबरन बाहर कर दिया गया हो। मीरवाइज, उमर फारुख, यासिन मलिक, सैफुद्दीन सोज, अब्दुल गनी लोन, सैयद शाह गिलानी सरीखे अलगाववादी लोग पाकिस्तान की भाषा बोल रहे हों। फारुख अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती सरीखे नेता जम्हूरियत की आड़ में सिर्फ अपने हित देख रहे हों।
मजलिस-ए सूरा को पार्लियामेंट कहा जाता है। जम्मू-कश्मीर में वर्ष 14 से 18 तक सिर्फ 698 करोड़ रुपये का निवेश हो पाया हो। वह भी केवल 15-16 के वर्ष में। जबकि 297, 663, 979 और एक हजार आठ करोड़ रुपये का निवेश प्रस्तावित किया गया हो पर हुआ एक भी पैसे का न हो। बरसी मनाई जा रही हो। युवाओं को गुमराह करके हथियार थमाये जा रहे हों। आतंकवाद को धर्म की ढाल दी जा रही हो। पाकिस्तानी झंडे फहराये जा रहे हों। अलगावादियों को पाकिस्तान से धन मुहैया कराया जा रहा हो।
घर-घर में अफजल की बात कही जा रही हो। कश्मीरी पंडितों को जबरन बाहर कर दिया गया हो। मीरवाइज, उमर फारुख, यासिन मलिक, सैफुद्दीन सोज, अब्दुल गनी लोन, सैयद शाह गिलानी सरीखे अलगाववादी लोग पाकिस्तान की भाषा बोल रहे हों। फारुख अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती सरीखे नेता जम्हूरियत की आड़ में सिर्फ अपने हित देख रहे हों।
मजलिस-ए सूरा को पार्लियामेंट कहा जाता है। जम्मू-कश्मीर में वर्ष 14 से 18 तक सिर्फ 698 करोड़ रुपये का निवेश हो पाया हो। वह भी केवल 15-16 के वर्ष में। जबकि 297, 663, 979 और एक हजार आठ करोड़ रुपये का निवेश प्रस्तावित किया गया हो पर हुआ एक भी पैसे का न हो। जब जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था सिर्फ पर्यटन के सहारे चलाये जाने से बाहर हो गई हो। कश्मीर में 68.88 लाख, जम्मू में 53.78 लाख और लद्दाख में 2.74 लाख लोग निवास कर रहे हों। इनमें मुसलमानों की तादाद क्रमशः 96.40, 33.45, और 46.4 फीसदी हो। इस लिहाज सिर्फ तकरीबन एक करोड़ लोगों को खुश करने के लिए दो निशान, दो संविधान,
वह भी तब जब इसके साथ अस्थायी शब्द जुड़ा हो। आरटीआई, आरटीई और सीएजी जैसे कानून वहां लागू न होते हों? उच्चतम न्यायालय के आदेश मान्य न होते हों? देश के सभी विधानसभा और लोकसभा का कार्यकाल पांच साल का होता हो पर जम्मू-कश्मीर का छह साल का? दोहरी नागरिकात लागू हो? कश्मीर को छोड़ शेष भारत के लोग वहां जमीन न खरीद सकते हों? महिलाओं पर शरीयत कानून लागू होते हों? वहां भारत के राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध न होता हो? यही नहीं, देश के गैर जम्मू-कश्मीर इलाके के रहने वाले मुसलमानों के किसी भी मसायल से जम्मू-कश्मीर के मुसलमानों का कोई ताल्लुक न हो।
तब किसी भी राष्ट्रवादी सरकार की यह जिम्मेदारी बन जाती है कि आजादी के बाद से अब तक परेशान कश्मीर की जम्हूरियत को अमन चैन देने की दिशा में कठोर से कठोर कदम उठाये। भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार ने यही कर दिखाया है। इस पर शोर-शराबा मचना लाजिमी है। पर यह सब कुछ शोर सिर्फ एक करोड़ लोगों का है। उन लोगों का है जो कश्मीर के विशेष राज्य के नाम पर अपनी दुकान चला रहे थे।
धर्म निरपेक्षता और सांप्रदायिकता की लड़ाई कश्मीर के विशेष राज्य के दर्जे को लेकर फिर तेज किये जाने की कोशिश में राजनीतिक दल दिख रहे हैं। ऐसे में कश्मीर एक बार फिर कसौटी पर है। हालांकि वह रोज-रोज कसौटी पर रहता है। कभी पाकपरस्त आतंकवादियों की कसौटी पर। कभी पाकिस्तान की कसौटी पर। कभी शेष भारत के नागरिकों की उम्मीदों की कसौटी पर। कभी अलगाववादियों की कसौटी पर। कभी कश्मीर में कथित तौर पर जम्हूरियत की बहाली का दावा करने वाले राजनीतिक दलों की कसौटी पर।
अभी जम्मू-कश्मीर से छह सांसद आते हैं। जम्मू से 37, कश्मीर से 46 और लद्दाख से चार विधायक चुने जाते हैं। अनुच्छेद 370 के खात्मे। जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनाये जाने के बाद एक बार फिर से विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन की भी जरूरत है। जो लोग भी केंद्र सरकार के जम्मू-कश्मीर पर लिए गये फैसले के खिलाफ हैं उनकी मंशा यह चुंगली करती है कि वे कश्मीर और वहां के आवाम की समस्या का स्थाई और सार्थक रास्ता नहीं निकलने देना चाहिए।
अब सबको मिलकर यह कोशिश करनी चाहिए कि लगातार कसौटी पर कसे जाने की जम्मू-कश्मीर के आवाम के साथ चलाई जा रही परम्परा का अंत हो। अनुच्छेद 370 और 35ए को छोड़कर हम और आगे बढ़ें। वह शेष भारत से हम कदम हों। निवेश बढ़े, सब्सिडी पर से निर्भरता खत्म हो। विकास की गंगा बहे। कश्मीरी नौजवानों को रोजगार मिले।
अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर की उन महिलाओं के लिए भी गैर बराबरी जनता था, जो सूबे से बाहर निकाह कर लेती थीं। हालांकि पाकिस्तान के नागरिक से निकाह के बाद उसे जम्मू-कश्मीर में नागरिकता समेत सब हक हासिल हो जाते हैं। गृहमंत्री अमित शाह ने जैसे ही राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर को लेकर चार संकल्प पढ़े वैसे ही दोहरी नागरिकता का चलन बीते जमाने की बात हो गई।
दो निशान, दो संविधान का चलन खत्म हो गया।
जम्मू और कश्मीर ऐसे केंद्र शासित प्रदेश के रूप में तब्दील हो गये जिसकी अपनी विधानसभा होगी। लद्दाख में बीते 50 सालों से चली आ रही केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग को कुबूल किया गया। केंद्र की भाजपा सरकार ने जम्मू-कश्मीर को लेकर जो फैसले किए हैं वह उसके संकल्प पत्र का हिस्सा है। एक दल जो अपने शुरुआती काल में यह नारा देता हो- ‘जहां हुए बलिदान मुखर्जी वह कश्मीर हमारा है।‘
पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी जनसंघ के प्रतीक पुरुष थे। जनसंघ आज भाजपा है।
उन्होंने दो निशान और दो संविधान के सवाल पर जम्मू-कश्मीर में प्रदर्शन किया था। गिरफ्तार हुए। जेल में ही काल कवलित हो गये। ऐसे में जब वह पार्टी प्रचंड बहुमत के साथ दूसरी बार सत्ता में हो तो यह उम्मीद करना बेमानी नहीं होना चाहिए कि वह दो निशान और दो संविधान का खात्मा करे।
अनुच्छेद 370 से मुक्ति दिलाए। 35-ए खत्म करे।
35-ए को जम्मू-कश्मीर विधानसभा की सहमति से 14 मई, 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने जोड़ा था। यह संसद में पारित नहीं है। इसको चुनौती देने वाली जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। हैरत है कि जब केंद्र ने जम्मू में 280 कंपनी पैरा मिलेट्री फोर्स तैनात किया, 20 साल में पहली बार अमरनाथ की यात्रा रोकी, बाहर के छात्रों को जम्मू से अपने राज्य लौटने का कहा, वायुसेना को सतर्क रहने की हिदायत दी, गृह मंत्रालय ने एडवाइजरी जारी की, इंटरनेट सेवाएं बाधित की गईं, राज्यों को अलर्ट किया गया आदि-इत्यादि।
समझ जाना चाहिए था कि भाजपा अपने एजेंडे अनुच्छेद 370 पर अमल करने का मन बना चुकी है।
लेकिन अटकलें बहुत लगीं पर हकीकत समझ नहीं पाए लोग। एक ऐसे समय जब पत्थरबाजों की फौज ने आतंकवाद का चेहरा बदल दिया हो। भाड़े पर पत्थरबाज और आतंकी तैयार किये जा रहे हों। आतंकवादियों के मारे जाने पर शौर्य से जनाजा उठाया जा रहा हो। बरसी मनाई जा रही हो। युवाओं को गुमराह करके हथियार थमाये जा रहे हों। आतंकवाद को धर्म की ढाल दी जा रही हो। पाकिस्तानी झंडे फहराये जा रहे हों। अलगावादियों को पाकिस्तान से धन मुहैया कराया जा रहा हो।
कश्मीर की आजादी के नाम पर टुकड़े-टुकड़े गैंग चल रहे हों।
घर-घर में अफजल की बात कही जा रही हो। कश्मीरी पंडितों को जबरन बाहर कर दिया गया हो। मीरवाइज, उमर फारुख, यासिन मलिक, सैफुद्दीन सोज, अब्दुल गनी लोन, सैयद शाह गिलानी सरीखे अलगाववादी लोग पाकिस्तान की भाषा बोल रहे हों। फारुख अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती सरीखे नेता जम्हूरियत की आड़ में सिर्फ अपने हित देख रहे हों।
अलगावावादी नेता गिलानी मजलिस-ए सूरा चला रहे हों।
मजलिस-ए सूरा को पार्लियामेंट कहा जाता है। जम्मू-कश्मीर में वर्ष 14 से 18 तक सिर्फ 698 करोड़ रुपये का निवेश हो पाया हो। वह भी केवल 15-16 के वर्ष में। जबकि 297, 663, 979 और एक हजार आठ करोड़ रुपये का निवेश प्रस्तावित किया गया हो पर हुआ एक भी पैसे का न हो। बरसी मनाई जा रही हो। युवाओं को गुमराह करके हथियार थमाये जा रहे हों। आतंकवाद को धर्म की ढाल दी जा रही हो। पाकिस्तानी झंडे फहराये जा रहे हों। अलगावादियों को पाकिस्तान से धन मुहैया कराया जा रहा हो।
कश्मीर की आजादी के नाम पर टुकड़े-टुकड़े गैंग चल रहे हों।
घर-घर में अफजल की बात कही जा रही हो। कश्मीरी पंडितों को जबरन बाहर कर दिया गया हो। मीरवाइज, उमर फारुख, यासिन मलिक, सैफुद्दीन सोज, अब्दुल गनी लोन, सैयद शाह गिलानी सरीखे अलगाववादी लोग पाकिस्तान की भाषा बोल रहे हों। फारुख अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती सरीखे नेता जम्हूरियत की आड़ में सिर्फ अपने हित देख रहे हों।
अलगावावादी नेता गिलानी मजलिस-ए सूरा चला रहे हों।
मजलिस-ए सूरा को पार्लियामेंट कहा जाता है। जम्मू-कश्मीर में वर्ष 14 से 18 तक सिर्फ 698 करोड़ रुपये का निवेश हो पाया हो। वह भी केवल 15-16 के वर्ष में। जबकि 297, 663, 979 और एक हजार आठ करोड़ रुपये का निवेश प्रस्तावित किया गया हो पर हुआ एक भी पैसे का न हो। जब जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था सिर्फ पर्यटन के सहारे चलाये जाने से बाहर हो गई हो। कश्मीर में 68.88 लाख, जम्मू में 53.78 लाख और लद्दाख में 2.74 लाख लोग निवास कर रहे हों। इनमें मुसलमानों की तादाद क्रमशः 96.40, 33.45, और 46.4 फीसदी हो। इस लिहाज सिर्फ तकरीबन एक करोड़ लोगों को खुश करने के लिए दो निशान, दो संविधान,
अनच्छेद 370 का विधान और 35-ए का प्रावधान क्यों किया जाना चाहिए?
वह भी तब जब इसके साथ अस्थायी शब्द जुड़ा हो। आरटीआई, आरटीई और सीएजी जैसे कानून वहां लागू न होते हों? उच्चतम न्यायालय के आदेश मान्य न होते हों? देश के सभी विधानसभा और लोकसभा का कार्यकाल पांच साल का होता हो पर जम्मू-कश्मीर का छह साल का? दोहरी नागरिकात लागू हो? कश्मीर को छोड़ शेष भारत के लोग वहां जमीन न खरीद सकते हों? महिलाओं पर शरीयत कानून लागू होते हों? वहां भारत के राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध न होता हो? यही नहीं, देश के गैर जम्मू-कश्मीर इलाके के रहने वाले मुसलमानों के किसी भी मसायल से जम्मू-कश्मीर के मुसलमानों का कोई ताल्लुक न हो।
राष्ट्रवादी सरकार की यह जिम्मेदारी
तब किसी भी राष्ट्रवादी सरकार की यह जिम्मेदारी बन जाती है कि आजादी के बाद से अब तक परेशान कश्मीर की जम्हूरियत को अमन चैन देने की दिशा में कठोर से कठोर कदम उठाये। भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार ने यही कर दिखाया है। इस पर शोर-शराबा मचना लाजिमी है। पर यह सब कुछ शोर सिर्फ एक करोड़ लोगों का है। उन लोगों का है जो कश्मीर के विशेष राज्य के नाम पर अपनी दुकान चला रहे थे।
तभी तो बीते रविवार को एक-दूसरे के धुर विरोधी दल एक साथ जा बैठे।
धर्म निरपेक्षता और सांप्रदायिकता की लड़ाई कश्मीर के विशेष राज्य के दर्जे को लेकर फिर तेज किये जाने की कोशिश में राजनीतिक दल दिख रहे हैं। ऐसे में कश्मीर एक बार फिर कसौटी पर है। हालांकि वह रोज-रोज कसौटी पर रहता है। कभी पाकपरस्त आतंकवादियों की कसौटी पर। कभी पाकिस्तान की कसौटी पर। कभी शेष भारत के नागरिकों की उम्मीदों की कसौटी पर। कभी अलगाववादियों की कसौटी पर। कभी कश्मीर में कथित तौर पर जम्हूरियत की बहाली का दावा करने वाले राजनीतिक दलों की कसौटी पर।
लेकिन इस बार जम्मू-कश्मीर के बार-बार कसौटी पर कसे जाने का अंत हुआ दिखता है।
अभी जम्मू-कश्मीर से छह सांसद आते हैं। जम्मू से 37, कश्मीर से 46 और लद्दाख से चार विधायक चुने जाते हैं। अनुच्छेद 370 के खात्मे। जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनाये जाने के बाद एक बार फिर से विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन की भी जरूरत है। जो लोग भी केंद्र सरकार के जम्मू-कश्मीर पर लिए गये फैसले के खिलाफ हैं उनकी मंशा यह चुंगली करती है कि वे कश्मीर और वहां के आवाम की समस्या का स्थाई और सार्थक रास्ता नहीं निकलने देना चाहिए।
आपरेशन जम्मू-कश्मीर भाजपा के लिए डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान को सच्ची श्रद्धांजलि कही जाएगी।
अब सबको मिलकर यह कोशिश करनी चाहिए कि लगातार कसौटी पर कसे जाने की जम्मू-कश्मीर के आवाम के साथ चलाई जा रही परम्परा का अंत हो। अनुच्छेद 370 और 35ए को छोड़कर हम और आगे बढ़ें। वह शेष भारत से हम कदम हों। निवेश बढ़े, सब्सिडी पर से निर्भरता खत्म हो। विकास की गंगा बहे। कश्मीरी नौजवानों को रोजगार मिले।