इस बार के नोबल शांति पुरस्कार में दुनिया के कुछ हिस्से में गंभीर अशांति के संदेश छुपे हैं, जो आधी आबादी से जुड़े हैं। शक्ति से इन अशांति के संदेशों का रिश्ता है। शक्ति का पर्याय भले ही पुरुष माना जाता है, पर धार्मिक मान्यताओं और सांस्कृतिक मूल्यों में शक्ति का रिश्ता स्त्री से है, आधी आबादी से है। इस साल का नोबल शांति पुरस्कार संयुक्त रूप से कांगो के डॉक्टर डेनिस मुकवेगे और यजीदी महिला अधिकार कार्यकर्ता नादिया मुराद को मिला है। दोनो ने दुनिया के अलग-अलग इलाकों में महिला अत्याचारों के वे पक्ष उजागर किये हैं, जो इनके न होने पर, न जाने कब तक पोशीदा रहते। इनमें से डॉक्टर मुकवेगे ने अत्याचार व दुराचार पीड़ित महिलाओं की चिकित्सा के साथ-साथ उनके अधिकार की लड़ाई कांगो में लड़ी, तो नादिया ने इस्लामिक स्टेट के अत्याचारियों द्वारा दुराचार किये जाने का दुःस्वप्न जिया।
नादिया को इस्लामिक स्टेट के आतंकियों ने 2014 में अगवा कर लिया था, तीन महीने तक बंधक बनाकर उसके साथ दुराचार किया। नादिया उत्तरी इराक के शिंजा के नजदीक कोचू गांव की रहने वाली है। यहां के लोग खेती पर निर्भर हैं। तीन अगस्त, 2014 को आईएस ने यजीदी लोगों पर हमला किया। इन चरमपंथियों ने पुरुषों को मौत के घाट उतार दिया। गांव में घुसे एक हजार आतंकियों ने पहले यजीदियों को इस्लाम कबूल करने को कहा, जो कबूल करने को तैयार नहीं हुए उन्हें पहले मार डाला। बच्चों को प्रशिक्षण के लिए अपने शिविर में ले गए, जो महिलाएं शादी लायक नहीं थीं उनका भी कत्ल किया। नादिया ने खुद अपना दुःस्वप्न बयान करते हुए कई जगह कहा है कि जिन्होंने हमारे भाइयों और माता-पिता का कत्ल किया था, वह हमारा उत्पीड़न और बलात्कार कर रहे थे। मोसुल के इस्लामिक स्टेट में हमें रखा गया था। नादिया ने आतंकियों के अत्याचार के रोंगटे खड़े कर देने वाली आपबीती सुनाई है।
डेनिस ने कांगो में तीस हजार से अधिक दुराचार पीड़ित महिलाओं का इलाज किया। कांगों के लेमेरा स्थित उनके अस्पताल में 35 मरीजों की मौत हो गई। उन्हें बुकाबू आना पड़ा। 1998 में यहां टेंट में शुरू हुआ उनका अस्पताल भी तबाह हो गया। एक साल बाद उन्हें सब कुछ फिर से शुरू करना पड़ा। डॉक्टर डेनिस के मरीजों में ऐसी महिलाएं भी रही हैं जिनके साथ दुराचार के बाद जांघों पर गोलियां मार दी गई थीं। कुछ ऐसी महिलाएं भी उनके पास आईं दुराचार के बाद जिनके जननांगों में रसायन डाला दिया गया था। महिलाओं का समूहों में दुराचार किया गया। उनके पुरुषों को दुराचार देखने को मजबूर किया गया। डॉक्टर डेनिस दवा ही नहीं करते बल्कि मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और आर्थिक तौर पर भी उनकी मदद करते हैं। कई बार अदालती कार्रवाई में भी उन्होंने उनकी मदद की।
दुराचार पीड़ित लाखों महिलाओं के उपचार के बाद डेनिस को यह लगा कि उन्हें मुंह भी खोलना चाहिए, इसके चलते वहां के राष्ट्रपति जोसेफ कबीला और पड़ोसी देश रवांडा के राष्ट्राध्यक्ष भी बर्बरता के खिलाफ उनके मुंह खोलने के चलते नाराज हैं। 2012 में उन्हें मार डालने की कोशिश हुई। उनके ड्राइवर की जान भी चली गई। डॉक्टर किसी प्रकार बच गए। डेनिस देश छोड़कर बाहर चले गए। पर कांगो की महिलाओं की हिम्मत और मोहब्बत, ने उन्हें वापस वतन लौटने पर मजबूर कर दिया। कांगो को संयुक्त राष्ट्र बलात्कार की राजधानी कहता है। यहां आर्थिक वजहों से धर्मांध समूहों में लड़ाई चल रही है। सेक्स संबंधित हिंसा में कांगो दुनिया में सबसे आगे है। अमेरिकी जनस्वास्थ्य पत्रिका के मुताबिक यहां 1150 महिलाओं के साथ रोज दुराचार होता है। जर्मन न्यूज साइट और द गार्जियन की रिपोर्ट में कांगो महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देश है।
नोबल पाने वाली नादिया का रिश्ता इराक से है। संयुक्त राष्ट्र ने यह खुलासा किया है कि आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट द्वारा एक सेक्स गुलाम की 20 आतंकियों से शादी करवाने का मामला सामने आया है। हद तो यह है कि हर बार शादी करवाने से पहले वर्जिन बनाने के लिए सेक्स गुलाम की सर्जरी की गई। संयुक्त राष्ट्र के अधिकारी जैनब बंगूरा की रिपोर्ट बताती है, आईएस आतंकी बाजार में सीरियाई और इराकी लड़कियों की परेड निकालकर उन्हें बेचते हैं। लड़कियों को बेचने के लिए कपड़े उतरवाकर परेड कराई जाती है। बंगूरा का यह बयान सीरिया, इराक, तुर्की, लेबनान और जार्डन की यात्रा के बाद इसी साल के चैथे महीने में आया। यह रिपोर्ट भी उजागर हुई है कि आतंकी सेक्सुअल पावर बढ़ाने की दवाएं भी खा रहे हैं। इराक में महिलाओं की स्थिति को इससे भी समझा जा सकता है कि पिछले ही महीने दुनिया में मशहूर इराकी मॉडल तारा फरेस को कट्टरपंथी ताकतों ने 22 साल की उम्र में ही बिंदास जीवनशैली की वजह से मौत की नींद सुला दिया। तारा बुरके में रूढ़िवादी ढंग से रहने का विरोध करती थी। इंस्ट्राग्राम पर उनके 27 लाख फालोवर हैं। तारा अपने टैटू, बालों के अलग-अलग रंग, डिजाइनर कपड़े और बिंदास अंदाज में दुनिया के दूसरे देश की लड़कियों की तरह जीवन का आनंद लेना चाहती थी। पर यह कट्टरपंथियों को गवारा नहीं हुआ।
नादिया और डॉक्टर डेनिस को मिला शांति पुरस्कार दुनिया के तमाम देशों में रहने वालों की आंख खोलने का प्रयास है। धरती के कुछ हिस्सों में महिलाएं कितनी यातना के साथ जीने को अभिशप्त हैं। कितनी जुल्म और ज्यादती की शिकार हैं। 21वीं सदी में जहां हम महिला के अंतरिक्ष में जाने पर इतरा रहे हैं। भारत की छह महिलाओं द्वारा समुद्र के रास्ते पृथ्वी की परिक्रमा करने का गौरव मना रहे हैं। सऊदी अरब में महिलाओं के ड्राइविंग लाइसेंस मिलने को सेलीब्रेट कर रहे हैं। तब हमें कांगो, इराक सहित कई देशों में इस्लामिक स्टेट के आतंकियों के खूंखार रवैये पर भी चिंता जतानी चाहिए, ताकि कोई यह न कह सके कि इन इलाकों में मनुष्य जानवर हो गये हैं।