जब-जब राम ने जन्म लिया, तब-तब पाया वनवास! फिर भी खत्म नहीं हुई मंजिल पाने की आस

Update:2017-05-11 16:58 IST

डाॅ. जगदीश गांधी

लखनऊ: अवतारों तथा महापुरुषों के कष्टमय जीवन हमें प्रभु की राह में सब प्रकार के कष्ट सहने की सीख देते हैं! ऐसे ही कुछ महापुरुषों के वृतांत से लेते है सीख।

राम ने जन्म लिया, पाया वनवास

राम ने बचपन में ही प्रभु की इच्छा और आज्ञा को पहचान लिया और उन्होंने अपने शरीर के पिता राजा दशरथ के वचन को निभाने के लिए हंसते हुए 14 सालों तक वनवास का दुःख झेला। लंका के राजा रावण ने अपने अमर्यादित व्यवहार से धरती पर आतंक फैला रखा था। राम ने रावण को मारकर धरती पर मर्यादाओं से भरे ईश्वरीय समाज की स्थापना की। कृष्ण के जन्म के पहले ही उनके मामा कंस ने उनके माता-पिता को जेल में डाल दिया था। राजा कंस ने उनके सात भाईयों को पैदा होते ही मार दिया।

कंस के घोर अन्याय का कृष्ण को बचपन से ही सामना करना पड़ा। कृष्ण ने बचपन में ही ईश्वर की इच्व्छा तथा आज्ञा को पहचान लिया और उनमें अपार ईश्वरीय ज्ञान व ईश्वरीय शक्ति आ गई और उन्होंने बाल्यावस्था में ही कंस का अंत किया। इसके साथ ही उन्होंने कौरवों के अन्याय को खत्म करके धरती पर न्याय की स्थापना के लिए महाभारत के युद्ध की रचना की। बचपन से लेकर ही कृष्ण का सारा जीवन संघर्षमय रहा किन्तु धरती और आकाश की कोई भी शक्ति उन्हें प्रभु के कार्य के रूप में धरती पर न्याय आधारित साम्राज्य स्थापित करने से नहीं रोक सकी।

बुद्ध तथा ईशु ने कष्टमय जीवन जीते हुए हमें जीवन जीने की राह दिखाई

बुद्ध ने मानवता की मुक्ति तथा ईश्वरीय प्रकाश का मार्ग ढूंढ़ने के लिए राजसी भोगविलास त्याग दिया और अनेक प्रकार के शारीरिक कष्ट झेले। अंगुलिमाल जैसे दुष्टों ने अनेक तरह से उन्हें यातनायें पहुँचाई किन्तु धरती और आकाश की कोई भी शक्ति उन्हें दिव्य मार्ग की ओर चलने से रोक नहीं पायी। ईशु को जब सूली दी जा रही थी तब वे परमपिता परमात्मा से प्रार्थना कर रहे थे - हे परमात्मा! तू इन्हें माफ कर दे जो मुझे सूली दे रहे हैं क्योंकि ये अज्ञानी हैं अपराधी नहीं। ईशु ने छोटी उम्र में ही प्रभु की इच्छा तथा आज्ञा को पहचान लिया था फिर धरती और आकाश की कोई शक्ति उन्हें प्रभु का कार्य करने से रोक नहीं सकी। जिन लोगों ने ईशु को सूली पर चढ़ाया देखते ही देखते उनके कठोर हृदय पिघल गये। सभी रो-रोकर अफसोस करने लगे कि हमने अपने रक्षक को क्यों मार डाला?

मोहम्मद साहब ने कष्टमय जीवन जीते हुए हमें जीवन जीने की राह दिखाई

मोहम्मद साहब की प्रभु की इच्छा और आज्ञा को पहचानते हुए मूर्ति पूजा छोड़कर एक ईश्वर की उपासना की बात करने तथा अल्लाह की इच्छा तथा आज्ञा की राह पर चलने के कारण मोहम्मद साहब को मक्का में अपने नाते-रिश्तेदारों, मित्रों तथा दुष्टों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा और वे 13 वर्षों तक मक्का में मौत के साये में जिऐ। जब वे 13 वर्ष के बाद मदीने चले गये तब भी उन्हें मारने के लिए कातिलों ने मदीने तक उनका पीछा किया। मोहम्मद साहब की पवित्र आत्मा में अल्लाह (परमात्मा) के दिव्य साम्राज्य से कुरान की आयतें 23 वर्षों तक एक-एक करके नाजिल हुई।

नानक और बहाउल्लाह ने कष्टमय जीवन जीते हुए हमें जीवन जीने की राह दिखाई

नानक को ईश्वर एक है तथा ईश्वर की दृष्टि में सारे मनुष्य एक समान हैं, के दिव्य प्रेम से ओतप्रोत सन्देश देने के कारण उन्हें रूढ़िवादिता से ग्रस्त कई बादशाहों, पण्डितों और मुल्लाओं का कड़ा विरोध सहना पड़ा। नानक ने प्रभु की इच्छा और आज्ञा को पहचान लिया था उन्होंने जगह-जगह घूमकर तत्कालीन अंधविश्वासों, पाखण्डों आदि का जमकर विरोध किया। बहाई धर्म के संस्थापक बहाउल्लाह को प्रभु का कार्य करने के कारण 40 वर्षों तक जेल में असहनीय कष्ट सहने पड़ें। जेल में उनके गले में लोहे की मोटी जंजीर डाली गई तथा उन्हें अनेक प्रकार की कठोर यातनायें दी र्गइं। जेल में ही बहाउल्लाह की आत्मा में प्रभु का प्रकाश आया। बहाउल्लाह की सीख है कि परिवार में पति-पत्नी, पिता-पुत्र, माता-पिता, भाई-बहिन सभी परिवारजनों के हृदय मिलकर एक हो जाये तो परिवार में स्वर्ग उतर आयेगा। इसी प्रकार सारे संसार में सभी के हृदय एक हो जाँये तो सारा संसार स्वर्ग समान बन जायेगा।

अर्जुन और मीरा ने कष्टमय जीवन जीते हुए हमें जीवन जीने की राह दिखाई

अर्जुन को कृष्ण के मुँह से निकले परमात्मा के पवित्र गीता के सन्देश से ज्ञान हुआ कि ‘कर्तव्य ही धर्म है’। न्याय के लिए युद्ध करना ही उसका परम कर्तव्य है। फिर अर्जुन ने अन्याय के पक्ष में खड़े अपने ही कुल के सभी अन्यायी योद्धाओं तथा 11 अक्षौहणी सेना का महाभारत युद्ध करके विनाश किया। इस प्रकार अर्जुन ने धरती पर प्रभु का कार्य करते हुए धरती पर न्याय के साम्राज्य की स्थापना की। माता देवकी ने अपनी आंखों के सामने एक-एक करके अपने सात नवजात शिशुओं की हत्या अपने सगे भाई कंस के हाथों होते देखी और अपनी इस हृदयविदारक पीड़ा को प्रभु कृपा की आस में चुपचाप सहन करती रही। देवकी ने अत्यन्त धैर्यपूर्वक अपने आंठवे पुत्र कृष्ण के अपनी कोख से उत्पन्न होने की प्रतीक्षा की ताकि मानव उद्धारक कृष्ण का इस धरती पर अवतरण हो सके तथा वह धरती को अपने भाई कंस जैसे महापापी के आतंक से मुक्त करा सके तथा धरती पर न्याय आधारित ईश्वरीय साम्राज्य की स्थापना हो।

मीरा बाई और प्रहलाद ने कष्टमय जीवन जीते हुए हमें जीवन जीने की राह दिखाई

मीराबाई कृष्ण भक्ति में भजन गाते हुए मग्न होकर नाचने-गाने लगती थी जो कि उनके राज परिवार को अच्छा नहीं लगता था। इससे नाराज होकर मीरा को राज परिवार ने तरह-तरह से डराया तथा धमकाया। उनके पति राणाजी ने कहा कि तू मेरी पत्नी होकर कृष्ण का नाम लेती है। मैं तुझे जहर देकर जान से मार दूँगा। मीरा ने प्रभु की इच्छा और आज्ञा को पहचान लिया था उन्होंने अपने पति से कहा कि पतिदेव यह शरीर तो विवाह होने के साथ ही मैं आपको दे चुकी हूँ, आप इस शरीर के साथ जो चाहे सो करें, किन्तु आत्मा तो प्रभु की है, उसे यदि आपको देना भी चाँहू तो कैसे दे सकती हूँ? यह संसार का कितना बड़ा अजूबा है कि असुर प्रवृत्ति के तथा ईश्वर के घोर विरोधी दुष्ट राजा हिरण्यकश्यप के घर में ईश्वर भक्त प्रहलाद का जन्म हुआ। उसके दुष्ट पिता ने प्रहलाद को पहाड़ से गिराकर, जहर देकर तथा आग में जलाकर तरह-तरह से मारने का प्रयास किया। प्रहलाद ने अपने पिता हिरण्यकष्यप से कहा कि पिताश्री यह शरीर आपका है इसका आप जो चाहे सो करें, किन्तु आत्मा तो परमात्मा की है। इसे आपको देना भी चाहूँ तो कैसे दे सकता हूँ? प्रहलाद के चिन्तन में भगवान आ गये तो हिरण्यकश्यप जैसे ताकतवर राजा का अंत नृसिंह अवतार के द्वारा हो गया।

हनुमान जी ने कष्टमय जीवन जीते हुए हमें जीवन जीने की राह दिखाई

हनुमान जी ने परमात्मा की इच्छा तथा आज्ञा को पहचान लिया और उनके चिन्तन में भगवान आ गये तो वह एक छलाँग में मीलों लम्बा समुद्र लांघकर सोने की लंका पहुँच गये। हनुमान में यह ताकत परमात्मा की इच्छा तथा आज्ञा को पहचान लेने से आ गयी। प्रभु भक्त हनुमान ने पूरी लंका में आग लगाकर रावण को सचेत किया। हनुमान के चिन्तन में केवल एक ही बात थी कि प्रभु का कार्य किये बिना मुझे एक क्षण के लिए भी विश्राम नहीं करना है। हनुमान ने बढ़-चढकर प्रभु राम के कार्य किये। हनुमानजी की प्रभु भक्ति यह संदेश देती है कि उनका जन्म ही परमात्मा के कार्य के लिए हुआ था।

महापुरूषों ने लोक कल्याण के लिए हमें जीवन जीने की राह दिखाई

गाँधीजी ने जीवन-पर्यन्त प्रभु की इच्छा तथा आज्ञा को पहचान कर प्रभु का कार्य करते हुए सारे समाज की सेवा की। गाँधी जी ने अनेक यातनायें धैर्यपूर्वक सहन की तथा अपनी सेवा भावना तथा सत्य एवं अहिंसा के बल पर देश को आजाद कराया। मदर टेरेसा अपनी दया, करूणा तथा संवेदना से ओतप्रोत महान सेवा कार्यों के कारण सारे संसार में सदा-सदा के लिए अमर हो गई। वह सारे जगत् की करूणामयी मदर (माता) बन गई। मदर टेरेसा द्वारा स्थापित चेरिटी संस्थायें आज लाखों असहाय बच्चों, वृद्धों तथा बीमारों की व्यापक रूप से सेवा कर रही हैं। अब्राहम लिंकन एक गरीब मोची के घर अमेरिका में पैदा हुए थे। प्रभु की इच्छा और आज्ञा को पहचान कर जीवन में भारी असफलताओं तथा कष्टों का सामना करते हुए अमेरिका के सबसे लोकप्रिय राष्ट्रपति बने। उन्होंने सारे विश्व से गोरे-काले का भेद मिटा दिया। अब्राहम लिंकन की मानवीय विचारों की आंधी में विश्व से अनेक राजाओं के राज्य खत्म हो गये तथा उसके स्थान पर उन्होंने जनतंत्र अर्थात् जनता का राज्य, जनता के द्वारा तथा जनता के लिए स्थापित किया। उन्होंने समाज की भलाई के लिए अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया। अब्राहम लिंकन को आज भी सारा विश्व बड़े ही सम्मान तथा आदर की दृष्टि से देखता है।

बच्चों को परमात्मा की इच्छाओं तथा आज्ञाओं पर चलने के लिए प्रेरित करें

परिवार तथा विद्यालय दोनों को मिलकर बच्चों को भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक शिक्षाओं का संतुलित ज्ञान कराना चाहिए। बच्चों को यह बतलाये कि ईश्वर एक है, धर्म एक है तथा मानव जाति एक है। इसके साथ ही हमें बच्चों को बाल्यावस्था से ही यह संकल्प कराना चाहिए कि एक दिन दुनियाँ एक करूँगा, धरती स्वर्ग बनाऊँगा। विश्व शान्ति का सपना एक दिन सच करके दिखलाऊँगा। परमात्मा की ओर से अवतरित पवित्र पुस्तकों गीता, त्रिपटक, बाईबिल, कुरान, गुरू ग्रन्थ साहिब, किताबे-अकदस का ज्ञान सारी मानव जाति के लिए हंै। यदि बच्चे बाल्यावस्था से ही सारे अवतारों की मुख्य शिक्षाओं को तथा महापुरूषों के प्रभु की राह में उठाये गये कष्टों से शिक्षा ग्रहण कर लें तो वे टोटल क्वालिटी पर्सन बन जायेंगे। इस नयी सदी में विश्व में एकता तथा शान्ति लाने के लिए आज के ज्ञान तथा बुद्धिमत्ता वाले टोटल क्वालिटी पर्सन (पूर्णतया गुणात्मक व्यक्ति) की आवश्यकता है।

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