मानवेन्द्र मल्होत्रा
आगरा: प्रलय काल में धरती की बहुत सारी धरोहरें समुद्र में समा गई थी। तब सृष्टि की सकारात्मक एवं नकारात्मक शक्तियों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था। इस मंथन में नवरत्नों समेत अमृत को खोज निकाला। कुछ ऐसा ही सपा में हो रहा है। सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने पिछले एक वर्ष में अकेले ही पूरी सपा को मथ दिया।
इस मंथन में दिग्गज नेताओं के रूप में पार्टियों को कई 'रत्न' हाथ लगे हैं और अखिलेश यादव इस मंथन में पार्टी के लिए 'अमृत' बनकर उभरे। राजनीतिक गलियारों में भले ही तरह-तरह की चर्चाएं हैं लेकिन राजनीतिक विचारकों की मानें, तो सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव राजनीतिक इतिहास में पहले ऐसे नेता हैं जिन्होंने पार्टी में घमासान के बावजूद उसे टूटने नहीं दिया।
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बीते एक वर्ष में सपा में कई उतार-चढ़ाव देखे गए। इससे यह स्पष्ट हो गया कि कौन मौकापरस्त है और कौन भरोसेमंद। कौन चाटुकार है और कौन समाजवाद का पोषक। संस्थापक मुलायम सिंह ने पहले अखिलेश यादव को सीएम पद की कमान सौंपी। सरकार से बाहर रहते हुए मुलायम सिंह यादव समय-समय पर अखिलेश यादव को विभिन्न मुद्दों पर रोकते-टोकते रहे और इस तरह सरकार के 5 वर्ष पूरे हो गए। इन 5 वर्षों में मुलायम सिंह यादव के संरक्षण में अखिलेश यादव को सरकार चलाने के सभी गुर सीखने का मौका मिला।
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मुलायम सिंह यादव के कठोर कदमों ने अखिलेश यादव को सपा सरकार के कार्यकाल के आखिरी वर्ष में संगठन चलाने का गुर भी सिखा दिया। संगठन में वर्चस्व की जंग को लेकर जब सैफई परिवार में कलह मची, तो मुलायम सिंह कभी सामने आए तो कभी पीछे हट गए। पिछले लोकसभा चुनाव से पहले रामगोपाल यादव और शिवपाल यादव के बीच चली आ रही है वर्चस्व की जंग चरम पर पहुंच चुकी थी। इस तरह मुलायम सिंह यादव ने बड़े निर्णय लेते हुए कई लोगों को पार्टी से बाहर कर दिया और उन्हें फिर बाद में शामिल भी कर लिया।
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इस जंग में अखिलेश यादव को अप्रत्याशित कदम उठाने का मौका मिला। सपा संगठन की कमान अपने हाथों में ले ली। मुलायम सिंह यादव का हर कदम अखिलेश यादव के लिए झटका देने वाला था। लेकिन अखिलेश यादव के पैर लड़खड़ाए नहीं और संगठन की बागडोर उन्होंने कहीं से ढीली नहीं होने दी। सही मायने में मुलायम सिंह यादव हर बार नया दांव चलकर यह परख रहे थे, कि अखिलेश के कद डगमगाते हैं या नहीं।
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समाजवादी पार्टी के अंदर एक वर्ष उथल-पुथल भरे रहे। इसके बाद शीर्ष नेतृत्व बनकर उभरे अखिलेश यादव आज संगठन के मुखिया हैं। सपा का राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित कर उन्होंने यह साबित कर दिया कि राजनीतिक पटल पर मुलायम सिंह द्वारा स्थापित समाजवादी पार्टी को अखिलेश नए मुकाम की ओर ले जायेंगे। भविष्य में राजनीति का ऊंट कब किस करवट बैठेगा कुछ नहीं पता, लेकिन अखिलेश यादव की अगुवाई में आयोजित अधिवेशन इस बात का साफ संकेत दे रहा है कि किसी भी राजनीतिक परिस्थिति से निबटने के लिए सपा जनों का कारवां उनके पीछे चल पड़ा है।