गलत साबित हुआ है 24 घंटे खबर दिखाने वाला मीडिया, बार-बार दिलाई योगी में मोदी की याद

Update:2017-04-22 18:09 IST

Sanjay Bhatnagar

लखनऊ: मुश्किल यह है कि पत्रकार अपनी हार आसानी से मानते नहीं हैं जबकि तथ्य साफ़ बताते हैं कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से उनके हाथ सिर्फ हार ही लगी है। उत्तर प्रदेश के हालिया विधान सभा चुनाव में अगर हम विभिन्न एग्जिट पोल छोड़ भी दे तो क्या मैं ये पूछने की धृष्टता कर सकता हूं कि पिछले तीन-चार महीनों में मीडिया (विशेषकर न्यूज़ चैनल) की कौन सी बड़ी 'भविष्यवाणियां' सत्य साबित हुई है। चलिए राष्ट्रीय स्तर पर छोड़ कर अगर उत्तर प्रदेश चुनाव के पहले और बाद का अध्यन करते हैं। सीटों के आंकलन से लेकर मुख्यमंत्री के चयन तक 24 घंटों वाले तमाम चैनलों ने कितना सच दिखाया ,कोई बताएगा।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के लिए कौन-कौन से नाम नहीं चले और मनोज सिन्हा से होते हुए अंतिम क्षणों में योगी आदित्यनाथ का नाम की घोषणा भी तब ही की जब लगभग सभी को मालूम हो चुका था। इसके दो मतलब निकले- एक खोजी पत्रकारिता अथवा यूं कहिये क़ि रिपोर्टिंग का खत्म हो गया है और दूसरा यह क़ि जो राजनीतिक आका चाहते हैं हमें उतना ही पता लगता है। ये मोदी की दिल्ली में तो सच हो ही चूका है, इस बात की पूरी आशंका है क़ि उतर प्रदेश में भी ऐसा ही होगा। प्रदेश में सरकार के दो प्रवक्ता श्रीकांत शर्मा और सिद्धार्थनाथ सिंह बनाए गए हैं जो दोनों ही राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं और उनकी 'स्टाइल' मोदी और अमित शाह से प्रेरित है, ये जानना कोई 'रॉकेट साइंस' नहीं है।

उत्तर प्रदेश के सन्दर्भ पर वापस आते हैं। क्या आपको यह नहीं लगता है कि मीडिया योगी के चयन पर अपनी हार न स्वीकार करने के वजह से ही इस निर्णय को मोदी का न बता कर राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ (आरएसएस) का बता रही है। कैसे ? क्या आरएसएस और मोदी में छत्तीस का आंकड़ा है? थोड़ा बहुत प्रभुत्व का संघर्ष तो समझ में आता है, लेकिन इतना बड़ा निर्णय मोदी की इच्छा के बगैर संभव है।

बात फिर वही है, केंद्रीय सरकार और केंद्रीय भाजपा नेतृत्व उतना ही सूचना देती है जितना वे चाहते हैं कि मीडिया में आएं। मोदी और आरएसएस के आपसी संबंधों के परिपेक्ष्य में योगी को मुख्यमंत्री बनाने के निर्णय पर क्या कोई फॉलोअप आया। उत्तर है- नहीं क्योंकि इस पर किसी को कुछ मालूम ही नहीं है। भाजपा के सूत्र (???) तो बताते हैं कि योगी आरएसएस से अधिक मोदी की पसंद हैं और उन्होंने योगी आदित्यनाथ के रूप में अपना उत्तरधिकारी देश के सामने रखा है।

योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद से उनकी कार्यशैली सिर्फ और सिर्फ मोदी की ही याद दिलाती है। दोनों की कार्य करने की स्टाइल में साम्यता तो यही दर्शाती है कि मोदी को ही फॉलो कर रहे हैं योगी। अब मीडिया के प्रति योगी के विचार और कार्यप्रणाली भी मोदी की ही याद ज़्यादा दिलाती है। हो सकता है, किसी परिस्थिति विशेष में ये बात भाजपा के अथवा मोदी की ओर से स्पष्ट की जाए, तब तक मीडिया इस पर मोहर लगाने की भी स्थिति में नहीं है। जो है सो है, इसे स्वीकार भी कर लेना चाहिए।

मुझे नहीं लगता है कि मीडिया की भविष्यवक्ता की इमेज योगीराज में चल पाएगी। क्यों मीडिया भविष्यवक्ता का अवतार धारण किये हुए है जबकि रोज़मर्रा के सरकारी तबादलों और रूटीन निर्णयों की जानकारी तक तो गलत निकलती है। मुश्किल यह है कि पत्रकार अपनी हार आसानी से मानते नहीं हैं।

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