लखनऊ: उत्तर प्रदेश में सरकार बनने के लगभग चार माह बाद योगी सरकार का पहला बजट आया। बजट में सरकार विकासोन्मुख योजनाओं के लिए कुछ नया नहीं कर पाई है, परन्तु किसानों की कर्ज माफी के किये गये वादे को पूरा करने के लिए 36 हजार करोड़ का बजटीय प्रावधान सरकार के विश्वास को बहाल करने वाला है।
इसके साथ ही सरकार ने विभिन्न रूपों में चल रही तमाम योजनाओं को संघीय विचारधारा का मूर्त रूप देने की सुनियोजित कार्ययोजना बनायी है। यही नहीं, सरकार ने संघ की विचारधारा को पल्लवित-पुष्पित करने के लिए शोध संस्थान भी खोलने का निर्णय लिया है। बीजेपी ने योगी बजट से अपने मूल धाॢमक एजेंडे अयोध्या, काशी व मथुरा को धार देने की कोशिश की है। इसके लिए 2200 करोड़ रुपये से ज्यादा का बजटीय प्रावधान किया गया है।
संसाधन बढ़ाने की प्रक्रिया नहीं
राज्य का बजट प्रस्तुत करने के लिए योगी सरकार को बहुत ही संतुलित व्यवस्था करने को विवश होना पड़ा है। विकास योजनाओं को गति देने तथा नयी योजनाओं को चालू करने के लिए लंबे बजटीय स्वरूप की जरूरत थी परन्तु आय का कोई नया स्रोत न मिलने की वजह से औसतन 10.9 की बढ़ोतरी के साथ 3.84 लाख करोड़ से ज्यादा का बजट प्रस्तुत करने को विवश होना पड़ा। बीजेपी के चुनावी वादों को पूरा करने तथा महत्वाकांक्षी योजनाओं को चालू करने के लिए योगी सरकार को 4.15 लाख करोड़ से ज्यादा के बजट की जरूरत थी। सरकार ने बजट में पांच साल में 10 प्रतिशत विकास दर हासिल करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसके लिए प्रदेश का बजटीय आकार पांच लाख करोड़ से ज्यादा का होना चाहिए। राज्य सरकार का यह पूरा आंकलन जीएसटी से होने वाली आय पर ही निर्भर करता है।
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कैसे बढ़े संसाधन, कोई लेखा-जोखा नहीं
फिलहाल राज्य सरकार के पास ऐसा कोई लेखा-जोखा नहीं है कि संसाधनों को बढ़ाने के लिए अन्य कौन सी प्रक्रिया अपनायी जाएगी। योगी सरकार के पहले बजट में 7,468.83 करोड़ का घाटा है जिसकी भरपाई के लिए राज्य सरकार लोक लेखा से 7,600 करोड़ रुपए लेगी। राज्य सरकार ने राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने के लिए 2.97 प्रतिशत की सीमा रेखा निर्धारित की है जिससे 42,967.86 करोड़ का घाटा अनुमानित है। वर्ष 2017-18 के बजटीय अनुमान के अनुसार 3,77,190.88 करोड़ की प्राप्तियां है जबकि 3,84,659.71 करोड़ के खर्चे का अनुमान है।
दो मदों पर एक तिहाई खर्च
बजटीय प्रावधान देखने से साफ है कि राज्य की आय बढ़ाने का योगी सरकार को कोई मूलभूत मंत्र अभी तक नहीं सूझ पाया है। इससे परे राज्य कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने से लगभग 87 हजार करोड़ रुपए तथा किसानों की कर्ज माफी के वादे को पूरा करने के लिए 36 हजार करोड़ रुपए का अतिरिक्त भार आया है। इस प्रकार योगी सरकार के बजट का एक तिहाई हिस्सा इन दो मदों पर ही खर्च हो जाता है।
जीएसटी पर रूपरेखा स्पष्ट नहीं
देश में जीएसटी लागू होने के बाद सर्वाधिक लाभ उत्तर प्रदेश को मिलने की संभावना जतायी जा रही है परन्तु अभी तक सरकार के पास इसे लेकर कोई साफ रूपरेखा नहीं है। प्रदेश के वित्त विभाग का अनुमान है कि जीएसटी से राज्य को 68 हजार करोड़ रुपए की प्राप्ति होगी। राजस्व की यह प्राप्ति राज्य कर्मचारियों के अतिरिक्त खर्चे की ही पूर्ति नहीं कर पायेगी। जीएसटी लागू होने के बाद राज्य सरकार के लिए सबसे बड़ी समस्या राजस्व बढ़ाने के लिए किसी अन्य कर का बोझ बढ़ाने की नहीं रह गयी है।
आय बढ़ाने का कोई नया स्रोत नहीं
सरकार को फिलहाल आय बढ़ाने का कोई नया स्रोत नहीं मिल पा रहा है। सरकार ने अपनी नयी संघीय योजनाओं को मूर्त रूप देने के लिए पिछली सरकार की समाजवादी पेंशन योजना, छात्रों की लैपटाप एवं आई पैड देने आदि की कुछ खर्चीली योजनाओं को बंद कर दिया है। पिछली सरकार की इन योजनाओं तथा इसके वितरण आदि के लिए किये गये समारोहों पर राजकोष पर लगभग 62 हजार करोड़ का बोझ आया था। कई जगह तो कार्यक्रम के आयोजन पर योजना की चार गुनी राशि खर्च कर दी गयी।
कर्ज माफी छोड़ अन्य योजनाओं पर पाबंदी
योगी सरकार ने किसानों की कर्ज माफी को छोडक़र अन्य ऐसी सभी योजनाओं पर पाबंदी लगा दी है, जिससे कि समाज के किसी वर्ग को मुफ्तखोरी की आदत न पड़े। इसके पहले भी बेराजगारी भत्ता तथा साइकिल ट्रैक के नाम पर अपने लोगों को लाभ पहुंचाने की कोशिश की गयी। योगी सरकार ने अनुपयोगी योजनाओं को खत्म कर कम लागत में जनता के लाभ की योजनाओं को पूरा करने की पहल की है।
धार्मिक एजेंडे को धार देने की कोशिश
अभी तक केन्द्र एवं राज्य की बीजेपी सरकार अपने धार्मिक एजेंडे को खुलकर सामने आने से बचती रही है, परन्तु योगी सरकार के पहले ही बजट में इसे धार देने की कोशिश की गयी है। इससे साफ है कि उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार अगले 2019 के लोकसभा चुनाव में अयोध्या, काशी, मथुरा में मंदिर कार्यक्रम को मुख्य एजेंडे में रखेगी। योगी सरकार के बजट में स्वदेश दर्शन योजना के तहत अयोध्या, काशी, मथुरा में रामायण सर्किट, बौद्ध सर्किट एवं कृष्ण सर्किट की योजनाओं के लिए 1,240 करोड़ रुपए की व्यवस्था की गयी है। इसी प्रकार प्रासाद योजना के तहत अयोध्या, वाराणसी तथा मथुरा शहरों में अवस्थापना सुविधाओं के लिए 800 करोड़ रुपये की व्यवस्था है। वाराणसी में सांस्कृतिक केन्द्र की स्थापना के लिए 200 करोड़ रुपए की व्यवस्था की गयी है। इसके अलावा इलाहाबाद अर्ध कुंभ मेले की तैयारियों के लिए 500 करोड़, हज भवन की तर्ज पर गाजियाबाद में कैलाश मानसरोवर भवन के लिए 20 करोड़, विन्ध्याचल के पर्यटन विकास के लिए 10 करोड़, मथुरा के नगला-चन्द्रभान के ग्रामीण पर्यटन के लिए 5 करोड़ तथा रामायण कान्क्लेव के लिए 3 करोड़ रुपए की व्यवस्था की गयी है।
मेट्रो में नहीं दिखाई खास रुचि
योगी सरकार ने विभिन्न शहरों में मेट्रो रेल परियोजना के लिए मात्र 288 करोड़ की पूंजी का प्रावधान किया है जिससे साफ है कि सरकार की मेट्रो में कोई रुचि नहीं है। मेट्रो परियोजना के लिए यह धनराशि 'ऊंट के मुंह में जीरा' साबित होगी। इससे लखनऊ मेट्रो का काम भी लंबा खींचने की आशंका होती है जबकि यहां पर ज्यादा काम शेष है।
अन्य योजनाओं पर भी नजर
इसके अलावा कृषि, ग्राम विकास, पंचायती राज, अवस्थापना सुविधाओं, शिक्षा, स्वास्थ्य, सिंचाई, उद्योग एवं रोजगार, पशुपालन एवं दुग्ध व्यवसाय, समाज कल्याण, न्याय, राजस्व, वन एवं पर्यावरण आदि विभागों की योजनाओं को सतही और पारम्परिक स्वरूप में ही बजटीय प्रावधान किया गया है। कानून व्यवस्था में सुधार के लिए पांच साल में डेढ़ लाख पुलिसकर्मियों की भर्ती का वादा किया गया है। 33,200 पुलिस कर्मियों की भर्ती इसी वर्ष होनी है।
बजट पढ़ते बीमार पड़े वित्त मंत्री
योगी सरकार का पहला बजट पढ़ते हुए वित्त मंत्री राजेश अग्रवाल लो ब्लड प्रेशर के शिकार हो गये। लगभग 63 पेज के बजटीय भाषण में राजेश अग्रवाल 40 पेज ही पढ़े थे कि उन्हें खड़े होने में परेशानी होनी लगी। भाषण पढ़ते हुए राजेश ने दो बार पानी पिया और फिर विधानसभा अध्यक्ष अध्यक्ष की अनुमति मिलने के बाद भाषण पढऩे लगे। कुछ ही देर में राजेश की जुबां लडख़ड़ाने लगी तो नेता विपक्ष राम गोविन्द चौधरी ने बजट भाषण पढ़ा हुआ मान लिए जाने का प्रस्ताव रखा, जिसे विधानसभा अध्यक्ष ने स्वीकार कर लिया। परन्तु मुख्यमंत्री की पहल पर संसदीय कार्यमंत्री सुरेश खन्ना ने बाकी बजट भाषण पढ़ा। बाद में राजेश अग्रवाल की डाक्टरी जांच में पाया गया कि उनका बीपी लो हो गया था। बजट प्रस्तुत करने के चक्कर में राजेश अग्रवाल खाना भी नहीं खाए थे।