अब बिहारी Without Language!, टॉपर घोटाले से प्रदेश की युवा मेधा हो रही अपमानित

साल 2017 में लगातार दूसरे साल बिहार बोर्ड की इंटर परीक्षा में टॉपर घोटाला सामने आने से प्रदेश की युवा मेधा अपमानित हो रही है। 8 लाख इंटर फेल बच्चे अवसादग्रस्त हैं।

Update:2017-06-04 16:17 IST

कुमार दिनेश

लखनऊ : साल 2017 में लगातार दूसरे साल बिहार बोर्ड की इंटर परीक्षा में टॉपर घोटाला सामने आने से प्रदेश की युवा मेधा अपमानित हो रही है। 8 लाख इंटर फेल बच्चे अवसादग्रस्त हैं। प्रदेश शर्मसार है। शस्त्र और शास्त्र में पारंगत भगवान श्रीराम के प्रतीक चिह्न वाले इसी बिहार बोर्ड से जिन लोगों ने 1970-72 तक मैट्रिक पास कर लिया, वे आज गर्व कर सकते हैं कि उन्हें स्कूली शिक्षा के सुनहरे दौर में पढ़ाई पूरी करने का अवसर मिला। परीक्षाएं यथासंभव कदाचारमुक्त होती थीं। उन दिनों कोई अभिभावक अपने बच्चे को नकल से पास कराने की सोच भी नहीं सकता था। 35 साल बाद आज परीक्षा केंद्रों पर नकल कराने वालों की इतनी भीड़ जमा होती है कि पुलिस बेबस होती है।

2015 की मैट्रिक परीक्षा में सामूहिक नकल कराने के लिए एक सेंटर की इमारत पर चढ़े लोगों की तस्वीर वायरल हुई थी। उस समय के शिक्षा मंत्री पीके शाही ने बयान दिया, कि 'हम नकल रोकने के लिए क्या 40 लाख लोगों पर गोलियां चलवा देते ?' हाईकोर्ट ने इस बयान को संज्ञान में लेकर कड़ी आपत्ति दर्ज की थी। दरअसल, जब नकल या भ्रष्टाचार के किसी रूप को समाज की स्वीकृति मिल चुकी होगी, तब उसे कानूनन रोकना मुश्किल ही होगा। रिश्वत, दहेज, भ्रूण हत्या, पेड़ों की कटाई, नदी प्रदूषण- ऐसी अनेक बातें हैं, जिन्हें कानून भले ही अनुचित मानता हो, समाज को कोई परहेज नहीं।

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कैंसरग्रस्त हो गई शिक्षा

राजनीतिक आंदोलनों के अतिवाद और उसके पाषंड ने बिहार में ऐसा समाज तैयार कर दिया है, जिसे शिक्षा व्यवस्था में पतन से कोई लेना-देना नहीं- बस, हर कोई अपने बच्चे को किसी मुकाम पर देखना चाहता है। पूरी शिक्षा कैंसरग्रस्त हो गई और राजनीति यह हो रही है कि कोई बिहार को बदनाम कर रहा है। यानी, आप न रोगी को रोगी कहिये, न कड़वी दवा या गहरी सर्जरी की बात सोचिए। सिर्फ बिहार गौरव दिवस मनाते रहिए।

भाषा में 4. 64 लाख फेल

जिस बिहार ने शिवपूजन सहाय, बेनीपुरी, दिनकर, नागार्जुन, रेणु जैसे साहित्यकार हिंदी को दिए। उसी बिहार में भाषा की पढ़ाई चौपट हो चुकी है। इस साल इंटर की परीक्षा में 4 लाख 64 हजार छात्र केवल भाषा (हिंदी, अंग्रेजी, मैथिली, संस्कृत, उर्दू) में फेल हुए। इस हिदीं भाषी राज्य की भाषायी उदासीनता का हाल यह है कि 1.87 लाख छात्र हिंदी-उर्दू-संस्कृत में फेल हुए। अंग्रेजी में फेल होने वालों की संख्या 2 लाख 76 हजार से ज्यादा है। भाषा की शुद्धता और व्याकरण की बात करना ब्राह्मणवाद मान लिया गया है, इसलिए अशुद्ध बोलने- लिखने वालों का राजनीतिक बचाव किया जाता है।

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बना रही 'विद आअट लैग्वेज'

पटना विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में पढ़ाने वाले एक अतिथि शिक्षक ने इंटर परीक्षा की बदहाली पर एक विचारशील पोस्ट हिंदी में लिख कर सोशल मीडिया पर डाला है। एक शिक्षक की हिंदी के वाक्यांश इस प्रकार हैं-

-बहुत सारे परीक्षा दिए... ( पहला वाक्य)

-मैंने नेट निकालते देखा हूं...

-अपने शैक्षिक औकात...

-अपने कमजोरी को सिस्टम पर ...

-कापी जांच भी हुआ...

जिस राज्य में एक फैकल्टी टीचर 10 वाक्य लिखने में इतनी गलतियां करता हो और उसे लाइक करने वाले 80 से ज्यादा लोगों में भी किसी को उसकी भाषा पर एतराज न हो, उस राज्य में भाषा-सचेत युवा कैसे पैदा होंगे ? राजनीति ने पहले बिहारियों को without English मैट्रिक पास कराया। अब वही राजनीति 'विद आअट लैग्वेज' बना रही है। इस हकीकत पर जब फिल्म बनती है ( हाफ गर्लफ्रेंड), तब हमें बुरा लगता है। आईना ही तोड़िये, चेहरा साफ मत कीजिए भाई।

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