कोरोना से डरो ना !
जनता-कर्फ्यू तो सिर्फ इतवार को था, लेकिन आज सोमवार को भी वह सारे देश में लगा हुआ मालूम पड़ रहा है। मेरा घर गुड़गांव की सबसे व्यस्त सड़क गोल्फ कोर्स रोड पर है लेकिन इस सड़क पर आज भी हवाइयां उड़ रही हैं। घर के पास से गुजरनेवाली रेपिड मेट्रो तो बंद ही है, सड़क पर वाहन दौड़ते हुए भी नहीं दिखाई पड़ रहे हैं।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
जनता-कर्फ्यू तो सिर्फ इतवार को था, लेकिन आज सोमवार को भी वह सारे देश में लगा हुआ मालूम पड़ा। मेरा घर गुड़गांव की सबसे व्यस्त सड़क गोल्फ कोर्स रोड पर है लेकिन इस सड़क पर सोमवार को भी हवाइयां उड़ रही थीं। घर के पास से गुजरनेवाली रेपिड मेट्रो तो बंद ही है, सड़क पर वाहन दौड़ते हुए भी नहीं दिखाई पड़ रहे हैं।
यह ठीक है कि हरयाणा सरकार ने तालाबंदी (लाॅकडाउन) घोषित कर दी है लेकिन यहां न तो ताला दिखाई पड़ रहा है और न ही चाबी! सड़क के कोने पर लगनेवाले सब्जी और फलों के ठेले तक नदारद हैं। खाने-पीने की चीजों की दुकानें भी सोमवार को (दोपहर 12 बजे) तक बंद हैं। तालाबंदी ने जिन्हें छूट दे रखी है, वे लोग भी घर बैठे हैं। कितने डर गए हैं, हम लोग ? जो लोग दिहाड़ी मजदूरी करते हैं, यदि रोज शाम को उन्हें 200-250 रु. मजदूरी न मिले तो वे खाएंगे क्या ? ऐसे लगभग 60-70 करोड़ लोगों के लिए 10-15 दिन बाद क्या कोरोना से भी बड़ा संकट खड़ा नहीं हो जाएगा ?
कारखाने और दुकाने बंद होने से देश में आर्थिक आपातकाल आ धमकेगा। केरल और उत्तरप्रदेश की सरकारों ने उससे निपटने के कुछ कदम उठा लिए हैं लेकिन केंद्रीय तथा अन्य प्रांतीय सरकारें देरी क्यों कर रही हैं ? कोरोना के विरुद्ध हम जो सावधानियां बरत रहे हैं, वे तो ठीक हैं लेकिन सावधानियों से जो संकट खड़े होनेवाले हैं, उनके प्रति भी हम सावधान हैं या नहीं ? खाने-पीने की चीजें एक हफ्ते बाद इतनी मंहगी और कम हो जाएंगी कि देश में कहीं लूट-पाट का माहौल न बन जाए ? जिन लोगों को पढ़ने-लिखने, टीवी पर सिनेमा देखने, संगीत सुनने और घरेलू खेल खेलने का शौक नहीं है, वे घर बैठे-बैठे कहीं उदासीनता के अवसाद में न डूब जाएं ?
फोन करने में भी कोताही
कोरोना का डर इतना ज्यादा फैल गया है कि लोग एक-दूसरे को फोन करने में भी कोताही दिखा रहे हैं। कल मेरे पास मुश्किल से 8-10 फोन आए, जो कि रोजमर्रा की तुलना में 10 प्रतिशत भी नहीं हैं। आजकल घर बैठकर वैसा ही एकांत अनुभव हो रहा है, जैसा 60-70 साल पहले हम किन्हीं हिल स्टेशनों के जंगलों में बनी कुटियाओं में किया करते थे। आजकल स्वाध्याय और मौन-साधना का आनंद अनायास ही प्राप्त हो रहा है। लेकिन सभी लोग तो ऐसा आनंद नहीं कर सकते। वे क्या करेंगे ? वे डरे नहीं। तालाबंदी खुलने पर वे काम पर जाएं। भीड़-भड़क्के से बचें। लोगों से दूरी बनाए रखें। सावधान रहें। सरकारें भी कोरोना के राक्षस से निपटने की पूरी तैयारी रखें। अब एक साथ खड़े होकर ताली और थाली बजाना बंद करें। कहीं यह देश को मंहगा न पड़ जाए।