नौ दिन चले अढ़ाई कोस: सरकार है तो सरकती क्यों नहीं....

Update:2017-12-02 13:30 IST

नौ दिन चले अढ़ाई कोस का ताजा सफरनामा तलाशना हो तो उत्तराखंड आइए...। जहाँ सरकार से लोग पूछने लगे हैं कि दाजू सरकार अगर है तो सरकती क्यों नहीं। देश का सबसे ज्यादा आक्सीजन देने वाला प्रदेश न जाने कैसे प्रशासनिक, राजनैतिक प्रदूषण की चपेट में है।

यह एक अजीब सी ठहराव बेचैनी पैदा करता दिखाई देता है। कहने को सरकार बीजेपी की है और मुखिया मनमोहन सिंह जैसी खामोशी ओढ़े नजर आते हैं। समझना और समझाना पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं को भी भारी पड़ रहा है कि सरकार चल रही है या किसी बंद कमरे में कदमताल कर रही है। बस एक तारीफ जरूर है कि पिछले मुखियाओं की तरह गारंटी के साथ काम करा सकने वाला कोई दलाल बाजार में नहीं है। नेतृत्व भी है... करे न खेती, भरे न दंड के अंदाज में...।

सब कुछ स्थिर है...प्रतीक्षारत है। हर चीज के लिए पॉलसी बन रही है...पता नहीं कब लागू होगी? अधिकारी बेअंदाज हैं। किसी की नहीं सुनते... आम गण से लेकर विधायक गण तक एक दूसरे को अपने अपने घाव दिखा रहे हैं!

विपक्ष की जरूरत उत्तराखंड की जनता ने नहीं जरूरी समझी थी। सत्तारूढ़ कार्यकर्ता से लेकर नेताओं तक को ठिकाने नेतृत्व ने लगा दिया है। किसी से भी बात करिए आपको अहसास हो जाएगा कि आप तमाशबीनों की महफिल आ गए हैं।

...इतना सन्नाटा क्यों है भाई? कोई गब्बर भी नहीं है जो उत्साह से पूछे कि होली कब है? और न ये पूछने वाला है कि अगर तूने उत्तराखंड का भला नहीं किया तो तेरा क्या होगा ?

रसहीन, निष्क्रिय राजनैतिक इच्छा के विपरीत...अनुलोम-विलोममें उलझी सरकार... जो अपने ही अधिकृत होल्डिंग-पोस्टरों की कैच लाइन संकल्प से सिद्धि तक के नारे की गुणवत्ता और प्रमाणिकता को नापने-तौलने वाले तराजू के इंतजार में है...।

आलोक अवस्थी

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