Holi 2025: बुरा न मानो, बहुत कुछ है....

Holi Festival Celebration: होली है। बुरा न मानो। लेकिन शेयर बाजार गले तक डूब चुका है। बुरा न मानो, पर विदेशी निवेशक धड़ाधड़ बिकवाली कर रहे हैं, लाखों करोड़ के स्टॉक बेच बेच कर निकल लिए हैं।;

Update:2025-03-13 14:35 IST

Holi Festival 2025: होली है भई होली है। यह जुमला फागुन के महीने में आम है। फागुन मे। ही होली का त्योहार होता है। पारा 30 के पार है। फ़िज़ा रंगीली है। कहते हैं कि होली में हरी ठंडाई की मस्ती होती है। सब उलट पलट होता है। बुरा न मानो का नारा बुलंद होता है। ज़माने से चलते चलते ये नारा भी घिस चुका है । लेकिन करें क्या,नया सूझता ही नहीं। इसलिए चलाये जा रहे हैं, “बुरा न मानो..। डोंट माइंड ..।” बोलते सब हैं और जानते भी सब हैं कि बात बुरा मानने की ही है। बंदा/बंदी बुरा भी मानेंगे और माइंड भी करेंगे । लेकिन कुछ नया बहाना नया तरीका न ईजाद हुआ और न समझ में आता है। जब होगा तब होगा, फिलहाल तो हम भी यही जुमला दोहराएंगे कि बुरा ना मानो।

होली है। बुरा न मानो। लेकिन शेयर बाजार गले तक डूब चुका है। बुरा न मानो, पर विदेशी निवेशक धड़ाधड़ बिकवाली कर रहे हैं, लाखों करोड़ के स्टॉक बेच बेच कर निकल लिए हैं। बुरा न मानो, अपने हाऊडी ट्रम्प साहब भारी ड्यूटी ठोंक कर और भी ज्यादा बैंड बजाने वाले हैं। शेयर त्याग कर गोल्ड में तसल्ली ढूंढने वालों तुम भी बुरा न मानो लेकिन सोना भी लाख रुपए पहुंचने को है।


महाकुंभ सम्पन्न हो गया। 65 करोड़ प्लस की आसमान छूती संख्या। यानी देश का लगभग हर दूसरा व्यक्ति संगम में हर हर गंगे कर आया। एक से एक अनोखी उपलब्धियां निकल कर आ रही हैं। लेकिन भई, बुरा न मानो, दस की चीज पांच सौ में बेचने वालों के गुणगान चल रहे हैं।संगम तक की बोट राइड का सरकारी रेट 75 रुपये है, बुरा न मानो, रेट तय करने वाली ही सरकार हजारों - हज़ार रुपये चार्ज करने वालों का अभिनंदन कर रही है। होली ही होली है।

बुरा न मानो, भगदड़ में न जाने कितने चले गए। लेकिन इंतजामिया हाकिमों को मेडल बंट रहे हैं। बुरा न मानो, संगम तट का पानी अमृत बताने वाले खुद आरओ वाला और बोतल वाला मिनरल वाटर पी रहे हैं। बुरा न मानो।

बुरा न मानो लेकिन महाकुंभ वाले आईआईटी बाबा डेढ़ ग्राम गांजे में धरे गए। हैरान भी रह गए। क्योंकि कुम्भ से ही ताजा ताजा लौट कर आये थे। बुरा न मानो लेकिन उन्होंने कुम्भ के अखाड़ों - बाबाओं में हुई खपत पर ही सवाल उठा दिए।


अमृत स्नान की बेसब्री में ट्रेनों के डिब्बों के शीशे-दरवाजे तोड़ने वालों, रिजर्वेशन डिब्बों को रिजर्वेशन मुक्त कर देने वालों, बुरा न मानो। लेकिन तुमने साबित कर दिया कि यूपी, बिहार सिर्फ यूंही फेमस नहीं हैं। अब यूपी का भी क्या ही कहें, यहाँ असेम्बली के मेन हॉल के दरवाजे पर ही किसी ने पीक थूक दी। माननीय ही रहे होंगे, जनता की भालाई की जल्दी में भी रहे होंगे। लेकिन इस कृत्य पर डांट दिए गए। बुरा ना मानो लेकिन ये साबित हो गया कि इस धरा में यत्र तत्र सर्वत्र पीक पहुंचा दी है हमने। अब चंद्रमा और मंगल ग्रह ही बाकी हैं।

रंगों का त्योहार है, खुमारी की बहार है। मिलावट पकड़ने वाले रस्मी महकमे गहरी तंद्रा से जाग चुके हैं। गुझिया बनाने वालों, बुरा न मानो, पुणे में डेढ़ टन नकली खोया पकड़ा गया है। हर होली की मानिंद इस बार भी लखनऊ की खोया मंडियों में भी गुल खिल रहे हैं। बुरा न मानों, जो खोया नहीं पकड़ा जा सका उनसे गुझियों की बहार है।




बधाई हो भई बधाई हो। भारत ने चैंपियंस ट्रॉफी जीत ली है। खिलाड़ी, क्रिकेट बोर्ड, टीवी चैनल वाले और भी ज्यादा मालामाल हो गए। सोशल मीडिया पर पहले ही यह वीडियो आ गया कि भारत टॉस जीतेगा तो 310 रन बनायेगा। न्यूज़ीलैण्ड टॉस जीतेगा तो 260 से कम। लेकिन बुरा न मानो टीवी पर मैच देखने वालों, तुम तो ठनठन गोपाल ही रह गए, तुमको किसी ने चवन्नी तक नहीं बख्शी। अभी तो रईसी वाला आईपीएल भी आने को है। बुरा न मानो क्रिकेट प्रेमियों, तुम तो चिप्स और कोल्डड्रिंक पीते खाते तालियां बजाते रहना।

पढ़ने लिखने वालों, खूब पढ़ो। डिग्रियां कमाते रहो। लेकिन बुरा न मानो, डिग्री खरीदने के फेर में न पड़ना। राजस्थान वाली एक यूनिवर्सिटी ने डिग्रियां बेच कर ही 100 करोड़ रुपये बना लिए। डिग्री लेकर सड़क नापने वालों जरा बच कर रहना। सड़क एक्सिडेंटों के लिए मंत्री ने जिम्मेदारी ढूंढ ली है। कह दिया है कि सब सिविल इंजीनियरों की गलती है। बुरा न मानो इंजीनियरों, तुम भी कहीं से डिग्री खरीद तो नहीं लाये हो?

हमने शान से अभी अभी महिला दिवस मनाया है। सोशल मीडिया से लेकर वंदे भारत ट्रेन तक महिलाएं छाईं रहीं। लेकिन बुरा न मानो, सोशल मीडिया हैंडल कर रही महिला टीम ने इसी दिन कर्नाटक में इजरायली और भारतीय महिलाओं के संग रेप की खबर भुला दी। होली है, सब चंगा सी।हम साल मे। एक बार होली खेलते हैं। पर हमारे देश सेवक साल भर होली खेलते हैं। सत्ताधारी सेवक तो वर्ष भर कीचड़ उछाल कर होली खेलते हैं। विपक्षी सेवक लाल पीला होकर होली रोज खेलते रहते हैं। ये हमारी तरह साल में एक बार होली खेलें भी क्यों? इन्हें करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद देश के साथ केवल पांच साल ही होली खेलने का अवसर मिलता है। साल में खेलेंगे तो केवल पांच बार ही तो हो पायेगा।

बुरा मानने को इतना कुछ कि कहाँ तक गिनाते चलें, समझ नहीं आता। हर बात में कुछ न कुछ बुरा मानने को निकल ही आ जाता है। तभी तो हम बुरा न मानो, सॉरी, डोंट माइंड व थैंक्यू कहने के आदि हो बैठे हैं। कितना ही अच्छा हो कि हमारी बोलचाल से ही ये जुमला निकाल दिया जाए। कुछ नया गढ़ा जाए। तब तक के लिए बुरा न मानो होली है। और मान भी लोगे तो होगा ही क्या? अभी सामने चुनाव थोड़े ही है।

(लेखक पत्रकार हैं। ये लेखक के निजी विचार हैं।)

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