Athah Sagar: जीवन एक अथाह सागर है
Athah Sagar: जो व्यक्ति अनवरत कर्म-बन्धन के हेतुओं का संग्रह करने में तत्पर रहते हैं, वे इस परम्परा को और अधिक कसते चले जाते हैं । फिर उनकी मुक्ति की प्रक्रिया रुक जाती है...
Athah Sagar: जीवन एक अथाह सागर है। उसके दो तट हैं-जन्म और मृत्यु। जो व्यक्ति मृत्यु- तटपर पहुँचकर भी लहरों द्वारा आकर्षित हो जाता है, वह डूबता-पुनः उतराता हुआ एक दिन जन्म के तट पर पहुँच जाता है और वहाँ से फिर मृत्यु की गोद में सो जाता है। जन्म-मरण की यह परम्परा अनादिकाल से चली आ रही है। और अनन्त काल तक चलती रहेगी।
कुछ व्यक्ति इस परम्परा के धागों को काटकर दोनों तटों को लाँघ जाते हैं। लहरों का तीव्र आघात उनको गिरा नहीं सकता, इसलिये वे जन्म-मरण अर्थात् इस संसार से अतीत हो जाते हैं। संसार-परिभ्रमण के हेतु कर्म-बन्धन से मुक्त होने के कारण वे 'मुत्त' कहलाते हैं। जो व्यक्ति अनवरत कर्म-बन्धन के हेतुओं का संग्रह करने में तत्पर रहते हैं, वे इस परम्परा को और अधिक कसते चले जाते हैं । फिर उनकी मुक्ति की प्रक्रिया रुक जाती है...
पत्रकार एवं आध्यात्मिक लेखक