मालदीव महासंग्राम में भारतीय कूटनीतिक सक्रियता जरूरी

Update:2018-02-17 13:42 IST
मालदीव संकट पर चीनी मीडिया ने कहा- इस मसले से दूर रहे भारत

राहुल लाल

हिंद महासागर का छोटा सा द्वीपीय देश मालदीव इस समय गहरे सियासी और संवैधानिक संकट से जूझ रहा है। यह सियासी तूफान इतना प्रबल है कि इसकी हलचलें भारत और चीन तक सुनाई दे रही हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा विपक्षी नेताओं को राजनीतिक मामलों में बरी करने और राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन द्वारा इस आदेश को मानने से इंकार करने की पृष्ठभूमि में यह संकट उत्पन्न हुआ है। देश में आपातकाल की घोषणा के कुछ देर बाद ही सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे तोडक़र चीफ जस्टिस अब्दुल्ला सईद और दूसरे जजों के साथ पूर्व राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम को गिरफ्तार किया जा चुका है। भारत समर्थक मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने राजनीतिक संकट के समाधान के लिए भारत से मदद मांगी है। मोहम्मद नसीद ने भी भारत से त्वरित सैन्य कार्यवाई की माँग की है। लेकिन चीन ने धमकी भरे अंदाज में कहा है कि अगर भारत ने सैन्य कार्रवाई की तो वह भी जवाबी एक्शन लेगा।

मालदीव के ताजा राजनीतिक संकट की जड़ें 2012 में तत्कालीन और पहले निर्वाचित राष्ट्रपति मुहम्मद नशीद के तख्तापलट से जुड़ी है। नशीद के तख्तापलट के बाद अब्दुल्ला यामीन राष्ट्रपति बने। उन्होंने चुन-चुनकर अपने विरोधियों को निशाना बनाया। नशीद को 2015 में आतंकवाद के आरोपों में 13 साल जेल की सजा हुई,लेकिन वह इलाज के लिए ब्रिटेन चले गए और वहीं राजनीतिक शरण भी ले ली। अभी वे श्रीलंका में हैं। पिछले सप्ताह मालदीप के सुप्रीम कोर्ट ने नशीद समेत 9 राजनीतिक बंदियों को को रिहा करने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अब्दुल्ला यामीन की पार्टी से बगावत करने वाले 12 सांसदों को भी बहाल करने का आदेश दिया। इन 12 सांसदों की बहाली होने से अब्दुल्ला यामीन सरकार अल्पमत में आ जाती और भारत समर्थक मुहम्मद नशीद की पार्टी नई अगुवाई वाला संयुक्त विपक्ष बहुमत में आ जाता। लेकिन अब्दुल्ला यामीन ने कोर्ट के आदेश को मानने से इंकार कर दिया। इस बीच गिरफ्तारी से बचे हुए शेष जजों ने दबाव में आकर 9 राजनीतिक कैदियों के रिहाई का फैसला वापस ले लिया है।

अगर भारत हिंद प्रशांत क्षेत्र में खुद को एक महाशक्ति तथा सुरक्षा गारंटर के रूप में स्थापित करने का सपना देखता है,तो इसे हर हाल में अपने पड़ोस के मुल्क के लिए ज्यादा सक्रिय नीति अपनानी होगी। इस संकट की पृष्ठभूमि में ड्रैगन की परछाईं स्पष्टत: देखी जा सकती है। चीन जिसका वर्ष 2011 तक माले में दूतावास तक नहीं था,भारत के ठीक पड़ोस में स्थित इस छोटे से देश की घरेलू राजनीति में प्रमुख खिलाड़ी बन चुका है। ऐसे में मालदीव में चीनी प्रभाव कम करना भारत के लिए आवश्यक है।

भारतीय मुख्य भूभाग से मालदीप की दूरी करीब 1200 किमी है। लक्षद्वीप से तो इसकी दूरी केवल 700 किमी की है। जिस तरह हालत अभी मालदीप में हैं,उसके चलते वहाँ उग्रवाद, धार्मिक कट्टरपंथ,समुद्री डकैती जैसी समस्याएँ उभर सकती हैं,जो भारत के लिए चिंता की बात है। मालदीव में करीब 22 हजार भारतीय रहते हैं। वहाँ करीब 400 डॉक्टर हैं,जिसमें से 125 डॉक्टर भारतीय हैं। इसी तरह 25 फीसदी अध्यापक भी भारतीय हैं।

भारत बीते एक दशक से मालदीव के अंदरूनी मामले में हस्तक्षेप करने से बच रहा है। इसका सीधा फायदा चीन को मिलता दिख रहा है। पिछले वर्ष दिसंबर में मालदीव ने चीन के साथ मुक्त व्यापार पर समझौता किया,परंतु यह समझौता इतना तीव्र गति से संसद से पारित हुआ कि सत्तारूढ़ सांसदों को इसे पढऩे-समझने तक का मौका नहीं मिला। समझौते का विवरण अभी तक न तो सार्वजनिक हुआ है,और न ही विपक्ष के साथ इसे साझा किया गया है। चीन के लिए इस देश में आर्थिक संभावनाएँ बहुत सीमित है। समझा जा सकता है कि बीजिंग की मालदीव में रुचि पूर्णत:रणनीतिक है। चीन पर्दे के पीछे से ऐसे जाल बुन रहा है जिससे मालदीप और नई दिल्ली में दूरी बढ़ जाए।

हिंद महासागर आस्ट्रेलिया, दक्षिणपूर्वी एशिया,दक्षिण एशिया,पश्चिम एशिया और अफ्रीका के पूर्वी इलाके को छूता है। इस इलाके में 40 से ज्यादा देश आते हैं,जिसमें दुनिया की 40 फीसदी आबादी रहती है। मालदीव भी इस क्षेत्र का महत्वपूर्ण देश है। भारत का अधिकतर अंतरराष्ट्रीय व्यापार हिंद महासागर से होता है इसलिए यहाँ से गुजरने वाले समुद्री मार्गों का सुरक्षित होना भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है। मालदीव अपने कुछ द्वीप चीन को पट्टे पर भी दे चुका है। आशंका जताई जा रही है कि चीन इसका इस्तेमाल भारत पर निगरानी संबंधी गतिविधियों में करने के लिए वहाँ सैन्य बेस बनाने के लिए इच्छुक है। पिछले चार वर्षों में चीन लगभग दो तिहाई दक्षिण चीन महासागर में केवल मनौवैज्ञानिक दबाव बनाकर कब्जा कर चुका है।

भारत के लिए हिंद महासागर में अपने वर्चस्व को प्रदर्शित करने का यह सबसे महत्वपूर्ण अवसर है। वह मालदीव में हस्तक्षेप कर वहां पुन: लोकतंत्र की जड़ें मजबूत कर सकता है। वहाँ सामान्य जनता भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के उल्लंघन के बाद सडक़ों पर है। भारत की ऐसे किसी भी कार्रवाई को वहाँ की जनता का पूर्ण समर्थन प्राप्त होगा। भारत सदैव मालदीव के निकटस्थ मित्र की भूमिका में रहा है। दिसंबर 2014 में जब माले में पानी आपू्र्ति कंपनी के जेनरेटर पैनल में आग लग गई थी,तो भारत ने तत्काल मदद करते हुए आईएनएस सुकन्या एवं आईएनएस दीपक को पेयजल के साथ रवाना किया था।इसके अतिरिक्त भारतीय वायुसेना ने भी पानी पहुँचाया था। भारत इसके पूर्व भी 1988 में तत्कालीन मालदीप के राष्ट्रपति के अनुरोध पर ‘ऑपरेशन कैक्टस’ चला चुका है। इसमें इमरजेंसी मैसेज के केवल 9 घंटे बाद ही भारतीय कमांडो मालदीव पहुँचे। भारतीय सेना ने कुछ ही घंटों में सब कुछ अपने नियंत्रण में ले लिया और मालदीव के तख्तापलट को नाकाम कर दिया।

बहरहाल, ताजा प्रकरण में भारत,अमेरिका सहित अन्य महाशक्तियों के साथ मिलकर मालदीव के वर्तमान राष्ट्रपति पर भारी दबाव बना सकता है। कई विशेषज्ञ इस मामले में सैन्य हस्तक्षेप को श्रेष्ठ विकल्प मान रहे हैं। लेकिन सैन्य विकल्प आखिरी विकल्प होना चाहिए। भारत ने पिछले ही वर्ष डोकलाम में अपने हितों की रक्षा के लिए भूटान के जमीन से चीन को चुनौती देने के लिए आक्रामक और सक्रिय कूटनीति को प्रतिबंबित किया था। इससे भारत की न केवल वैश्विक प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई थी अपितु आसियान देशों में भी चीनी वर्चस्व के विरुद्ध संघर्ष में भारत को प्रभावी राष्ट्र के रूप में स्वीकार किया गया। अगर भारत ऐसा कोई भी कार्रवाई करता है, तो इससे सार्क देशों में भारत को लेकर एक सशक्त संदेश जाएगा,जो वर्तमान परिप्रेक्ष्य में काफी महत्वपूर्ण है। सच तो यही है कि मालदीव में वर्तमान चुनौती को सक्रिय कूटनीति से ही अवसर में बदला जा सकता है।

(लेखक कूटनीतिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)

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