अब आया है चीन की गर्दन में अंगूठा डालने का वक्त
भारत को कूटनीति से ही काम लेना पड़ेगा। हम नेपाल को चीन या पाकिस्तान की श्रेणी में रखने की भूल भी नहीं कर सकते। हालांकि कुछ अति उत्साही मित्र कह रहे हैं कि भारत को चाहिए कि वह नेपाल को मजा चखा दे। यह एक गलत सोच है।
आर.के. सिन्हा
दुनिया भर को कोविड-19 जैसा भयानक संक्रमण देने वाला चीन तनिक भी बाज नहीं आ रहा है। वह अब भारत से टकराव के मूड में लग रहा है। उसकी सेना ने लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर पैंगोंगत्सो (झील) और गालवान घाटी में अपने सैनिकों की संख्या और गतिविधियाँ बढ़ा दी है।पर अब भारत भी पूरी तरह तैयार है, चीन के गले में अंगूठा डालने के लिए। चीन की तबीयत से क्लास लेने के लिए भारतीय सेना के प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवाने ने लद्दाख में 14 कोर के मुख्यालय लेह का दौरा किया और चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बलों की सुरक्षा तैनाती की सेना के अफसरों से गहन चर्चा की। चीन के नेतृत्व को शायद गलतफहमी हो गई है कि उनका मुल्क अजेय है।
भारत अब कमजोर नहीं
वह अजेय और अति शक्तिशाली होता तो फिर वह हांगकांग में लंबे समय से चल रहे आंदोलन को दबा चुका होता। वह अजेय होता तो अबतक ताइवान को खा गया होता। चीन के इरादे शुरू से ही विस्तारवादी रहे हैं। यही उसकी विदेश नीति का मूल आधार है। पर इस बार उसका मुकाबला भारत से हो रहा है जो अब 1962 वाला भारत नहीं रह गया है। बुद्ध, महावीर और गांधी का देश संकट की घड़ी में एक जुट होकर उससे लड़ेगा। हमें अंहिसा पसंद है, पर हमारे नायकों में कर्ण और अर्जुन भी हैं।
भारत से टकराने का अर्थ है कि चीन को अपनी अर्थव्यवस्था को चौपट होने का निमंत्रण देना। भारत- चीन के बीच 100 अरब डॉलर का व्यापार होता है। इसमें चीन बड़े लाभ की स्थिति में है। वह भारत से जितना माल आयात करता है, उससे बहुत अधिक भारत को निर्यात करता है। उसने अपनी हरकतें बंद नहीं की तो भारत उससे अपना आयात भारी मात्रा में घटा सकता है।
वैसे भी भारत में चीन के खिलाफ जमीनी स्तर पर पूरा माहौल बन चुका है। औसत भारतीय तो चीन से 1962 से ही नफरत करता ही था अब कोरोना महामारी के बाद और ज्यादा करने लगा है ।
चीन को तकलीफ
सेना प्रमुख का चीन से लगी सीनाओं का दौरा करना ही यह साफ संकेत है कि दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। सरहदों पर दोनों ओर के हजारों सैनिक एक-दूसरे के आमने-सामने जमे हुए हैं। चीन को तकलीफ तब शुरू हुई थी जब कुछ समय पहले हमारी फौजों ने सरहदों से लगते कुछ इलाको में आवश्यक सैनिक निर्माण करने शुरू किए।
हम काम तो अपनी सीमा के अन्दर ही कर रहे थे, पर इसका चीनी सैनिकों ने विरोध किया। चीन को इसलिए भी तकलीफ रहने लगी है, क्योंकि; भारत अब चीन की नाजायज गतिविधियों और हरकतों को सहन नहीं करता। अब भारत का पहले की तरह से रक्षात्मक रवैया नहीं रहता। यही चीनी नेतृत्व को हैरान करता है।
अब अक्साई चीन छुड़ाने की बारी
उत्तरी सिक्किम में भी विगत 9 मई को भारत और चीनी सैनिकों के बीच झड़प हुई थी जिसमें कई चीनी सैनिक घायल हुए थे। दरअसल चीन को उसकी औकात हमने डोकलाम विवाद के समय सही ढंग से बता दी थी। तब हमारे वीर सैनिकों ने उसे बुरी तरह खदेड़ दिया था।
इस तरह के आक्रामक भारत की चीन ने कभी उम्मीद ही नहीं की थी। इसलिए डोकलाम में अपमान का बदला चीन किसी न किसी रूप में लेने की फिराक में रहता है। उसे समझ लेना चाहिए कि इस बार भी नतीजे डोकलाम वाले ही या उससे भी सख्त आएँगे।
भारत सरकार ने भी साफ कर दिया है कि सीमा पर भारतीय सैनिक जो भी कर रहे हैं वे अपने इलाक़े में कर रहे हैं। उस पर किसी को आपत्ति करने का कोई अधिकार ही नहीं है। अब वक्त का ताकाजा है कि भारत चीन से अपने अक्साई चीन पर किए कब्जे के 86,000 किलोमीटर क्षेत्र को छुड़वाए।
चीन और भारत के बीच एक लंबी सीमा है। यह सीमा हिमालय पर्वतों से लगी हुई है जो म्यामांर तथा पाकिस्तान तक फैली है। इस सीमा पर चीन बार-बार अतिक्रमण करने की चेष्टा करता रहता है। हालांकि उसे हमारे वीर जवान कसकर कूटते भी हैं।
ब्रिक्स की चर्चा जरूरी
बहरहाल. भारत-चीन के बीच ताजा विवाद के आलोक में ब्रिक्स को लाना जरूरी है। यह पांच प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं का समूह है। इसमें भारत-चीन के साथ-साथ ब्राजील, रूस और दक्षिण अफ्रीका भी हैं।
ब्रिक्स देशों में विश्वभर की 43 फीसद आबादी रहती है, और विश्व का सकल घरेलू उत्पाद का 30 फीसद इन्हीं पांच देशों में है और विश्व व्यापार में इन देशों की 17 फीसद हिस्सेदारी है। कहने को तो सभी ब्रिक्स देश आपस में व्यापार, स्वास्थ्य, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, शिक्षा, कृषि, संचार, श्रम आदि मसलों पर परस्पर सहयोग का वादा करते हैं।
लगता है कि इनके वादे कागजों पर ही होते हैं। ये सिर्फ शिखर सम्मेलन भर कर लेते हैं। जब ब्रिक्स समूह देशों का कोई नालायक साथी गड़बड़ करता है, तो सब बाकी सदस्य देश चुप हो जाते हैं। क्या इस समय चीन को रूस, ब्राजील और दक्षिण की तरफ से कसा नहीं जाना चाहिए?
क्या ब्रिक्स देशों के सदस्यों को अपने इन दो सदस्य देशों के विवाद को सुलझाने की दिशा में आगे नहीं आना चाहिए? पर हैरानी यह होती है कि फिलहाल किसी भी देश ने चीन को समझाया या कसा नहीं है। तो फिर इस तरह के निकम्मे तथा अकर्मण्य मंच में रहने का लाभ ही क्या है?
क्या सारी जिम्मेदारी भारत की
राजधानी दिल्ली के डिप्लोमेटिक एरिया चाणक्यपुरी में ब्रिक्रस गॉर्डन के आगे से गुजरते हुए यह सवाल मन जेहन में आता जरूर है कि क्या ब्रिक्स को लेकर सारी जिम्मेदारी भारत की ही है? सड़क से गुजरते हुए इधर सौ से अधिक गुलाब के फूलों की प्रजातियों की महक से आप खुश जरूर होते हैं।
पर इसी दरम्यान बहुत सारे सवाल भी आपको परेशान भी करते हैं। भारत के कूटनीतिज्ञों को चीन से अपने भावी संबंधों के साथ-साथ ब्रिक्स की भूमिका पर भी देर-सबेर विचार करना ही होगा।
इस बीच, भारत को नेपाल से अपने संबंधों को लेकर भी ध्यान से कदम उठाने होंगे। नेपाल से भारत के रोटी बेटी के रिश्ते से भी ऊपर खून का रिश्ता है। अनगिनत गोरखा सिपाहियों ने भारत के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया है।
मुद्दा नेपाल का
दोनों देशों के बीच सीमा का विवाद बातचीत से शांतिपूर्वक हल होना चाहिए। कालापनी इलाके के अलावा एक और भी इलाका दोनों देशों के बीच में विवादास्पद है - सुस्ता वाला इलाका जो कि गोरखपुर से लगता है। उसकी देखरेख सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) करती है।
भारत को कूटनीति से ही काम लेना पड़ेगा। हम नेपाल को चीन या पाकिस्तान की श्रेणी में रखने की भूल भी नहीं कर सकते। हालांकि कुछ अति उत्साही मित्र कह रहे हैं कि भारत को चाहिए कि वह नेपाल को मजा चखा दे। यह एक गलत सोच है।
जब हम बांग्लादेश के साथ सीमा विवाद हल कर सकते हैं तो नेपाल के साथ क्यों नहीं। भारत को किसी भी स्थिति में नेपाल से संबंध सामान्य बनाने ही होंगे। हालांकि नेपाल को आजकल चीन लगातार भड़का रहा है। यह बात अलग है कि नेपाल की जनता भारत को दिल से प्रेम और आदर करती है। इस वक्त को हमें चीन को कसने की रणनीति बना लेनी चाहिए।