कविता, फाग: ढप चंग संग आ गा ले फाग, हमजोली आ खेलें फाग

Update:2018-02-28 15:44 IST

ढप चंग संग आ गा ले फाग

हमजोली आ खेलें फाग।।

फागुन आया मतवाला

हर और रंग अबीर है छाया

मोहे मल दे रंग देसांवरे

अपने रंग में आज बावरे।।

 

इस तन जाने कैसी लगी है आग

आ प्रीत के रंग से खेले फाग।।

मेरे मन को रंग जा तू ऐसो रंग

खिल जाये मोरा अंग अंग।।

 

मोहे ऐसे अंग लगा ले।।

मेरा यौवन मुझे लौटा दे।।

बरसों की मेरी प्यास बुझा दे।।

ऐसी मार पिचकारी मोरे प्यारे

मेरो मन अंतरंग भिजोदे।।

थिरक ऊठूँ मैं अलबेली

आज फिर जरा फाग तू गा दे

ओ सांवरिया मैं तेरी हूँ रे

मोहे भी रंग रसिया सुना दे।।

विजय कनौजिया

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