राजनीतिक नेतृत्व और नौकरशाही के बीच पति पत्नी का रिश्ता होता है, इससे कोई इंकार नहीं कर सकता है। दोनों अपनी विचारधारा एक दूसरे पर थोपने की प्रक्रिया में व्यस्त रहते हैं और आम जनता मूक दर्शक की तरह देखते रहती हैं। दोनों में वैचारिक मतभेद होते हैं लेकिन वे साथ रहते हैं और गृहस्थी चला ही लेते हैं लेकिन उत्तर प्रदेश की कहानी अलग है।
योगी आदित्यनाथ जब सत्ता में आये तो एक प्रशासनिक की तौर पर उनकी स्लेट कोरी थी। उनके प्रारंभिक निर्णय भी इसी की पुष्टि करते हैं। लगभग सात महीनों के बाद भी स्थिति कमोबेश यही है लेकिन इस कहानी में एक नया आयाम जुड़ गया है। वह आयाम है राजनीतिक नेतृत्व और नौकरशाही के बीच अविश्वास का। अब ये दोतरफा है, एकतरफा है और किस तरफ से ज़्यादा है, इसका पता करके भी क्या होगा लेकिन प्रचलित राय यही है कि सरकार में डिलीवरी बहुत धीमी है और अनेक जगह से तो गायब ही है।
प्रदेश में अगर पिछली दो सरकारें देखें तो मायावती और अखिलेश यादव दोनों ने ही मुट्ठी भर नौकरशाहों पर विश्वास व्यक्त किया और इस छोटी टीम से सरकार चलायी। यह योगी जी के साथ नहीं है, उनकी कोई टीम नहीं है सिवाय एक वरिष्ठ अधिकारी के जो उन्हीं के इर्द-गिर्द नजर आते हैं। प्रदेश के अधिकतर वरिष्ठ नौकरशाह हथियार फेंक चुके हैं क्योंकि उनका स्पष्ट मत है कि उन्हें दीर्घकालीन नीति निर्धारण का अवसर नहीं दिया जा रहा है, प्रशासनिक सन्देश अस्पष्ट हैं और उनकी क्षमताओं का इस्तेमाल नहीं हो रहा है।
असमय और बिना एजेंडा की बैठकें सीनियर अधिकारियों का समय तो ले रही हैं लेकिन किसी नतीजे पर नहीं पहुँच रही हैं। कारण यह भी है कि प्रभावी मुख्यमंत्री सचिवालय के अभाव में सारी बैठकें योगी के मोनोलॉग तक सीमित रहती हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी ने ‘अपना भारत’ को बताया कि मुख्यमंत्री योगी का ' ढ्ढ द्मठ्ठश2 द्ग1द्गह्म्4ह्लद्धद्बठ्ठद्द का भाव सरकारी कामकाज प्रभावित कर रहा है और आपसी विश्वास के लिए घातक सिद्ध हो रहा है।
स्थिति यह है कि अधिकारी चुप हैं और कोई मुख्यमंत्री से नहीं बता रहा है कि प्रदेश की सडक़ें क्यों गड्ढामुक्त नहीं हो सकीं और मार्च, 2018 तक प्रदेश खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) क्यों नहीं हो सकता और यह लक्ष्य अव्यवहारिक है, क्यों प्रदेश का नया विकास एजेंडा बनाया जाना चाहिए, क्यों प्रोजेक्ट मैनजमेंट ग्रुप (पीएमजी) जैसी व्यवस्था जरूरी है। कोई तो मुख्यमंत्री को बताये कि तमाम एनकाउंटर के बावजूद पुलिस के निचले तबके में भ्रष्ट्राचार पिछली सरकार की तुलना में ज़्यादा ही हो गया है।
पड़ताल के बाद पता चला है कि पार्टी में भी सरकार को लेकर चिंता की लकीरें हैं और अब जल्द ही ऐसे अधिकारियों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपने की कवायद शुरू की जा सकती है जो काबिल तो हैं लेकिन पिछले सरकार का ठप्पा लगाकर उन्हें हाशिये पर डाल दिया गया था। इसमें जरूरी यह भी है कि मौजूदा टीम में से भी अक्षम अधिकारियों पर गाज गिरे।
योगी जी , जनता सिर्फ सत्ता तक पहुंचाती है, बाकी काम आपको करना है और वह भी चुस्त दुरुस्त नौकरशाही के माध्यम से। यह भी कटु सत्य है कि नौकरशाही का राजनीतिकरण हो चुका है लेकिन यह देखना भी तो आप ही का काम है। जांचों की भूलभुलैय्या से बाहर भले ही न आईये लेकिन सकारात्मक कार्य करने में देर न लगाइये क्योंकि बहुमत बहुत बड़ा था।
(लेखक न्यूजट्रैक/अपना भारत के कार्यकारी संपादक हैं)