एक मशहूर लेखक का कथन है कि जो कन्फ्यूज्ड नहीं हैं इसका अर्थ है आप अपने कार्य के प्रति गंभीर नहीं हैं। अगर इस थ्योरी को उत्तर प्रदेश में योगी सरकार की कार्यप्रणाली पर लागू करके देखें तो लगेगा कि सरकार से ज़्यादा फोकस किसी के पास नहीं है। बस मुश्किल यह है कि यह थ्योरी व्यव्हारिकता के मापदंड पर फेल नजर आती है जब 22 करोड़ जनता पर एक बहुमत सरकार के शासन के परिपप्रेक्ष्य में देखा जाता है।
सच तो यह है कि योगी सरकार हर स्तर पर कन्फ्यूज्ड दिखाई पड़ती है। अब देखिये, 17-18 दिन हो जाते हैं प्रदेश की पुलिस मुखियाविहीन रहती है। अटकलें लगती हैं कि घोषित पुलिस महानिदेशक केंद्र की पसंद नहीं हैं अथवा केंद्र की पसंद हैं लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पसंद नहीं हैं। हो सकता है दोनों में से एक बात सही हो अथवा दोनों गलत हो लेकिन स्थिति कन्फ्यूजन की है। दोनों ही स्थितियों में सरकार की बेबसी नजर आती है।
इस खबर को भी देखें: राग-ए-दरबारी: बात स्वेटर की थी …आप तो संवेदनशीलता की बात करने लगे
हर हफ्ते मुख्य सचिव की विदाई और नए मुख्य सचिव की तैनाती की चर्चा होने लगती है जो प्रशासन में कन्फ्यूजन पैदा करता है। सरकार लखनऊ से चल रही है या नयी दिल्ली से, इस पर अधिकारियों को छोड़ें, आम जनता भी कन्फ्यूज्ड है। दूसरे दलों से भारतीय जनता पार्टी में आकर मंत्री बने विधायक कन्फ्यूज्ड हैं कि क्या उन्हें वाकई बाहरी समझा जा रहा है। उस पर तुर्रा यह कि गाहे बगाहे मंत्रिमंडल में फेरबदल की खबरें अर्थात कन्फ्यूजन का दौर है यह विशेषकर जब से योगी सरकार आयी आयी है। क्यों है आखिरकार यह कन्फ्यूजन ?
कारण तो फिलहाल इतना लगता है कि योगी का सत्तारूढ़ होना ही सबसे बड़ा कन्फ्यूजन है। सरकार कल्याण का एजेंडा चलाएगी कि भगवाकरण पर जोर देगी, इसको लेकर जनमानस ही नहीं सरकारी मशीनरी भी कन्फ्यूज्ड है अन्यथा अतिउत्साही अधिकारी हज हाउस की दीवारें भगवा नहीं रंगवा देते वह भी सिर्फ एक दिन के लिए। सच तो यह है कि बीजेपी ‘पार्टी विद डिफरेंस’ होने का दावा तो कर सकती है लेकिन सरकार यह afford नहीं कर सकती है क्योंकि जनता का स्वरूप तो वही है, उनकी जरूरतें भी वही पुरानी हैं , उनके कल्याण की उम्मीदें भी वर्षों से वहीँ की वहीँ हैं। प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में एक बहुमत की सरकार से सिर्फ त्वरित कल्याणकारी कार्यों की अपेक्षा होती है इसमें कोई कन्फ्यूजन नहीं है तो फिर ऐसा क्यों हो रहा है।
इस खबर को भी देखें: यूपी की आईएएस नौकरशाही: योगी जी तलाश रहे, कहाँ है x- फैक्टर?
अधिकारी कन्फ्यूज्ड दिख रहे हैं, जनप्रतिनिधि भी कन्फ्यूज्ड नजर आ रहे हैं और जनता इसलिए कन्फ्यूज्ड है कि ये लोग आखिर कन्फ्यूज्ड क्यों हैं। डिलीवरी लेवल पर क्या हो रहा है सत्ताशीर्ष पर बैठे किसी को खबर नहीं है, फील्ड में भ्रष्टाचार और संवेदनहीनता का काल अभी भी जारी है, सुनवाई का रास्ता वैसे ही काँटों भरा है। मंत्रियों, सांसदों और विधायकों से बात कीजिये तो वह एक सांस में योगी से ज़्यादा मोदी का नाम लेते हैं। अरे भाई! सरकार तो योगी जी की है, प्रदेश की है और योगी जी चला रहे हैं तो बात बात पर प्रधानमंत्री और इमके कार्यालय की दुहाई क्यों? कम से कम रूटीन मामलों में तो नहीं ही होनी चाहिए।
सालों साल कांग्रेस पर हाईकमान से दबे रहने का आरोप लगाने वाले भाजपाई नेता अब इतने बेबस क्यों दिखाई पड़ते हैं और सबसे बड़ी बात की आम जनता भी यह चर्चा करने लगी कि कौन मोदी के और कौन शाह के नजदीक है। मतलब यह कि कन्फ्यूजन का दौर है उत्तर प्रदेश में। किसी ने क्या खूब कहा था कि ' India is a wonderful example of functional anarchy ' और उत्तर प्रदेश भो अपवाद नहीं है।
(लेखक न्यूजट्रैक/अपना भारत के कार्यकारी संपादक हैं)