रामकृष्ण वाजपेई
आज 2018 के अवसान की बेला में जब इस साल का हिसाब किताब करने बैठा हूं तो बरबस ध्यान एक ऐसे नेता के उभार पर जाकर रुक जाता है जिसे लोगों ने तमाम तरह के नाम दिये, सोशल मीडिया पर उसे लेकर तरह तरह के चुटकले गढ़े गए लेकिन उस युवा नेता ने कभी किसी बात का बुरा नहीं माना, पूरी एकाग्रता के साथ अपनी मंजिल की तरह एक एक इंच सरकता गया। आज हालात यह हैं कि 2018 को अगर गौर से देखें तो यह साल जिस एक नेता का राष्ट्रीय क्षितिज पर उभार दिखा रहा है वह राहुल गांधी के सिवाय दूसरा कोई नहीं है।
गौर से देखें तो 2014 में राहुल एक अपरिपक्व नेता नजर आते हैं। वास्तव में ऐसा लगता था कि किसी को ऊपर से थोप दिया गया। राजनीति में उनका नौसिखियापन उन्हें हंसी और मजाक का पात्र बनाता था लेकिन समय के साथ राजनीति का यह कच्चा खिलाड़ी मजबूत होता गया। उसने अपनी खामियों को पहचाना उन्हें दूर किया। करीब करीब पूरे देश की यात्राएं कीं। और 2017 के दिसंबर में जब उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया तो राहुल गांधी ने इसे एक चुनौती के रूप में लिया। और समय के साथ वह कांग्रेस के एक स्टार प्रचारक और रणनीतिकार के तौर पर उभरते चलते गए। उनकी चिरप्रतिद्वंद्वी रही भारतीय जनता पार्टी को यह अहसास ही नहीं होने पाया कि राजनीति का यह शिशु कब परिपक्व हो कर जवान बन गया।
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राहुल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्ष की एक मजबूत आवाज बनकर उभरे तो तमाम भाजपा नेताओं को गहरा झटका लगा। कांग्रेस और राहुल को कोसने की उनकी नीति मुंह के बल गिर चुकी है लेकिन भाजपा नेता अभी भी अपना फटा ढोल पीटने में लगे हैं। राहुल गांधी हिंदी पट्टी की मुश्किल चुनावी लड़ाई में अपनी राजनीतिक जगह बना चुके हैं। अपनी पार्टी को तीन राज्यों में जिताकर अपनी धाक मनवा चुके हैं। राहुल गांधी के इस धमाके का असर कुछ महीने दूर लोकसभा चुनाव में भी होगा।
राहुल गांधी ने 2018 की शुरुआत कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में की थी। पार्टी के संगठनात्मक चुनाव के बाद उनकी मां सोनिया गांधी से उन्हें यह पद मिला था। जिसकी पहली झलक पंजाब और पुडुचेरी में देखने को मिली जहां पार्टी ने सबसे पहले सत्ता में वापसी की। इसके बाद पार्टी की कर्नाटक में वापसी में भी उनका योगदान कम नहीं रहा। यहां पार्टी सत्तारूढ़ गठबंधन में घटक दल है। बीते चार वर्षो में पार्टी ने भाजपा को सीधी लड़ाई में मात नहीं दी थी लेकिन हाल के विधानसभा चुनाव में यह भी हो गया जब मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा को सीधे मुकाबले में कांग्रेस से मुंह की खानी पड़ी।
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वस्तुतः राहुल गांधी के कुशल नेतृत्व में कांग्रेस के आगे बढ़ने के पीछे की ठोस वजह यह है कि राहुल ने अपने काम की शुरुआत कमजोरियों की पहचान कर और कमियों को दूर कर विधिवत तरीके से की। उन्होंने मोदी को उनके ही तरीके से पछाड़ा। मोदी का सबसे बड़ा हथियार सोशल मीडिया था इसलिए राहुल ने सोशल मीडिया पर अपनी उपस्थिति बढ़ाई और कभी हल्के-फुल्के तो कभी कड़े ट्वीट और फेसबुक पर पोस्ट के जरिए लोगों से सीधे संवाद का रिश्ता कायम किया।
मजे की बात यह है कि मोदी जिस आदमी को मुद्दा बनाकर 2014 में सत्ता में आए थे राहुल ने कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद उसी आम आदमी से जुड़ने का प्रयास किया। वह लगातार आम आदमी के मुद्दे जैसे भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, किसानों की दुर्दशा, नोटबंदी, मूल्य वृद्धि जैसे मुद्दों को लेकर हमलावर रहे। और अंततः वह भाजपा नेताओं को अमीरों का दोस्त बताने की कोशिश में कामयाब होते दिखे।
भाजपा नेता राष्ट्रीयता का राग आलापते थे राहुल ने भाजपा को उनके ही राष्ट्रीय मुद्दों पर घेरा। राहुल ने डोकलाम के समीप चीनी सेना के निर्माण कार्य पर सरकार की चुप्पी और जम्मू एवं कश्मीर में पाकिस्तान की ओर से लगातार घुसपैठ को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साधा। राहुल फ्रांस से राफेल लड़ाकू विमान सौदे पर इस कदर हमलावर हुए कि शुरू में तो ऐसा लगा जैसे राजग सरकार को सांप सूंघ गया है। राहुल गांधी ने एक बात को स्थापित करने की कोशिस की कि राजग सरकार के मुखिया 'निजी तौर पर भ्रष्ट' नहीं हैं लेकिन उनके अधिकारी भ्रष्ट हैं।
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जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स सबसे पहले राहुल गांधी ने कहा था कांग्रेस टैक्स की बढ़ी दरों के खिलाफ थी उस समय भाजपा ने राहुल गांधी का मजाक बनाया लेकिन अंततः अब सरकार जीएसटी की दरों में परिवर्तन कर कांग्रेस को सही ठहराने का प्रयास कर रही है।
राहुल ने संगठनात्मक मुद्दों को सुलझाया और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति में बुजुर्गों और युवाओं का प्रभावशाली तरीके से समायोजन कर बदलाव किया। सबसे बड़ी बात यह है कि राहुल गांधी ने दो राज्यो में सत्ता हासिल करने के बाद समानांतर लीडरशिप में दो दो दावेदारों के मुद्दे को जितनी सहजता और बेहतर ढंग से निपटाया यह उनकी कार्यकुशलता को साबित करता है। और फिर यह महसूस करते हुए कि भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए कांग्रेस को और सहयोग की जरूरत पड़ेगी। राहुल ने 2019 में खुद को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश करने की रणनीति को बदलते हुए कह दिया कि चुनावों के बाद इस संबंध में निर्णय लिया जाएगा।