राग - ए- दरबारी: ‘आज बचेंगे तभी तो कल विजय पा सकेंगे’

Update:2018-03-16 17:15 IST

संजय भटनागर

उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी लोकसभा की दो सीटों पर उपचुनाव में हार गयी। राजनीति में होता रहता है ऐसा सब। बात खास लगती है कि ये सीटें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री प्रसाद मौर्य की थीं। बात यह भी खास लगती है कि इस परिणाम से दूरगामी असर यह हो सकता है कि अगले आम चुनाव में विपक्षी एकता ,विशेषकर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी, के गठबंधन की संभावनाएं प्रबल हो गयीं। लेकिन सच तो यह है कि इसमें कुछ भी ख़ास नहीं है।

हार के बाद योगी आदित्यनाथ की प्रतिक्रिया थोड़ी सी खास रही कि सपा-बसपा के बेमेल गठजोड़ को लेकर भाजपा ‘ओवरकॉन्फिडेन्स’ में थी। यह तो स्वीकारोक्ति थी लेकिन इसमें ख़ास था योगी का गठजोड़ को बेमेल कहना। भाजपा हार गयी तो विपक्षी गठजोड़ बेमेल हो गया। शत्रु की रणनीति थी यह तो और फिर योगी जी पराजय में आपसे गरिमा की दरकार है। चलिए यह भी जाने दीजिये - इसमें खासमखास यह है कि इस हार की बाद विपक्ष ही नहीं, आम जनता ही नहीं बल्कि भाजपा के नेता भी दबी जबान में कहते सुने गयी कि चलो अच्छा हुआ, यह जरूरी था। यह क्या है और क्यों है , भाजपा के लिए यह चिंता नहीं तो कम से कम आत्मावलोकन का समय है। बात सिर्फ सपा -बसपा गठजोड़ का नहीं बल्कि प्रदेश में भाजपा के सरकार के प्रदर्शन और लोगों की आम राय की है।

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ऐसा आखिरकार है क्यों कि सब लोग यह कहते सुनायी पड़ रहे हैं कि जो हुआ ठीक हुआ। चार वर्ष की मोदी सरकार और एक साल की योगी सरकार के प्रति ‘मोहभंग’ भगवा पार्टी के लिए चिंता और चिंतन का विषय है। राजनीतिक तौर पर देखा जाये तो यह अच्छा हुआ कि 2019 लोक सभा चुनाव के लिए भाजपा को रणनीति बनाने का समय मिल गया लेकिन विचारणीय यह है कि भाजपा के कट्टर समर्थक भी कह रहे हैं कि जो हुआ अच्छा हुआ।

योगी जी, बात साफ़ है कि मोदी और अमित शाह को जितना करना चाहिए था , वे काफी कर चुके हैं , अब आपको अपने गिरेबान में झांकना है। ज़ाहिर है आपके हिंदूवादी बयान और कट्टर हिंदूवादी छवि अब लोगों में उतनी चमकदार नहीं रही अथवा आपकी गवर्नेंस में कोई कमी रह गयी कि लोग कह रहे हैं यह तो होना ही था और जो हुआ अच्छा हुआ।

योगी जी , आप तो उस पार्टी से ताल्लुक रखते हैं जिसके नेता अटल बिहारी वाजपेयी की कालजयी पंक्तियाँ ‘हार नहीं मानूंगा , रार नहीं ठानूंगा’ आज भी प्रेरणास्रोत हैं राजनीतिज्ञों के लिए। सच है कि राजनीति में अंतिम कुछ नहीं होता है , सब अनंतिम है। गरिमा बनाये रखें , आशा संचारित करते रहें और गलतियां सुधारते रहें। आज जो है , ज़रूरी नहीं कल भी हो। ये पंक्तियाँ आप पर और विपक्ष पर सामान रूप से लागू होती हैं कि अगर आप आज जि़ंदा रहेंगे तभी कल शत्रु को मर पाएंग।’ हालांकि कल तो एक छलावा है।

(लेखक न्यूजट्रैक/अपना भारत के कार्यकारी संपादक हैं)

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