जब से नरेंद्र मोदी चुनाव सत्ता पर काबिज हुए हैं, अक्सर में कहा जाता है कि वह हमेशा ही ‘कैंपेन मोड’ में रहते हैं। वह प्रधानमंत्री हैं, अगर ऐसा करते हैं तो भी उनके पास मानव और वित्तीय संसाधन हैं कि बाकी काम चलता रहे। अब सवाल यह उठता है कि क्या उत्तर प्रदेश जैसे बड़े और ‘विकासशील’ राज्य में यह आसानी से संभव है क्योंकि कमोबेश यहां का हाल भी कुछ ऐसा ही है। प्रदेश में विधान सभा चुनाव के आठ महीने गुजर चुके हैं लेकिन विकास एजेंडे के नाम पर ऐसा कुछ भी जमीन नजर नहीं आ रहा है।
आज स्थिति यह है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित लगभग सभी प्रमुख मंत्री नगर निकाय चुनाव में व्यस्त हैं और अभी एक सप्ताह और लगेगा। नगर निकाय चुनाव, उसके मद्देनजर चुनाव आचार संहिता और मंत्रीगणों की व्यस्तता यानी फिलहाल सरकारी कामकाज ठप्प। यही क्यों, इससे पहले मुख्यमंत्री गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव में भी काफी समय बिता चुका हैं। इस चुनाव के बाद यह भी तय है कि अगले लोक सभा चुनाव की तैयारी शुरू हो जायेगी अर्थात राजनीति और राजनीति। फिर स्वाभाविक सवाल कि राजनीति के कारण ही पिछड़े उत्तर प्रदेश का विकास एजेंडा कब तैयार होगा। सवाल मोदी जी से भी और उससे मुखर योगी जी से।
चाणक्य ने राजनेताओं को आदर्श वाक्य दिया था कि राजनीति के लिए नीति आवश्यक है। उत्तर प्रदेश के सन्दर्भ में एक और बात समीचीन है कि यहां विकास के सिवा कोई नीति न तो संभव है न ही कोई और नीति बनाई जानी चाहिए। तो क्या यह मान लेना चाहिए कि योगी सरकार के पास प्राथमिकताएं भ्रमित हैं और सरकार भगवाकरण जैसे कार्यों को ज्यादा तवज्जो दे रही है।
अब अगर भगवाकरण की ही बात करें तो भी जो दृश्य सामने आता है वह भी चौंकाने वाला है। एक आरटीआई आवेदन पर दिए गए सरकारी जवाब के अनुसार योगी सरकार द्वारा हिंदुत्व से ताल्लुक रखने वाली घोषणाओं का भी अमल नहीं हो सका है। घोषणानुसार कैलाश मानसरोवर यात्रा के अनुदान के भुगतान की कार्यवाही अब भी प्रक्रियाधीन एवं परीक्षणाधीन है। इसी तरह अयोध्या में भजन संध्या स्थल के निर्माण के साथ साथ चित्रकूट में परिक्रमा पथ एवं भजन संध्या स्थल के निर्माण हेतु वर्तमान वित्तीय वर्ष में अब तक कोई धनराशि अवमुक्त नहीं हो सकी है।
इसके अलावा धर्मार्थ कार्य विभाग की वेबसाइट बनाने के लिए ,सिंधु दर्शन के लिए अनुदान और अयोध्या में रामलला के मंदिर के तिरपाल के लिए भी वर्तमान वित्तीय वर्ष में कोई धनराशि अवमुक्त नहीं की गयी है। इसका क्या अर्थ लगाया जाए कि सरकार विकास कार्य तो क्या अपनी घोषणाओं के प्रति भी गंभीर नहीं है।
आज की स्थिति के अनुसार तो एक सप्ताह तक तो सरकार कुछ भी सुनने या करने की स्थिति में नहीं है, उसके बाद क्या होगा देखा जायेगा।
(लेखक न्यूजट्रैक/अपना भारत के कार्यकारी संपादक हैं)