विष पाई न बने

Update:2018-12-11 18:37 IST
बात जनता पार्टी के शासन के बाद की है। मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री की कुर्सी से हट चुके थे। अलवर के कंपनी बाग में एक जनसभा के लिए आये थे। सर्किट हाउस में रुके थे। छात्र युवा संघर्ष वाहिनी को उनकी देखरेख में लगाया गया था। सर्किट हाउस में लंच था। लंच में एक गिलास दूध, चीकू और पपीते के टुकड़े तथा थोड़े से खजूर थे। उसे खाने में उन्होंने 45 मिनट लगा दिया। युवा वाहिनी के एक शरारती शख्स कपिल ने उनसे कहा कि इतना खाने में तो मैं केवल एक मिनट लगाता। आप ने पौन घंटे लगा दिये। मोरारजी भाई का जवाब था। जो काम हमको दांतों से करवाना चाहिए। उसे आंतों से नहीं करवाना चाहिए। आप सब यही करते हैं।
अलवर जनता पार्टी के जिलाध्यक्ष शांति स्वरूप डाटा थे। वह लाॅन में बैठे थे। मोरारजी देसाई ने पूछा मीटिंग का समय क्या है। डाटा का जवाब था- शाम पांच बजे। मोरारजी देसाई ने अपनी घड़ी देखी तो पांच बजने वाले थे। वह चलने को निकल पड़े। डाटा ने कहा, थोड़ी देर रुक जाइये, भीड़ आ जाये। मोरारजी देसाई का जवाब था, ‘‘मैं भीड़ के लिए थोड़े आया हूं।‘‘ वह ठीक समय जनसभा स्थल पहुंचे। हालांकि भीड़ थी। उन्होंने अपना भाषण दिया। पर आधी पब्लिक उनके भाषण के बाद पहुंची। प्रेस कांफ्रेंस में एक सवाल के जवाब में मोरारजी देसाई ने संपूर्ण क्रांति को सिरे से खारिज कर दिया था। हालांकि उनकी ताजपोशी संपूर्ण क्रांति के चलते हुए परिवर्तन के नाते हुई थी। उन्होंने जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति को यह कह कर खारिज किया कि मेरे विचार से कोई संपूर्ण क्रांति नहीं होती है। हालांकि मोरारजी भाई को प्रधानमंत्री बनाने में जयप्रकाश नारायण और आचार्य कृपलानी की भूमिका थी। जब जयप्रकाश नारायण पटना में बीमार थे और मोरारजी देसाई से कहा गया कि वह उन्हें देखने जाएं। तब उनका जवाब था- ‘‘मैं महात्मा गांधी को कभी देखने नहीं गया तो जयप्रकाश नारायण क्या चीज हैं।‘‘ जगजीवन राम ने संसद में आपातकाल का प्रस्ताव पेश नहीं किया होता तो शायद उन्हीं की लाटरी लगती। लंबे समय तक नेहरू के सचिव थे मथाई। उनसे नेहरू ने कहा था कि पुरुषोत्तम दास टंडन और मोरारजी देसाई दो ऐसे राजनीतिक शख्स थे, जो खांटी खरे थे। तभी तो मथाई कहा करते थे कि मोरारजी देसाई को समझना हो तो कुतुबमीनार के सामने जो लोहे का खंभा है, उस पर गांधी टोपी पहना दीजिए। वह बिल्कुल सीधे खरे और कड़े थे। सख्त किस्म के गांधीवादी, दीवानगी की हद तक इमानदार। वह कहा करते थे कि मैं इस संदर्भ में राइटिस्ट हूं। क्योंकि मैं राइट दिशा में काम करने का आदी हूं।
नेहरू के निधन के बाद कुलदीप नैयर लाल बहादुर शास्त्री का संदेश लेकर मोरारजी देसाई के पास गये कि अगर वे जयप्रकाश नारायण और इंदिरा गांधी के नाम में से किसी एक के नाम पर सहमत हो जाते हैं, तो शास्त्री जी खुद को पीछे कर लेंगे। मोरारजी भाई का टका सा जवाब था- ‘‘जयप्रकाश नारायण संभ्रमित व्यक्ति हैं। इंदिरा के बारे में कहा- दैट चिट आॅफ ए गर्ल।‘‘ मोरारजी भाई के प्रधानमंत्री बनने की इस खुले मन से व्यक्त की जा रही अभिलाषा ने माहौल उनके खिलाफ कर दिया। लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बन गए। लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद फिर उन्होंने प्रधानमंत्री बनने की कोशिश की। इंदिरा गांधी ने वित्त मंत्री और उप प्रधानमंत्री बनाया। राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार, बैंकों के राष्ट्रीयकरण और प्रिवी पर्स पर इंदिरा गांधी पर इस कदर टकराव हुआ कि वित्त मंत्रालय उनके हाथ से चला गया, उप प्रधानमंत्री पद उन्होंने छोड़ दिया। राॅ के पूर्व अधिकारी बी. रमन अपनी किताब ‘काऊ ब्वाॅएज आॅफ राॅ‘ में लिखते हैं कि 1978 में देसाई फ्रांस की यात्रा पर गये तो वहां भारतीय राजदूत आर.डी. साठे के घर रुके। मोरारजी देसाई के जाने के बाद राजदूत की पत्नी ने सारे गिलास घर से महज इस लिए फिकवा दिये। क्योंकि उनमें से पता नहीं किसमें मोरारजी देसाई ने स्वमूत्रपान किया था। इसे वह एक थेरेपी मानते थे।
जार्ज वर्गीज ने अपनी आत्मकथा ‘फस्र्ट ड्राफ्ट‘ में लिखा है कि कनाडा में देसाई एक नाइट क्लब में भी गये। वह नटवर सिंह से इस लिए नाराज रहते थे क्योंकि उन्हें यह बताया गया था कि जिस दिन आपातकाल लगा उस दिन नटवर सिंह ने जश्न मनाया था। पाकिस्तानी लेखक कैप्टन एस.एम. हाली ने ‘पाकिस्तान डिफेंस जनरल‘ में लिखा है कि- 1977 में एक एजेंट ने कहूता परमाणु परियोजना का ब्लू प्रिंट दस हजार डाॅलर में भारत को बेचने की पेशकश की। मोरारजी देसाई को जब बताया गया तो उन्होंने जनरल जियाउल हक को फोन करके बताया कि आप कहूता में परमाणु बम बना रहे हैं। नतीजतन, भारत को ब्लू प्रिंट नहीं मिल पाया। राॅ का जासूस पकड़ा गया। जब जनता पार्टी के दौर में कलह शुरू हुई तब चरण सिंह को मनाने की सलाह पर मोरारजी देसाई कह उठे- ‘‘ मैं चरण सिंह को चूरन सिंह बना दूंगा।‘‘ कम्युनिस्ट हमेशा यह प्रचार करते थे कि मुंबई के दादर स्टेशन के पास मोरारजी गोकुलदास टेक्सटाइल मिल जो है, वह मोरारजी देसाई की है। इस पर यकीन भी किया जाता था, पर सच्चाई यह है कि मोरारजी देसाई ओसिमाना बिल्डिंग के ग्राउंड फ्लोर पर 1946 से रेंट कंट्रोल एक्ट के तहत रह रहे थे। जिनकी बिल्डिंग थी वह मुकदमा जीत गये। और उन्होंने मोरारजी देसाई के जीवित रहते उनका सामान फिकवा दिया। शरद पवार ने तरस खाकर उन्हें आजीवन एक फ्लैट आवंटित किया। इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी को लेकर चरण सिंह जब अड़े थे तब भी मोरारजी देसाई ने कहा था कि ऐसे कुछ नहीं होगा। डयू प्रासेस में आप लोगों को काम करना चाहिए, हालांकि उनकी अनसुनी कर दी गई। नतीजतन, अदालत में साढ़े तीन मिनट में यह फैसला रद्द हो गया। चिकमंगलूर से इंदिरा गांधी के निर्वाचन को निरस्त कराने के पक्ष में भी मोरारजी देसाई नहीं थे। हालांकि उनका सारा का सारा आत्म अभिमान, अड़ियलपन, कठोरता, सिद्धांत के साथ खड़े होने की जिद, कुतुबमीनार के लौह स्तंभ पर गांधी टोपी लगाकर मोरारजी देसाई को समझने का प्रतीक सब के सब उनके पुत्र मोह के आगे इस कदर आधारहीन और बौने लगते थे कि वह दांतों का काम आंतों से भले न लेते हो। लेकिन किससे क्या काम लेंगे यह अंदाज लगा पाना मुश्किल था। उनके सिद्धांत किस पर कितने भारी पड़ेंगे यह कह पाना असंभव था। सिद्धांत राष्ट्र की जरूरतों से कई बार ऊपर हो जाते थे।

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