लखनऊ: प्रचार प्रमुख, प्रधानमंत्री उम्मीदवार और प्रधानमंत्री होने के नरेंद्र मोदी के कालखंड में देश बड़े परिवर्तन का आकांक्षी था। अन्ना हजारे के 2011 के आंदोलन के बाद कांग्रेस सरकार के खिलाफ उठ रही आवाजें और भ्रष्टाचार के आरोप मोहभंग की कहानी कह रहे थे। अब जब नरेंद्र मोदी बतौर प्रधानमंत्री तीन साल पूरे कर चुके हैं तो उनका मूल्यांकन उस कालखंड की आकांक्षाओं, अपेक्षाओं और परिवर्तन के अभीष्ट के मद्देनजर ही किया जाना चाहिए। पिछला लोकसभा चुनाव मोदी ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लड़ा था। जनाकांक्षाओं और भ्रष्टाचार के सवाल पर देखें तो मोदी सरकार अपेक्षाओं पर कमोबेश खरी उतरी है। उसने नीति आयोग बनाया, रेल बजट को मुख्य बजट का हिस्सा बनाया, नोटबंदी लागू करने जैसे संरचनात्मक बदलाव का हौसला दिखाया, तीन साल तक पूरी सरकार को ही नहीं बल्कि अपनी पार्टी के दामन को भी भ्रष्टाचार की कालिख से दूर रखा। कालेधन के खिलाफ अभियान में देश के स्तर पर दृढ़ता दिखाई। निष्प्रयोज्य हो चुके कई कानून खत्म कर दिए। अपने काम के बूते सूट-बूट की सरकार होने के आरोप को खारिज कर दिया।
जब देश का समूचा विपक्ष जाति-धर्म, क्षेत्र, भाषा, मुद्दों, चेहरों और प्रतीकों की लड़ाई में अपनी लोकतांत्रिक शक्ति लगा रहा हो तब मोदी ने प्रधानमंत्री जैसे पद को टू-वे कर दिया। मोदी का यह दोतरफा संवाद लोगों को उनके जन्मदिन व सफलताओं में बधाई देते हुए दिखता है। ट्विटर पर तीन करोड़ से ज्यादा लोग उनके फालोवर हैं। उनके फेसबुक पेज पर 4.8 करोड़ लाइक हैं। भारत के किसी भी राजनीतिक दल के नेता का पद भी अगर टू-वे है तो सिर्फ कार्यकर्ता तक है। मोदी ने उज्जवला योजना के मार्फत 2.1 करोड़ महिलाओं तक अपनी पहुंच बनाई। अगले दो साल में इस योजना के तहत तीन करोड़ कनेक्शन और बांटे जाएंगे। 25 करोड़ 58 लाख लोग जनधन योजना के तहत खाते खुलवा चुके हैं। प्रधानमंत्री बीमा योजना से पांच करोड़ लोगों को लाभ मिल चुका है। मुद्रा योजना के तहत एक करोड़ 73 लाख लोग कर्ज पाकर कारोबार कर रहे हैं।
कुल मिलाकर अलग-अलग योजनाओं में 7.4 करोड़ छोटे कारोबारियों को कर्ज दिया गया है। मन की बात के जरिये मोदी 20 करोड़ से अधिक लोगों से सीधा संवाद स्थापित कर चुके हैं। पचास लाख मोदी एप डाउनलोड हो चुका है। फसल बीमा योजना के जरिये देश के 56 फीसदी किसानों तक पहुंच बनाई है। डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के जरिए सब्सिडी के बहाने 30 करोड़ लोगों से जुड़े हैं। सुकन्या समृद्धि योजना के जरिये एक करोड़ खाते खोलकर मोदी ने सिर्फ मौजूदा परिवार नहीं बल्कि भविष्य तक पहुंच बना ली है। 13 करोड़ लोग सामाजिक बीमा के दायरे में लाए गये हैं। दवाओं की कीमत कम कर हर बीमार के दिल में उतर जाने की बाजीगरी भी मोदी के खाते की महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
स्वच्छ भारत अभियान में एक करोड़ टायलेट बनाकर इतने घरों में पैठ बनाई है। तीन तलाक के मार्फत वे 9 करोड़ मुस्लिम महिलाओं तक पहुंचने में कामयाब हुए हैं। माइ जीओवी डॉट इन वेबसाइट के 42 लाख यूजर हैं। 37 लाख कमेंट और विचार दर्ज हैं। इस पर लोग अपनी शिकायत, परेशानी, विचार और सुझाव सीधे प्रधानमंत्री समेत हर विभाग तक पहुंचा देते हैं।
मोदी ने 70 साल में पहली बार सरकार की भूमिका को योजनाओं से आगे ले जाकर लोगों से संवाद स्थापित करने का करिश्मा किया है। 7.4 प्रतिशत जीडीपी, 3.2 फीसदी राजकोषीय घाटा, थोक महंगाई दर 3.85 और खुदरा महंगाई दर 2.99, औद्योगिक उत्पादन की बढ़ोत्तरी की दर 2.7 फीसदी, एक करोड़ से अधिक करदाताओं की संख्या में इजाफा सरीखी तमाम उपलब्धियां कमोबेश किसी भी सरकार के खाते में आ जा सकती हैं मगर विपक्ष में खड़े होकर पक्ष को ललकारना और चुनावी नतीजों में उसे एक कमजोर विपक्ष बना देना सिर्फ आकंड़ों के बलबूते नहीं हो सकता है। वह भी तब जब कालाधन वापसी, रेल का आसमान छूता किराया, गंगा शुद्धिकरण, बुलेट ट्रेन, स्मार्ट सिटी, रोजगार और कश्मीर समस्या जैसे सवाल पर सरकार माकूल उत्तर न रखती हो। तब भी जहां कांग्रेस है वहां विकल्प भाजपा है और जहां भाजपा है वहां कोई विकल्प नहीं है।
सरकारों की नीतियां लगभग एक ही तरह की होती है। उसे संपर्क, सरोकार, संवाद संबंध और नियति के आधार पर जनसमर्थन मिलता है। पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी ने अपनी पार्टी के लिए 17 करोड़ से अधिक वोट जुटाए थे। कांग्रेस 11 करोड़ के आसपास सिमट गयी थी। पंजाब, दिल्ली, बंगाल और बिहार को छोड़ दें तो मोदी और अमित शाह का अश्वमेघ जारी है। तमिलनाडु में रजनीकंात तो कर्नाटक में एम एस कृष्णा ने उम्मीदें बहुत बढ़ा दी हैं। आज मोदी देश के तकरीबन 53 फीसदी मतदाताओं की पसंद हैं। विपक्ष उन्हें मुद्दों, सवालों, प्रतीकों, नारों और धर्मनिरपक्षता पर घेर रहा है जबकि मोदी निरंतर सीधा संवाद करते हुए अपने साथ लोगों को जोड़ रहे हैं।
तुष्टीकरण के सवाल पर मोदी गुजरात से दिल्ली तक इंच भी नहीं डिगे हैं। यह भी ताकत है जिसे विपक्ष कमजोरी समझ रहा है। जो कुछ हो रहा है उसे नरेंद्र मोदी का जादू भी कह सकते हैं, लेकिन यह उन्हें खारिज करने का आधार नहीं हो सकता है क्योंकि इस जादू में उम्मीद के अनंत सपने हैं। अंत्योदय से लेकर गांधीवाद के दर्शन की पुनरावृत्ति है। मोदी योजनाओं से निकलकर लोगों तक पहुंच रहे हैं। उनकी लोगों से सीधे संवाद की कोशिश रफ्तार को बढ़ाती है। विपक्ष अभी तक परंपरागत तौरतरीकों पर टिका है। मोदी आभासी और वास्तविक दोनों दुनिया में दिख रहे हैं। लगता है कि विपक्ष को मोदी की यह रणनीति समझने में कुछ चुनाव और लगेंगे।