लखनऊ : बसपा मुखिया मायावती ने महाराष्ट्र में भीमा कोरेगाँव शौर्य दिवस की 200वीं सालगिरह के मौके पर दलितों पर हुए हमलों को दलित स्वाभिमान को कुचलने का कुत्सित प्रयास करार दिया है। बुधवार को जारी एक बयान में उन्होंने कहा है कि महाराष्ट्र में बीजेपी की साजिश व संलितप्ता का ही परिणाम है कि सहारनपुर के शब्बीरपुर गाँव की तरह महाराष्ट्र में पुणे के भीमा कोरेगाँव में जातीय संघर्ष कराने का प्रयास किया गया।
मायावती ने कहा कि यह पहले से पता था कि शौर्य दिवस की 200वीं वर्षगांठ के मौके पर दलित समाज के लोग बड़ी संख्या में भीमा-कोरेगांव पहुँचने वाले थे। उनको सुरक्षा और जनसुविधा देने के बजाय ‘‘भगवा ब्रिगेड‘‘ के लोगों ने इन्हीं लोगों पर ही हमला कर दिया। यह बीजेपी सरकार की साजिश व संरक्षण के बिना सम्भव नहीं है। इस मामले में महाराष्ट्र सरकार द्वारा न्यायिक जाँच का आदेश सिर्फ दिखावटी और लोगों की आँखों में धूल झोंकने का प्रयास है।
हर वर्ष महार समाज के लोग अर्पित करते हैं श्रद्धा सुमन
मायावती ने कहा कि महाराष्ट्र के महार समाज के लोग युद्धक रहे हैं और इसी कारण ब्रिटिशकाल में उन्होंने सेना में रहकर काफी शौर्य अर्जित किया। यह किसी से भी छिपा नहीं है। इसी क्रम में डा. भीमराव अम्बेडकर के अनुयायी, हर वर्ष पुणे के भीमा-कोरेगाँव स्थित ‘‘शौर्य भूमि‘‘ जाकर अपने बुजुर्गों को श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं जिन्होंने आज से 200 वर्ष पहले युद्ध में अपनी शहादत दी थी।
तमाशबीन बनी रही महाराष्ट्र सरकार
उन्होंने कहा है कि इस वर्ष इसका विशेष आयोजन था, लेकिन जातिवादी लोगों को दलितों का यह आत्म-सम्मान व स्वाभिमान का प्रयास पसन्द नहीं आया, उन्होंने हिंसा फैलाई और महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार ख़ामोश तमाशाई बनी रही। अगर राज्य सरकार इस मामले में थोड़ा भी संवेदनशील व ज़िम्मेदार होती तो यह भगवा-प्रायोजित हिंसा कभी नहीं होती।
दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो
मायावती ने कहा है कि सरकार को मृतक परिवारों को समुचित सहायता देनी चाहिए और प्रथम दृष्टया दोषी लोगों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई करनी चाहिये ताकि जातिवादी लोग ऐसी दुस्साहस दोबारा नहीं कर सके। लेकिन सरकार के रवैये को देखते हुये इसकी उम्मीद कम ही नजर आती है।
भीमा कोरेगाँव शौर्य भूमि का दलित समाज में विशेष महत्त्व है
स्वयं डा. अम्बेडकर एक जनवरी 1927 को यहाँ अपना श्रद्धा-सुमन अर्पित करने आये थे
इसके बाद से इस स्थल का महत्व दलित स्वाभिमान से और भी ज्यादा बढ़ गया था।