उपचुनाव में हुआ ऐसाः पीएम ने किया विरोध, मतदाता ने हरा दिया सीएम को
उपचुनाव के बारे में एक पूर्व धारणा है कि यह चुनाव सत्ताधारी दल का होता है। जो दल सत्ता में रहता है उसके प्रत्याशी को मतदाता जिता देते हैं जिससे वह सरकार की योजनाओं का लाभ उठाकर क्षेत्र में विकास की गति बढ़ा सके लेकिन हमेशा ऐसा नहीं हुआ है। बड़े बड़े उलटफेर हुए हैं इसमें
अखिलेश तिवारी
लखनऊ। मतदाता भी अपनी मनमर्जी के खुद मालिक हैं, फैसला सुनाने में तो सुप्रीम कोर्ट से भी ज्यादा कठोर व न्यायप्रिय हैं। मतदाताओं की मर्जी हो तो मामूली समझे जाने वाले को आसमान पर चढ़ा दें और नाराज हों तो बड़े-बड़ों को धूल चटा दें। उत्तर प्रदेश का मतदाता इस मामले में कुछ ज्यादा ही बेढब किस्म का है। वह तो कुर्सी पर बैठे मुख्यमंत्री को भी उपचुनाव में खारिज कर कुर्सी से उतारने का दम रखता है। उत्तर प्रदेश की मानीराम विधानसभा के मतदाता इसी तरह का फैसला इतिहास में दर्ज करा चुके हैं।
संसदीय इतिहास में सत्तानशीनों के ताज उछालने का जब भी जिक्र होगा तो गोरखपुर की मानीराम विधानसभा सीट के मतदाताओं को जरूर याद किया जाएगा। इस सीट के मतदाताओं ने वह कर दिखाया है जो आज तक किसी भी क्षेत्र के मतदाता सोच भी नहीं सके।
उपचुनाव के बारे में एक पूर्व धारणा है कि यह चुनाव सत्ताधारी दल का होता है। जो दल सत्ता में रहता है उसके प्रत्याशी को मतदाता जिता देते हैं जिससे वह सरकार की योजनाओं का लाभ उठाकर क्षेत्र में विकास की गति बढ़ा सके लेकिन हमेशा ऐसा नहीं हुआ है।
उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने कई बार सत्ताधारी दल के खिलाफ मतदान कर राजनेताओं को आइना दिखाने का काम किया है। उत्तर प्रदेश की मौजूदा सरकार को भी यह कड़वा अनुभव हो चुका है जब गोरखपुर और फूलपुर संसदीय सीट पर भाजपा प्रत्याशी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था।
ऐसा तब हुआ जब गोरखपुर सीट पर 28 सालों से भाजपा काबिज थी। गोरखपुर के सांसद रहे योगी आदित्यनाथ ही प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर आसीन थे लेकिन गोरखपुर की जनता ने सत्ता से फायदा मिलने की संभावनाओं को ठुकराकर विरोध में अपना कठोर फैसला सुनाया।
मुख्यमंत्री को भी उपचुनाव में हरा चुके हैं गोरखपुर के मतदाता
गोरखपुर के मतदाताओं के कड़े तेवर दिखाने का यह पहला मौका नहीं है जब प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से खाली हुई सीट प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल के पास चली गई। इससे पहले भी गोरखपुर की जनता कड़े फैसले सुनाती रही है।
गोरखपुर लोकसभा सीट की बात करें तो 1967 में गोरखनाथ पीठ के तत्कालीन महंथ दिग्विजयनाथ गोरखपुर से चुनाव जीतकर संसद में पहुंचे लेकिन वे अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। उनके ब्रह्मलीन होने के बाद 1969 में इस सीट पर उपचुनाव हुआ तो महंथ दिग्विजय नाथ के उत्तराधिकारी महंथ अवैद्यनाथ चुनाव मैदान में कांग्रेस प्रत्याशी के सामने कूद पड़े।
उस वक़्त उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी इसके बावजूद सत्ताधारी दल के उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा और महंत अवैद्यनाथ ने उपचुनावों में जीत हासिल कर ली।
जब मुख्यमंत्री को भी चुनाव में जनता ने हराया
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह को गोरखपुर की जनता ने उपचुनाव में ही करारी हार का स्वाद चखाया था। उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह मुख्यमंत्री थे लेकिन राजनीतिक दांव-पेंच में उनकी सरकार खतरे में पड़ गई तब कांग्रेस (ओ) के अलावा जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी और भारतीय क्रांति दल की गठबंधन सरकार ने कांग्रेस (ओ) के सदस्य टीएन सिंह यानी त्रिभुवन नारायण सिंह को विधायक दल का नेता चुन लिया।
वह उस समय तक उत्तर प्रदेश विधानसभा और विधानपरिषद में किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे। मुख्यमंत्री पद पर उनकी नियुक्ति को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई।
न्यायालय ने दूसरे देशों की लोकतांत्रिक परंपराओं व व्यवस्था का हवाला देते हुए मुख्यमंत्री पद पर टीएन सिंह की नियुक्ति को वैध बताया लेकिन अगले छह महीने के अंदर किसी भी सदन में सदस्य होने की अनिवार्य शर्त भी लगा दी। टीएन सिंह 18 अक्टूबर 1970 से चार अक्टूबर 1971 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।
प्रधानमंत्री ने किया मुख्यमंत्री के विरोध में प्रचार
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार, 1971 में टीएन सिंह मानीराम विधानसभा सीट से सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस (ओ) की ओर चुनाव मैदान में उतरे थे। इस चुनाव में उन्हें गोरखनाथ मठ का समर्थन भी हासिल था। कांग्रेस ने इस सीट से अपने युवा तुर्क नेता रामकृष्ण द्विवेदी को उम्मीदवार बनाया।
मुख्यमंत्री टीएन सिंह की नियुक्ति के बारे में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने की वजह से यह सीट प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुकी थी। लिहाजा कांग्रेस उम्मीदवार रामकृष्ण द्विवेदी के पक्ष में चुनाव प्रचार करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी गोरखपुर आई। उनकी मानीराम में हुई चुनावी सभा ने सारा माहौल बदल दिया।
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चुनाव परिणाम आए तो कांग्रेस उम्मीदवार ने मुख्यमंत्री टीएन सिंह को 16 हज़ार मतों से हराकर उपचुनाव की सर्वाधिक चर्चित जीत हासिल कर ली। मतदाताओं के सुप्रीम फैसले ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को भी पलट दिया जिसके आधार पर टीएन सिंह को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाया नहीं जा सका था।