कांग्रेस-बीजेपी की काट के लिए बसपा ने खेला ब्राह्मण कार्ड

लोकसभा चुनाव में बसपा सुप्रीमो मायावती हर तरह के दांव आजमाने की तैयारी में है। पहले तो सपा के साथ गठबंधन कर राजनीति में सनसनी मचा दी। जब तक दूसरे दल इसके काट खोजते मायावती ने दूसरी चाल चल दी। बसपा की नई चाल ब्राह्मण कार्ड आजमाने की है।

Update:2019-03-04 12:05 IST

लखनऊ: लोकसभा चुनाव में बसपा सुप्रीमो मायावती हर तरह के दांव आजमाने की तैयारी में है। पहले तो सपा के साथ गठबंधन कर राजनीति में सनसनी मचा दी। जब तक दूसरे दल इसके काट खोजते मायावती ने दूसरी चाल चल दी। बसपा की नई चाल ब्राह्मण कार्ड आजमाने की है। यूपी के पूर्वांचल में बसपा ने कांग्रेस-बीजेपी की काट के लिए ब्राह्मणों पर एक बार फिर भरोसा जताया है। ऐसा इसलिए है क्यों कि पूर्वांचल ब्राह्मणों का मजबूत गढ़ माना जाता है।

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बतादें मायावती ने प्रभारियों को नियुक्त किये जाने की जानकारी जिला कोर्डिनेटर की बैठक में देते वक्त स्पष्ट कह दिया कि भाजपा की जनविरोधी व अहंकारी सरकार को केन्द्र की सत्ता से हटाना बहुत जरूरी है। इसलिए पार्टी कार्यकर्ता छोटे-मोटे सभी आपसी गिले-शिकवे व मतभेद को भुलाकर हर हाल में जबर्दस्त तौर पर इस गठबंधन को कामयाब बनाने के लिये पूरी लगन से काम करें। मायावती को उम्मीद है कि ब्राह्मणों को अपने पाले में वो लाने में सफल हो सकती हैं। बसपा पूर्वी उत्तर प्रदेश से 6 ब्राह्मण चेहरे उतारने का मन बना चुकी है।

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गठबंधन में बसपा को मिली 38 सीटों में आधे से अधिक लोकसभा प्रभारियों के नाम लगभग तय कर लिए गए हैं। बसपा में ऐसा माना जाता है कि जिन्हें लोकसभा प्रभारी बनाया जाता है, वही उम्मीदवार होते हैं। जोनल इंचार्जों को लोकसभा प्रभारियों की घोषणा करने की जिम्मेदारियां सौंपी जा चुकी हैं।

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आम चुनाव 2019 के लिए बसपा सुप्रीमो ने अभी तक जितने भी लोकसभा प्रभारी घोषित किए हैं, उनमें सबसे बड़ी तादाद ब्राह्मण समुदाय के नेताओं की है। ब्राह्मण चेहरे के रूप में भदोही से रंगनाथ मिश्रा, सीतापुर से नकुल दुबे, फतेहपुर सीकरी से सीमा उपाध्याय, घोसी से अजय राय, प्रतापगढ़ से अशोक तिवारी और खलीलाबाद से कुशल तिवारी के नाम लगभग तय माने जा रहे हैं।बीएसपी के पास ब्राह्मण चेहरा सतीश चंद्र मिश्रा का भी है। वह राज्यसभा के सदस्य हैं। 2007 में भी उन्होंने दलित-ब्राह्मण वोटों को एकसाथ लाने में बड़ा रोल निभाया था।

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दरअसल इसके पहले भी उत्तर प्रदेश में बसपा ब्राह्मण कार्ड नीति आजमा चुकी है। इसमें उसको सफलता मिली थी। 2007 के यूपी विधानसभा चुनाव और 2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने दलित-ब्राह्मण गठजोड़ का बड़ा प्रयोग किया था।

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