कश्मीर को बार-बार कसौटी पर कसे जाने का अंत होने वाला है
जम्मू कश्मीर एक बार फिर कसौटी पर है। हालांकि वह रोज-रोज कसौटी पर रहता है। कभी पाक परस्त आतंकवादियों की कसौटी पर। कभी पाकिस्तान की कसौटी पर। कभी शेष भारत के नागरिकों की उम्मीदों की कसौटी पर। कभी अलगाववादियों की कसौटी पर। कभी कश्मीर में कथित तौर पर जम्हूरियत की बहाली का दावा करने वाले राजनैतिक दलों की कसौटी पर।
योगेश मिश्र
कश्मीर एक बार फिर कसौटी पर है। हालांकि वह रोज-रोज कसौटी पर रहता है। कभी पाक परस्त आतंकवादियों की कसौटी पर। कभी पाकिस्तान की कसौटी पर। कभी शेष भारत के नागरिकों की उम्मीदों की कसौटी पर। कभी अलगाववादियों की कसौटी पर। कभी कश्मीर में कथित तौर पर जम्हूरियत की बहाली का दावा करने वाले राजनैतिक दलों की कसौटी पर। लेकिन इस बार कुछ ऐसा लग रहा है कि जम्मू-कश्मीर के बार-बार कसौटी पर कसे जाने का अंत होने वाला है।
क्योंकि जो सरकार केन्द्र में है उसके प्रेरणा पुरूष श्यामाप्रसाद मुखर्जी के एजेंडे का हिस्सा कश्मीर था।
कश्मीर के जेलों में ही उन्होंने अपने प्राण त्यागे थे।
भारतीय जनता पार्टी अपने जनसंघ के दिनों में नारा देती थी - जहां हुए बलिदान मुखर्जी, वह कश्मीर हमारा है।
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इस समय जब जम्मू-कश्मीर कसौटी पर है तब केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी की प्रचंड बहुमत की सरकार है।
अपने ठोस संकल्पों के लिए जाना जाने वाला अमित शाह सरीखा गृहमंत्री हैं।
अमित शाह और सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल कश्मीर के मसले को लेकर लगातार बैठकों का दौर जारी रखे हुए हैं।
कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद कहते हैं कि आज के हालात १९९० की याद दिला रहे हैं।
१९९९ में जब कारगिल युद्ध हुआ था तब भी कश्मीर का आवाम परेशानी में फंसा था।
जो मंजर है उसमें जितने मुंह उतनी बातें निकल रही हैं
हालांकि इसका आधार गृह मंत्रालय की वह एडवाइजरी है,
जिसमें पर्यटकों को तत्काल कश्मीर छोडऩे की हिदायत है।
बीते २० सालों में पहली बार अमरनाथ यात्रा को बीच में रोक देने का फैसला हुआ है।
बाहरी छात्रों को भी घाटी से निकाल देने की कवायद है।
जम्मू-कश्मीर में २८ हजार जवानों की तैनाती है। एयरफोर्स के सतर्क रहने के निर्देश हैं।
सोशल मीडिया पर जो कुछ चल रहा है।
उसमें रेलवे के सभी कर्मचारियों को चार माह का राशन और सात दिन का पीने का पानी जमा करने को कहा जा रहा है।
कश्मीर में लोग तेल और राशन इकट्ठा कर रहे हैं।
गैरकानूनी गतिविधि संशोधन विधेयक संसद से पास हो चुका है।
इसके बाद एनआईए किसी संदिग्ध व्यक्ति को आंतकवादी घोषित कर सकेगी।
एनआईए सम्पत्ति जब्त कर सकेगी।
इस एडवाइजरी के बाद भी जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक राज्य के लोगों को कुछ न होने को लेकर आश्वस्त करते हैं।
लोगों को राज्यपाल रहे जगमोहन का कार्यकाल याद हो उठता है।
महबूबा मुफ्ती, उमर अब्दुल्ला, फारूख अब्दुल्ला और कांग्रेस के नेता जम्मू-कश्मीर के कसौटी पर होने के वर्तमान हालात को अपने हिसाब से बयां कर रहे हैं।
उन्हें कसौटी का यह तरीका न केवल बेवजह लग रहा है बल्कि कश्मीरियत के साथ ज्यादती की बात कह रहे हैं।
जो अटकलें लगाई जा रही हैं। वह तीन तरह की हैं।
पहला, पाकिस्तान की ओर से सीमा पर दबाव का काउंटर करने की तैयारी है।
दूसरा, ३५ए और ३७० के खात्मे की पीठिका तैयार की जा रही है।
तीसरा, कश्मीर और लद्दाख को केन्द्र शासित प्रदेश घोषित किये जाने के साथ-साथ जम्मू को नया राज्य बनाये जाने की तैयारी है।
हालांकि सरकारी सूत्र इसे अफवाह बता रहे हैं।
हालांकि ऐसे कोई भी बदलाव जम्मू-कश्मीर में शासन कर चुके किसी भी राजनैतिक दल को कुबूल नहीं होंगे।
अलगावादियों के गले नहीं उतरेगा।
हालांकि लद्दाख को केन्द्र शासित प्रदेश बनाये जाने की मांग बीते ५० सालों से की जा रही है।
ले किन यह भी कठोर सच्चाई है कि जब तक जम्मू में आबादी का असंतुलन नहीं बदलेंगे
तब तक यहां की समस्या का समाधान निकल पाना सम्भव ही नहीं हो सकता है।
इसके लिए जरूरी है कि कम से कम ३५ए हटाया जाये।
इसे १९५४ में तत्कालीन राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने कश्मीर सरकार की सहमति से जोड़ा था।
यह संसद में पारित नहीं है। सीधे राष्ट्रपति के आदेश पर जोड़ा गया।
इसको चुनौती देने वाली जनहित याचिका सुप्रीमकोर्ट में लंबित है।
३५ए राज्य विधानसभा को राज्य स्थायी निवासी की परिभाषा तय करने का आधार देता है।
इसी के साथ बाहर के व्यक्ति को जम्मू कश्मीर में बसने और सम्पत्ति खरीदने से रोकता है।
कठोर कदम की जरूरत
एक ऐसे समय में जब पत्थरबाजों की फौज ने आतंकवाद का चेहरा बदल दिया हो।
आतंकवादियों के मारे जाने पर शौर्य से उनका जनाजा उठाया जा रहा हो।
बरसी मनाई जा रही हो। कश्मीर के युवाओं को गुमराह करके हथियार थमाये जा रहे हों।
आतंकवाद को धर्म की ढाल दी जा रही हो। घाटी में पाकिस्तानी झंडे फहराये जा रहे हों।
अलागववादियों को पाकिस्तान से धन मुहैया कराया जा रहा हो।
तब किसी भी राष्ट्रवादी सरकार की यह जिम्मेदारी बन जाती है
कि आजादी के बाद से अब तक परेशान कश्मीर की जम्हूरियत को अमन चैन देने की दिशा में कठोर से कठोर कदम उठाये।
बीमारी इतनी लाइलाज कर दी गई है कि जब तक कोई बड़ा आपरेशन नहीं हो,
तब तक कश्मीर की सेहत का ठीक होना बेहद मुश्किल होगा।
हाल-फिलहाल ऑपरेशन के हालात तैयार हैं।
सरकार को इस बार आर-पार कुछ कर देना चाहिए।
ताकि आजादी के बाद से अब तक लागातार नर्ई आजादी की मांग कर रहे मुट्ठीभर अलगाववादियों और आतंकियों को हमेशा के लिए जवाब मिल सके।
आपरेशन जम्मू-कश्मीर भाजपा के लिए डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी के बलिदान को सच्ची श्रद्धांजलि भी होगी।
कोशिश होनी चाहिए कि लगातार कसौटी पर कसे जाने की कश्मीर के आवाम के साथ चलाई जा रही परम्परा का अंत हो।
(दिनांक ४ अगस्त के वाई फैक्टर का अंश)