जयपुर:बच्चों का साथ हर किसी को अच्छा लगता है, कुछ लोग उन्हें जिम्मेदारी के रूप में ही देखते हैं। जबकि इनका साथ मजे और सुकून के तौर पर भी देखा जाना चाहिए। बच्चों के साथ बच्चे बन कैसे आप तनावरहित महसूस कर सकती हैं, बच्चों के साथ समय गुजारना मानो निश्चल दोस्ती। वो दोस्ती, जो आप ‘कैसी हैं, कैसी नहीं’ का निर्णय नहीं देती है, बल्कि आपको बिल्कुल आप जैसा ही रहने देने की पूरी आजादी देती है। बच्चों के साथ को जिम्मेदारी के बजाय मजे और सीख के लहजे से देखने की आदत डालें। इसके लिए मस्ती के भी वो रंग चुनने होंगे, जो बच्चों के पसंदीदा हों। जैसे उन्हें अगर कॉमेडी फिल्म नहीं देखनी है तो उन्हें डोरेमोन ही देखने दें। आप भी उसके साथ देखें। देखने में मजा भी आएगा और आप दोनों का रिश्ता भी मजबूत होगा।
जब हम सब बच्चे थे तो सिर्फ एक टेंशन हुआ करती थी, स्कूल और उसका होम वर्क। पर यह बात ज्यादा देर मन में रह नहीं पाती थी। दोस्तों के साथ खेल की शुरुआत होते ही ये टेंशन मानो छूमंतर हो जाया करती थी। पर यही तनाव छूमंतर करने की कला बड़े होते हुए हम भूल जाते हैं। थोड़ा खुद को समझाइए और अपने आसपास नजर घुमाइए। आपको टेंशन भगाने का इलाज मिल जाएगा। ये इलाज हैं, आपके बच्चे। वही बच्चे, जो प्यारे तो बहुत होते हैं, पर उनकी ज्यादा शैतानी के बाद उनसे उलझन भी होती है। अगर आपको बिना तनाव वाली चाहिए तो घर के बच्चों में सुकून की तलाश शुरू कर दीजिए।
दिमाग हमेशा कुछ न कुछ सोचता ही रहता है। कभी यहां, तो कभी वहां तक इसकी दौड़ जारी ही रहती है। ऐसे में अपने दिमाग से कहिए कि कुछ देर शांत हो जाए। और ये तब ही दौड़ लगाए, जब आप अपने बच्चे के साथ टीवी देखते हुए मजे कर रही हों। इससे होगा ये कि आप लगातार सोचने की स्थिति में होंगी ही नहीं और आखिर में वर्तमान को महसूस करने के सिवाय आपके पास कुछ नहीं होगा।
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बच्चे कार्टून को कितना पसंद करते हैं, ये माता-पिता से बेहतर कौन जानता है। कैसे बच्चे कार्टून कैरेक्टर में खुद को महसूस करने लगते हैं। कैसे उन्हें पूरी दुनिया कार्टून जैसी आसान लगती है। बस आपको बिल्कुल ऐसा ही महसूस करना है। आपको वैसा एहसास करना है, जैसे किसी कार्टून का मुख्य किरदार करता है। जैसे डोरेमॉन या नोबिता। कुछ देर के लिए ही सही, मान लीजिये आप नोबिता हैं। उतने ही शैतान, बेफिक्र और उतने ही नादान।
जैसा कि हम सब जानते हैं कि बच्चे खेल-खेल में अपनी सारी उलझनें भूल जाते हैं। कैसे शिकायतों का पिटारा लेकर बैठा बेटा जब खेल कर लौटता है, तो आप अमूमन उसे दूसरी ही दुनिया में पाती हैं। जरा सोचिए, क्या ऐसा मन का बदलाव आपके साथ भी हो सकता है? जवाब हां है, क्योंकि ये सब कुछ संभव है। इसके लिए आपको कोई भी इंडोर या आउटडोर खेल खेलने की आदत डालनी होगी। ऐसा रोज ऑफिस से लौटने के बाद हो सके तो अच्छा, वरना हफ्ते के आखिर में ऐसा जरूर करें। इसका फायदा आपको जरूर महसूस होगा। आपको शारीरिक स्फूर्ति का एहसास तो होगा ही, मानसिक ऊर्जा भी आपको भरपूर महसूस होगी।