नरेंद्र मोदी कभी बनना चाहते थे साधु, फर्श से अर्श तक का हर सफर रहा लाजवाब
लखनऊ: वडनगर गुजरात में बहुत साधारण परिवार 17 साल 1950 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्म हुआ था।66 साल के मोदी का बचपन बिल्कुल ही साधारण था। राजनीति में आने से पहले मोदीजी चाय बेचते थे। ये पुरानी बात हो गई। पुराने दिनों में शायद ही किसी ने सोचा होगा कि मोदीजी कभी पीएम भी बनेंगे।
चाय से राजनीति का गलियारा
मोदी ने पॉलिटिकल साइंस में एमए किया। बचपन से ही उनका संघ की तरफ झुकाव था और गुजरात में आरएसएस का मजबूत आधार भी थे। 17 साल की उम्र में अहमदाबाद राजनीति की ओर रुख किया मतलब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सदस्यता ली। इसके बाद 1974 में वे नव निर्माण आंदोलन में शामिल हुए और संघ प्रचारक के साथ राजनीति में पदार्पण करें। 1980 के दशक में जब मोदी गुजरात की भाजपा ईकाई में शामिल हुए तो माना गया कि पार्टी को संघ के प्रभाव का सीधा फायदा होगा।
साल 1988-89 में भारतीय जनता पार्टी की गुजरात ईकाई के महासचिव बनाए गए। नरेंद्र मोदी ने लाल कृष्ण आडवाणी की 1990 की सोमनाथ-अयोध्या रथ यात्रा के आयोजन में अहम भूमिका अदा की। इसके बाद वो भारतीय जनता पार्टी की ओर से कई राज्यों के प्रभारी बनाए गए।
मोदी को 1995 में भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय सचिव और पांच राज्यों का पार्टी प्रभारी बनाया गया। लेकिन 2001 में केशुभाई पटेल को मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद मोदी को गुजरात की कमान सौंपी गई। उस समय गुजरात में भूकंप आया था और भूकंप में 20 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे।
मोदी के सत्ता संभालने के लगभग 5 महीने बाद ही गोधरा रेल हादसा हुआ जिसमें कई हिंदू कारसेवक मारे गए। इसके ठीक बाद फरवरी 2002 में ही गुजरात में मुसलमानों के खिलाफ दंगे भड़क उठे। इन दंगों में सरकार के मुताबिक एक हजार से ज्यादा और ब्रिटिश उच्चायोग की एक स्वतंत्र समिति के अनुसार लगभग 2000 लोग मारे गए। इनमें ज्यादातर मुसलमान थे।
मोदी पर आरोप लगे कि वे दंगों को रोक नहीं पाए और उन्होंने अपने कर्तव्य का निर्वाह नहीं किया जब भारतीय जनता पार्टी में उन्हें पद से हटाने की बात उठी तो समर्थन से बात टल गई।
साधु बना चाहते थे मोदी
इसके बाद 2007 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने गुजरात के विकास को मुद्दा बनाया और फिर जीतकर लौटे। फिर 2012 में भी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा गुजरात विधानसभा चुनावों में विजयी हुई। गुजरात में जादू चलाने के बाद नरेंद्र मोदी का मन संन्यास धारण करने को था, मतलब साधु बनना चाहते थे इतना ही नहीं एक वक्त था जब उन्होंने चाय की दुकान भी लगाई। मोदी के जीवन में इसी तरह के कई उतार-चढ़ाव आए।
बचपन से था अलग अंदाज
नरेंद्र मोदी बचपन में आम बच्चों से बिल्कुल अलग थे। काम भी अलग तरह का करते थे। नरेंद्र मोदी को हम कई तरह के गेट अप में देखते हैं। दरअसल स्टाइल के मामले में मोदी बचपन से अलग थे। कभी बाल बढ़ा लेते थे तो कभी सरदार बन जाते थे । रंगमंचकर्मी भी थे नरेंद्र मोदी।रामलीला करने में गे रहते थे। स्कूल के दिनों में नाटकों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे और अपने रोल पर बहुत मेहनत भी करते थे।
पॉलिटिक्स के दिग्गज थे पढ़ाई में औसत
मोदी एक औसत छात्र थे, लेकिन पढ़ाई के अलावा बाकी गतिविधियों में वो बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। एक तरफ जहां वो नाटकों में हिस्सा लेते थे, वहीं उन्होंने एनसीसी भी ज्वाइन किया था। बोलने की कला में तो उनका कोई जवाब नहीं था, हर वाद-विवाद प्रतियोगिता में मोदी हमेशा अव्वल आते थे।
साधुओं से इंप्रेस रहे मोदी
बचपन में नरेंद्र मोदी को साधु संतों को देखना बहुत अच्छा लगता था। मोदी खुद संन्यासी बनना चाहते थे। संन्यासी बनने के लिए नरेंद्र मोदी स्कूल की पढ़ाई के बाद घर से भाग गए थे और इस दौरान मोदी पश्चिम बंगाल के रामकृष्ण आश्रम सहित कई जगहों पर घूमते रहे और आखिर में हिमालय पहुंच गए और कई महीनों तक साधुओं के साथ घूमते रहे।
अडवाणी की रथयात्रा में निभाई अहम भूमिका
90 के दशक में नरेंद्र मोदी ने आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या रथ यात्रा में अहम भूमिका निभाई थी। नरेंद्र मोदी की स्टाइल सारे प्रचारकों से जुदा थी। वो दाढ़ी रखते थे और ट्रिम भी करवाते थे। 2001 में दबाव के चलते तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल को अपना पद छोड़ना पड़ा। पटेल की जगह नरेंद्र मोदी को राज्य की कमान सौंपी गई और इसके बाद मोदी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। साल 2002 में गुजरात ही नहीं, पूरे देश के इतिहास में वो काला अध्याय जुड़ गया जिसके बारे में किसी ने सोचा नहीं था. गोधरा में एक ट्रेन में सवार 50 हिंदुओं के जलने के बाद पूरे गुजरात में जो दंगे भड़के उसका कलंक मोदी आज तक नहीं धो पाए हैं। दंगों में धूमिल हुई छवि के बावजूद वर्ष 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में भी मोदी की जीत हुई।
नशा से रहे हरदम दूर
2007 में विधानसभा चुनाव में फिर मोदी की जीत हुई और वह दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। मोदी शाकाहारी हैं। सिगरेट, शराब को कभी हाथ नहीं लगाया। वो आम तौर पर अपने आधी बाजू के कुर्ते में नजर आते हैं, लेकिन जब मौज में आते हैं तो सूट बूट में निकलते हैं किसी हीरो की तरह।
सोशल मीडिया में पॉपुलर
नरेंद्र मोदी तकनीक का इस्तेमाल भी बखूबी करते हैं। अगर आज फेसबुक और ट्विटर पर देखें तो सबसे ज्यादा उनके फॉलोअर्स मिल जाएंगे। इंटरनेट पर पॉपुलर नेताओं की सूची में वो अव्वल हैं। साल 2008 में मोदी ने टाटा को नैनो कार संयंत्र खोलने के लिए आमंत्रित किया। अब तक गुजरात बिजली, सड़क के मामले में काफी विकसित हो चुका था।.
मोदी के शौक
नरेंद्र मोदी को पतंगबाजी का भी शौक है। सियासत के मैदान की ही तरह वो पतंगबाजी के खेल में भी अच्छे-अच्छे पतंगबाजों की कन्नियां काट डालते हैं। नरेंद्र मोदी की सियासी शालीनता का भी कोई जवाब नहीं। नरेंद्र मोदी परंपरागत परिधानों से हटकर मॉडर्न ड्रेस भी आजमा चुके हैं। वर्ष 2012 तक मोदी का बीजेपी में कद इतना बड़ा हो गया कि उन्हें पार्टी के पीएम उम्मीदवार के रूप में देखा जाने लगा। जब नरेंद्र मोदी ने एक खास तरह की टोपी पहनने से इनकार कर दिया, तो यह चर्चा का विषय बन गया. 31 अगस्त, 2012 को मोदी ने ऑनलाइन तरीके से वैब कैम के जरिए जनता के सवालों के जवाब दिए. ये सवाल देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी पूछे गए. 22 अक्टूबर, 2012 को ब्रिटिश उच्चायुक्त ने मोदी से मिलकर गुजरात की तारीफ की और वहां निवेश किए जाने की बात की। इसके साथ दंगों के बाद बाधित हुए ब्रिटेन और गुजरात के संबंध फिर से बहाल हो गए।