बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के बीच भले ही गठबंधन हो गया हो। दोनो ने प्रेस कांफ्रेंस कर फार्मूला पेश कर दिया हो। अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा को तगड़ी चुनौती की रणनीति बना ली हो। लेकिन इसे परवान चढ़ा पाना आसान नहीं है। गठबंधन का फार्मूला बराबर बराबर पर छूटने वाला नहीं है।
अभी सपा और बसपा के खाते में 38-38 सीटें हैं। अमेठी और रायबरेली कांग्रेस के लिए छोड़ दी गई है। दो सीटें रालोद के खाते में ऱखी गई हैं। लेकिन रालोद अध्यक्ष अजीत सिंह दो सीटों पर राजी होंगे। यह मुश्किल दिखाई देता है। यही नहीं, पीस पार्टी, कृष्णा पटेल के अपना दल, भारतीय निषाद पार्टी के लिए भी गठबंधन में स्पेस है।
हालांकि फार्मूला यह तैयार किया गया है कि इन दलों के उम्मीद्वार सपा के चुनाव चिह्न पर उतरेंगे। लेकिन बहुत दिनों से अपना दल चलाते आ रहे इन पार्टियों के नेता इससे सहमत नहीं होंगे। नतीजतन सपा को बराबरी का हक खोना पड़ेगा।
भरोसेमंद सूत्रों की मानें तो राष्ट्रीय लोकदल कांग्रेस और भाजपा से भी संपर्क में है। उन्हें कम से कम तीन सीटें चाहिए जिसमें बागपत, मुजफ्फरनगर और मथुरा जरूरी है। हालांकि हाथरस पर भी रालोद की नजर है। पर यह सीट बसपा के खाते में जा चुकी है। इस सीट से बसपा समाजवादी पार्टी के एक राज्यसभा सदस्य के परिवार को उतारने के मूड में है।
इसके अलावा भारतीय समाज पार्टी के ओम प्रकाश राजभर भी भाजपा से मोहभंग की स्थिति में हैं। यह बात इनके बयानों से भी पता चलती है। पीस पार्टी के डा. अयूब भी इसका हिस्सा हो सकते हैं। और उन्हें एक सीट अनिवार्य तौर पर चाहिए लेकिन वह अपने और अपने बेटे के लिए दो सीटें चाहते हैं।
भारतीय निषाद पार्टी के अध्यक्ष के पुत्र गोरखपुर से लोकसभा के सांसद समाजवादी पार्टी के चुनाव चिह्न पर हैं। अगली बार उनके लिए गठबंधन के बाद भी जीतना बहुत मुश्किल है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर में विकास का बहुत काम किया है।
ऐसे में भारतीय निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद अपने लिए भी एक सीट मांगेंगे। भाजपा के खिलाफ मजबूत गठबंधन बनाने के लिए इन सबको भी साथ लेना जरूरी है। और यह सब लोग सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के हिस्से ही आएंगे।
अभी सपा और बसपा के खाते में 38-38 सीटें हैं। अमेठी और रायबरेली कांग्रेस के लिए छोड़ दी गई है। दो सीटें रालोद के खाते में ऱखी गई हैं। लेकिन रालोद अध्यक्ष अजीत सिंह दो सीटों पर राजी होंगे। यह मुश्किल दिखाई देता है। यही नहीं, पीस पार्टी, कृष्णा पटेल के अपना दल, भारतीय निषाद पार्टी के लिए भी गठबंधन में स्पेस है।
हालांकि फार्मूला यह तैयार किया गया है कि इन दलों के उम्मीद्वार सपा के चुनाव चिह्न पर उतरेंगे। लेकिन बहुत दिनों से अपना दल चलाते आ रहे इन पार्टियों के नेता इससे सहमत नहीं होंगे। नतीजतन सपा को बराबरी का हक खोना पड़ेगा।
भरोसेमंद सूत्रों की मानें तो राष्ट्रीय लोकदल कांग्रेस और भाजपा से भी संपर्क में है। उन्हें कम से कम तीन सीटें चाहिए जिसमें बागपत, मुजफ्फरनगर और मथुरा जरूरी है। हालांकि हाथरस पर भी रालोद की नजर है। पर यह सीट बसपा के खाते में जा चुकी है। इस सीट से बसपा समाजवादी पार्टी के एक राज्यसभा सदस्य के परिवार को उतारने के मूड में है।
इसके अलावा भारतीय समाज पार्टी के ओम प्रकाश राजभर भी भाजपा से मोहभंग की स्थिति में हैं। यह बात इनके बयानों से भी पता चलती है। पीस पार्टी के डा. अयूब भी इसका हिस्सा हो सकते हैं। और उन्हें एक सीट अनिवार्य तौर पर चाहिए लेकिन वह अपने और अपने बेटे के लिए दो सीटें चाहते हैं।
भारतीय निषाद पार्टी के अध्यक्ष के पुत्र गोरखपुर से लोकसभा के सांसद समाजवादी पार्टी के चुनाव चिह्न पर हैं। अगली बार उनके लिए गठबंधन के बाद भी जीतना बहुत मुश्किल है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर में विकास का बहुत काम किया है।
ऐसे में भारतीय निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद अपने लिए भी एक सीट मांगेंगे। भाजपा के खिलाफ मजबूत गठबंधन बनाने के लिए इन सबको भी साथ लेना जरूरी है। और यह सब लोग सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के हिस्से ही आएंगे।