इस क्रिकेटर का एडमिशन लेने से कॉलेज ने कर दिया था मना, ऐसे मिली थीं मंजिल
इस सम्मानित पैनल में चुने जाने पर अपनी खुशी जाहिर करते हुए लक्ष्मी ने मीडिया से कहा, ‘‘आईसीसी के अंतरराष्ट्रीय पैनल में चुना जाना मेरे लिए बहुत बड़ा सम्मान है।
नई दिल्ली: क्रिकेट के खेल में भारत की बहुत सी महिलाओं ने गेंद और बल्ले से अपने जौहर दिखाए हैं, लेकिन भारत की एक पूर्व क्रिकेटर ने अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ा सम्मान हासिल किया है।
अब बहुत जल्द वह दिन आएगा, जब किसी अन्तरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच के रेफरी के तौर पर एक महिला का नाम पुकारा जाएगा और वह नाम होगा भारत की जी एस लक्ष्मी का।
एक जमाने में क्रिकेट के खेल पर पुरूषों का वर्चस्व हुआ करता था, फिर महिला क्रिकेट की शुरूआत हुई, पर अंपायर और रेफरी अमूमन पुरूष ही रहे। फिर धीरे धीरे महिलाओं ने पुरूषों के वर्चस्व वाले इस क्षेत्र में सेंध लगाना शुरू किया।
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पुरूषों के एकदिवसीय मैचों में अंपायरिंग के लिए महिलाओं को चुना जाने लगा था और अब जीएस लक्ष्मी को आईसीसी मैच रेफरी के अंतरराष्ट्रीय पैनल में शामिल करने का ऐलान किया गया।
आंध्र प्रदेश के राजामुंदरी में 23 मई 1968 को जन्मीं जी एस लक्ष्मी देश की सबसे सफल घरेलू महिला क्रिकेट टीम रेलवे के साथ खेलती रही हैं। उन्हें अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भले ही देश का प्रतिनिधित्व करने का मौका नहीं मिला, लेकिन वह 1999 में इंग्लैंड के दौरे पर गई महिला क्रिकेट टीम की सदस्य थीं।
जमशेदपुर में पली बढ़ीं लक्ष्मी को क्रिकेट का जुनून इस हद तक था कि 1986 में दसवीं की परीक्षा में उनके नंबर अच्छे नहीं आए और उन्हें कॉलेज में दाखिला मिलना मुश्किल हो गया।
तब उनके पिता ने क्रिकेट के खेल में उनकी महारत के दम पर खेल कोटे से उनका दाखिला कराया और कॉलेज प्रशासन को यह विश्वास दिलाया कि वह उनकी प्रमुख तेज गेंदबाज हो सकती हैं।
पिता ने कालेज प्रशासन से जो वादा किया था उसे पूरा करते हुए लक्ष्मी ने अपनी गेंदबाजी से सबको प्रभावित किया और इसी का नतीजा था कि 1989 में उन्हें दक्षिण मध्य रेलवे में नौकरी मिली और वह हैदराबाद चली गईं। यहां से उनका रेलवे की टीम के साथ खेलने का सिलसिला शुरू हुआ, जो 2004 में उनके सन्यास तक चला।
2004 में रिटायर होने के बाद लक्ष्मी ने कोचिंग का रूख किया और दक्षिण मध्य रेलवे में अपनी सेवाएं देती रहीं। इस दौरान 2008 में बीसीसीआई ने महिला रेफरियों को घरेलू क्रिकेट में मौका देना शुरू किया और लक्ष्मी इस काम के लिए चुने गए पांच महिला रेफरी के शुरूआती समूह का हिस्सा बनीं।
2014 में बीसीसीआई ने 120 मैच रेफरी के लिए अपनी तरह की पहली योग्यता परीक्षा का आयोजन किया और लक्ष्मी सहित 50 रेफरी का चयन किया, जिन्हें लड़कों और पुरूषों के घरेलू मैचों में अपनी सेवाएं देनी थीं।
उसके बाद से लक्ष्मी 19 वर्ष से कम उम्र के खिलाड़ियों की कूच बिहार ट्राफी में अपनी सेवाएं दे रही हैं। इसके अलावा वह महिलाओं के तीन एक दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय मैचों और महिलाओं के तीन टी20 मैचों में रेफरी रहीं। महिलाओं के टी20 चैलेंज मुकाबले में भी वह सभी चार मैचों में रेफरी रहीं।
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क्रिकेट के मैदान में दोनो टीमों के 11-11 खिलाड़ियों, अंपायर और हजारों दर्शकों के अलावा रेफरी एक ऐसा शख्स होता है, जो खेल की तमाम बारीकियों का जानकार होता है और मैच के दौरान होने वाले नियमों के किसी भी उल्लंघन पर नजर रखता है।
एक मैच रेफरी मैदान में एक पल के लिए भी नजर नहीं आता, लेकिन मैच की पल पल की गतिविधियों पर नजर बनाए रखता है। वह मैच के दौरान न तो खेल को प्रभावित कर सकता है और न ही नतीजे को।
लेकिन मैच रेफरी यह सुनिश्चित करता है कि मैच के दौरान दोनो ही टीमों के खिलाड़ी आईसीसी की क्रिकेट आचार संहिता का पूरी तरह से पालन करें। अगर किसी खिलाड़ी द्वारा इसका उल्लंघन किया जाता है तो उसके लिए सजा का निर्धारण करना मैच रेफरी का काम होता है।
प्रत्येक मैच के बाद मैच रेफरी आईसीसी को एक रिपोर्ट देता है, जिसमें खिलाड़ियों अथवा अंपायर की गतिविधियों अथवा घटनाक्रम का खास तौर पर जिक्र होता है, जिनसे क्रिकेट संहिता अथवा नियमों का उल्लंघन हो सकता है।
इस सम्मानित पैनल में चुने जाने पर अपनी खुशी जाहिर करते हुए लक्ष्मी ने मीडिया से कहा, ‘‘आईसीसी के अंतरराष्ट्रीय पैनल में चुना जाना मेरे लिए बहुत बड़ा सम्मान है।
इससे मेरे लिए नये रास्ते खुलेंगे। भारत में एक क्रिकेटर, कोच और मैच रेफरी के रूप में एक लंबे करियर के बाद अब एक मैच अधिकारी के रूप में मैं अपने अनुभव का अंतरराष्ट्रीय सर्किट पर उपयोग कर सकूंगी।’’
उनका मानना है कि क्रिकेट और वह भी महिला क्रिकेट ने उन्हें बहुत कुछ दिया है और उनकी दिली ख्वाहिश है कि वह महिला विश्व कप क्रिकेट और टी20 विश्व कप के फाइनल मैच में अपनी सेवाएं दें।
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