World Cup 2023: क्या आपको पता है ? आपके क्रिकेट इमोशन ने कराया कई लाख करोड़ का फ़ायदा!
ICC World Cup 2023: क्रिकेट बेशकीमती है। करोड़ों लोगों के हजारों हजार करोड़ घण्टे ले लेता है जभी तो एक एक मैच में हजारों करोड़ रुपयों के वारेन्यारे हो जाते हैं। एक एक सेकेंड के विज्ञापन, खिलाड़ियों की जर्सी पर चस्पां लोगो, स्टेडियम में लगे बैनर, ये सब मिलकर करोड़ों लोगों की आंखों-कानों के बरास्ते ज़ेहन में घुस जाते हैं ।
ICC World Cup 2023: हर चीज की कीमत होती है। कुछ भी मुफ्त नहीं होता। अक्सर लोग इस फलसफे, इस डायलाग का इस्तेमाल करते हैं। बात सही भी है और गलत भी क्योंकि जो भी कुछ है सब नज़रिए की बात है। कुछ वैज्ञानिक तो कहते भी हैं कि समय भी सिर्फ एक नज़रिया है, पर्सपेक्टिव है। समय की कोई कीमत नहीं होती। या तो ये अमूल्य होता है या बिना मूल्य का होता है। ये नज़रिए की बात है।
क्रिकेट का महाकुम्भ यानी वर्ल्ड कप अभी अभी सम्पन्न हुआ है। भारत फाइनल में हार गया। डेढ़ अरब देशवासी गमगीन हैं। बात ही ऐसी है। इतने जतन किये, दीवाली के पटाखे बचा कर रखे थे, जयजयकार के मैसेज गढ़ कर रखे थे। हजारों खर्च कर टिकट खरीदे थे और मशक्कत करके फाइनल के स्टेडियम तक पहुंचे थे।
क्रिकेट हमारी जान है। हमने क्रिकेट के भी भगवान बना रखे हैं, मूर्तियां भी लगा दी हैं। हमने अपने जीवन के कितने ही घण्टे क्रिकेट को सौंप दिए थे । सो गमगीन होना तो बनता है। फाइनल मैच कोई आठ घण्टे चला। आठ घण्टे यानी 480 मिनट। अच्छा खासा समय है। अमूमन सरकारी नौकरियां आठ घण्टे की होती हैं। मजदूर भी आठ घण्टे की दिहाड़ी करता है।अहमदाबाद के मोदी स्टेडियम में एक लाख दर्शक आठ घण्टे बैठे। स्टेडियम में ही 8 लाख घण्टे सामूहिक तौर पर खप गए। 8 लाख घण्टे यानी 4 करोड़ 80 लाख मिनट! सोच कर ही सर चकरा जाता है।
एक साल में 8765 घण्टे होते हैं सो 8 लाख घंटे हुए कोई 10 साल! यानी दो आम चुनाव निपट गए।
रुकिए, अभी पिक्चर बाकी है। क्रिकेट स्टेडियम में कम और आपके मोबाइल और टीवी पर ज्यादा चलता है। वहां के घण्टे गिनेंगे तो लड़खड़ा जाएंगे।
सिर्फ हॉटस्टार पर साढ़े 5 करोड़ लोग अपने अपने आठ घण्टों का योगदान कर रहे थे। टीवी पर स्टार स्पोर्ट्स पर तो 6 करोड़ से ज्यादा लोग जुटे हुए थे। ओटीटी और केबल टीवी के दर्शक जोड़ लें तो फाइनल में 10 करोड़ लोगों ने मैच देखा। 10 करोड़ लोग और आठ आठ घण्टे यानी 80 करोड़ घण्टे। यानी 91 हजार साल!!देखते देखते पाषाण युग से आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस तक का सफर सिर्फ 2 बजे से रात 10 बजे के बीच!
खैर, क्रिकेट बेशकीमती है। करोड़ों लोगों के हजारों हजार करोड़ घण्टे ले लेता है जभी तो एक एक मैच में हजारों करोड़ रुपयों के वारेन्यारे हो जाते हैं। एक एक सेकेंड के विज्ञापन, खिलाड़ियों की जर्सी पर चस्पां लोगो, स्टेडियम में लगे बैनर, ये सब मिलकर करोड़ों लोगों की आंखों-कानों के बरास्ते ज़ेहन में घुस जाते हैं ।
आप भले ही गमगीन हो कर डिप्रेशन में चले जाएं, मीडिया फाइनल में हार के अरबों विश्लेषण करने में जुट जाए लेकिन इस खेल का खेल चला रहे लोग या संगठन खुश ही नहीं बहुत खुश हैं। करोड़ों लोगों ने जो करोड़ों घण्टे खपा दिए उसकी एक एक सेकेंड की कीमत वसूली गई है। आप भारत की हार पर भले आंसू बहा रहे हों लेकिन दरवाजे के दूसरी ओर हजारों हजार करोड़ रुपये कमा लिए गए और आपस में बंट भी गए। दर्शक तो दर्शक है, उसे अपना समय देना है, जिसे बेचता और कमाता कोई और है।
इस बार के वर्ल्ड कप टूर्नामेंट में छोटे-बड़े ब्रांडों ने कोई 20 अरब रुपये खर्च कर दिए। विश्व कप से टीवी और डिजिटल दोनों प्लेटफार्मों को मिलाकर 2,200 करोड़ रुपये तक विज्ञापन कमाई होने का अनुमान है। डिजिटल कमाई तो पिछली बार से कम से कम 70 प्रतिशत ज्यादा ही होगी। 2023 के क्रिकेट विश्व कप के लिए डिजिटल विज्ञापन दरों में 60 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। टीवी पर इस साल विज्ञापन खर्च 20 प्रतिशत अधिक हुआ है और भारत-पाकिस्तान जैसे प्रीमियम मैचों में 10 सेकंड के स्लॉट के लिए लगभग 30 लाख रुपये की दर रही है।
इतना पैसा क्यों? आखिर भारत में ऐसा क्या है? जवाब सिर्फ एक है – डेढ़ अरब की आबादी जिसे क्रिकेट से बेइंतिहा प्रेम है। इतनी मोहब्बत कि फाइनल मैच के लिए अहमदाबाद के होटलों में जगह न मिलने पर क्रिकेट प्रेमियों ने अस्पतालों की शरण ले ली और वहां कमरे बुक करा लिए। हो सकता है रात बिताने के लिए वार्डों में भी क्रिकेट प्रेमी भर्ती हो गए हों। बहुत से प्रेमी अहमदाबाद की बजाये 100 किलोमीटर दूर वडोदरा के होटलों में रुक गए। जब डिज्नी-हॉटस्टार पर फाइनल मैच देखने वालों की संख्या 6 करोड़ तक पहुँच गयी तो समझ लीजिये क्रिकेट की क्या वैल्यू है हमारे लिए। फाइनल मैच के दौरान मोबाइल कंपनियों ने इन्टरनेट डेटा बेच कर कितना बनाया होगा इसका अनुमान ही लगाना मुश्किल है।
सौ बात की एक बात – जब करोड़ों लोग क्रिकेट देखते हैं तो वे सिर्फ क्रिकेट नहीं देखते। वो पचासों तरह के विज्ञापन भी देखते हैं। और विज्ञापनों का आलम ये है कि वह टीवी स्क्रीन, स्टेडियम के कोने-कोने, खिलाडियों के कपड़ों, खेल के सामानों – सब जगह चस्पा है। क्रिकेट के भेष में विज्ञापन और प्रोडक्ट बिक रहे हैं। जनता भी इतनी प्रेमी है कि तीन तीन हजार वाले टिकट पचासों हजार में ब्लैक में खरीदती है। टिकट भी अब स्टेडियम के बाबू नहीं बेचते, उसके लिए बाकायदा ऑनलाइन मैनेजमेंट कंपनियों को ठेका मिलता है।
क्रिकेट में पैसा बेशुमार है। इतना हो गया है कि अमेरिका और सऊदी अरब भी इस खेल को अपना रहे हैं। अमेरिका में जहाँ कभी कोई क्रिकेट का ‘क’ नहीं जनता था वहां टी20 वर्ल्ड कप होने जा रहा है। शारजाह ने तो क्रिकेट की वैल्यू बहुत पहले समझ ली थी ।.अब सऊदी अरब कहीं आगे जा कर आईपीएल में हिस्सेदारी खरीद रहा है, उसमें इन्वेस्ट कर रहा है।
इस रुचि के पीछे के कारण में लोगों में खेल भावना पैदा करना या लोगों को खेलों का महत्त्व समझाना नहीं है। फोकस में हैं भारत - पाकिस्तान - बांग्लादेश जैसे विकासशील देशों के विकासशील क्रिकेट प्रेमी। यही प्रेमी टिकट खरीदते हैं, विज्ञापन देख कर प्रोडक्ट खरीदते हैं, क्रिकेट के लिए घंटों-महीनों का समय देते हैं और इन सबसे होती है कमाई। देखने वाले को नैन सुख मिलता है जबकि दिखाने वाले की जेबें सुपर गर्म होती जाती हैं।
अभी तो क्रिकेट और फैलना बाकी है। चीन भी आईसीसी का मेंबर है। चीन को माल कमाना अच्छी तरह से आता है सो देखिये एक दिन वहां भी क्या गुल खिलता है।
खैर, कभी क्रिकेट एक शौकिया खेल हुआ करता था। अंग्रेजों का शौकिया खेल जिसे तफरीह के लिए खेला जाता था लेकिन अब क्रिकेट और तफरीह – दोनों विपरीत हैं। क्रिकेट अब अरबों डॉलर की इंडस्ट्री है। ये बड़ी तेजी से बढ़ता जा रहा है। वजह सिर्फ एक है - विकासशील दुनिया इस खेल को अपना रही है। क्रिकेट के ग्लोबल सर्कस यानी इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) की कीमत 2.99 बिलियन डॉलर हो गयी है। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) अब दुनिया का सबसे अमीर क्रिकेट संघ है। ये हमेशा अमीर नहीं था, 1992 में इसका घाटा 1,50,000 डॉलर था। अब, समय बदल गया है : आज बीसीसीआई अनुमानित $2 बिलियन डालर के सालाना राजस्व के साथ दुनिया का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड है। बीसीसीआई के बाद ईसीबी (इंग्लैंड और वेल्स क्रिकेट बोर्ड) $368 मिलियन और सीए (क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया) $270 मिलियन के वार्षिक राजस्व के साथ दूसरे स्थान पर हैं। इत्तेफाक से ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में दक्षिण एशियाई लोगों की भरमार है।
बहरहाल, अब खेल जिस्मानी-दिमागी तंदरुस्ती की चीज नहीं रही, अब ये पैसा बनाने का जरिया है। अमीर तो वैसे ही अमीर हैं, उनसे तुलना करना नहीं चाहिए लेकिन लोअर और मिडिल क्लास के पास पैसा है नहीं और समय बहुत है। और यही खेल है। सब समय का खेल है – जो समझ सके वो खिलाड़ी है जो न समझे वो अनाड़ी है।
( लेखक पत्रकार हैं । साभार दैनिक पूर्वोदय ।)