फ्रांस यूं ही नहीं बना फुटबॉल का दिग्गज, गलियों और सड़कों तलाशे जातें है हीरो

Update: 2018-07-21 06:50 GMT

अनूप ओझा

लखनऊ: इस बार का फीफा वर्ल्ड कप जीतने वाली फ्रांस की टीम की कामयाबी की कहानी बिल्कुल फिल्मों सरीखी है। किसी ने फ्रांस के जीतने की उम्मीद नहीं लगाई थी मगर फ्रांस की टीम ने सभी पूर्वानुमानों को ध्वस्त करते हुए सारी दुनिया में प्रतिष्ठित माने जाने वाले इस कप को जीत लिया। किसी फिल्मी कहानी की तरह गलियों और सड़कों से उठकर एक दिन पूरे देश के लिए हीरो बन जाना फ्रांस फुटबॉल के लिए वो सच्चाई है जो दुनिया को यह सोचने पर मजबूर करती है कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

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1998 के वर्ल्ड कप में कमाल दिखाने वाले जिदान 10 साल की उम्र में स्थानीय फुटबॉल क्लब कैसेल से जुड़े। यहाँ के नामी क्लब सेपटेमस लेस बेलोंस के कोच रोबर्ट की नजर उन पर पड़ी और वह उनके खेल से प्रभावित हुए। उन्होंने जिदान को जोडऩे के लिए क्लब के डायरेक्टर से बात की। 14 साल की उम्र तक जिदान उस क्लब में रहे। फिर वह कैनास, बॉरडेक्स, जुवेंटस और रियाल मैड्रिड जैसे दिग्गज क्लबों के लिए भी खेले।

बचपन से प्रतिभाओं पर नजर

ऐसी कहानी सिर्फ जिदान की ही नहीं है। फ्रांस में फुटबॉल की प्रतिभाओं को तराशने के लिए बहुत ही बारीकी से नजर रखी जाती है। बचपन से ही प्रतिभाओं पर नजर रखी जाती है। गांव, गली मुहल्लों में खेलने वाले खिलाडिय़ों को धीरे धीरे प्रशिक्षित कर उनके खेल का स्तर सुधारा जाता है और उन्हें देश के लिए खेलने के लायक बनाया जाता है।

फ्रांस यूं ही नहीं बना फुटबॉल का दिग्गज, गलियों और सड़कों तलाशे जातें है हीरो

बुनियादी ढांचे पर होता है काम

आज फ्रांस फुटबॉल की दिग्गज टीम यूं ही नहीं बना है। इसके पीछे इसका चमकदार इतिहास रहा है। एक शताब्दी से अधिक समय लंबे समय का इतिहास संजोए इस देश ने फुटबॅाल में प्रतिभाओं को तराशने के लिए काफी तैयारी की है।

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फ्रांस के क्लबों में लीग, फुटबॉल के बुनियादी ढांचे पर काम होता है। संभावित प्रतिभाओं को प्रशिक्षित किया जाता है। हजारों समॢपत पेशेवर और स्वयंसेवक भी खिलाडिय़ों को तैयार करने में मदद करते हैं। वे अपने अनुभव साझा करने के साथ ही खिलाडिय़ों में जुनून पैदा करते हैं ताकि उनमें आगे बढऩे की ललक पैदा हो। फ्रांस की कुल जनसंख्या में तकरीबन 6.8 फीसदी हिस्सा अप्रवासियों का है, लेकिन देश की फुटबॉल टीम में 78.3 फीसदी अप्रवासी खिलाड़ी हैं।

1872: पहला फ्रांसीसी क्लब बनाया गया (ले हैवर एथलेटिक क्लब)।

1906 में स्थापित अंतर-संघीय फ्रेंच समिति फ्रांसीसी फुटबॉल संघ बन गई।

1921: जुल्स रिमेट को फीफा का अध्यक्ष बनाया गया।

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अलग-अलग आयु वर्ग की टीमें

यूरोप में शुरुआती स्तर से ही फुटबॉल को प्रमोट किया जाता है। 2004 में यूरोपीय फुटबॉल संघ ने सभी प्रमुख क्लबों को निर्देश दिए थे कि वे अलग-अलग उम्र की टीमों का संचालन करें। मसलन चोटी पर खेलने वाले हर क्लब को अंडर-10 और 10 से 14 आयुवर्ग में एक-एक टीम और 15 से 21 आयुवर्ग में दो टीमें रखनी होती हैं। यूरोपीय फुटबॉल महासंघ यूएफा के तत्कालीन अध्यक्ष लेनर्ट जोहानसन की कोशिश थी कि यूरोपीय फुटबॉल में तकनीकी रूप से मजे हुए खिलाड़ी नियमित रूप से आते रहें, जिससे नेशनल टीमों को भी फायदा हो रहा है।

फ्रांस के फुटबॉल स्टेडियम

स्टेड डी फ्रांस,पार्क डी प्रांस,स्टाडे डे नीस,स्टाड वेलोड्रोम,स्टाडे डे लियों,स्टाडे डे बोर्दो,स्टाडे डे टुलूस,स्टाडे पियर मौरुआ,स्टाडे फेलिक्स बोलैर्ट डेलेसिस,स्टाडे जोफ्रॉ गिशा।

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फ्रांस में फुटबॉल पॉलिसी

फ्रांस की राष्ट्रीय फुटबॉल टीम अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल प्रतियोगिताओं में फ्रांस का प्रतिनिधित्व करती है। यह फ्रेंच फुटबॉल संघ द्वारा नियंत्रित की जाती है। राष्ट्रीय टीम लोकप्रिय रूप से लेस ब्लेउस (नीले) के रूप में जानी जाती है, क्योंकि उनकी वर्दी का रंग नीला है। फ्रांस ने 1904 में अपना पहला आधिकारिक मैच खेला और आज मुख्य रूप से पेरिस में स्थित स्टेड डी फ्रांस में अपने घरेलू मैच खेलती है। राष्ट्रीय टीम ने दो फीफा विश्व कप खिताब, दो यूईएफए यूरो, ओलंपिक टूर्नामेंट और दो फीफा कोन्फिडरेशन्स कप जीते हैं।

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फ्रांस के टॉप टेन फुटबॉल क्लब

पेरिस सेंट जर्मेन, लियोन, ओलंपिक मार्सेल, रेन , बोर्डो, नाइस,सेंट-एटिनी,मोंटपेलियर,नैनटेस एमियंस एससी।

प्रमुख कोच

ऐमे जैकेट,एलन गियर्ससे, एलन पेरिन, अल्बर्ट ईमन, आर्सन वेंगर,बर्नार्ड लामा,बर्नार्ड लापोर्ट, ब्रूस बोची,ब्रूनो,क्रिश्चियन गोर्कफ।

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