Tokyo Olympic : टोक्यो में 41 साल के सूखे को खत्म कर सकती हाॅकी टीम, धनराज पिल्लै को पदक की उम्मीद

धनराज पिल्लै हाॅकी के प्रसिद्ध खिलाड़ी हैं। जिन्हें राजीव गांधी खेल रत्न, पद्मश्री व अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। वर्तमान में वह भारतीय हाकी टीम के मैनेजर हैं।

Written By :  Ramkrishna Vajpei
Published By :  Sushil Shukla
Update:2021-07-15 13:07 IST

हाॅकी खिलाड़ी धनराज पिल्लै (फाइल फोटो)

Tokyo Olympic : 16 जुलाई 1968 को जन्मे धनराज पिल्लै (Dhanraj Pilly) हाॅकी (Hockey) के प्रसिद्ध खिलाड़ी हैं। जिन्हें राजीव गांधी खेल रत्न (Rajiv gandhi khel ratna), पद्मश्री (Padm shri) व अर्जुन पुरस्कार (Arjun puruskaar) से सम्मानित किया जा चुका है। वर्तमान में वह भारतीय हाकी टीम के मैनेजर (Manager) हैं। जिनका मानना है कि इस बार बहुत मजबूत टीम टोक्यो ओलंपिक (Tokyo olympic) में हिस्सा ले रही है। देश के लिए बहुत उम्मीदों भरा बयान देते हुए उन्होंने कहा है कि हाॅकी टीम पदक के पिछले 41 वर्षों के सूखे को खत्म कर सकती है। धनराज खुद 1992 से लेकर 2004 तक लगातार चार ओलंपिक खेलों में भारतीय टीम का हिस्सा रहे हैं। एक और खास बात वह कंवर पाल सिंह गिल के निलंबन के पश्चात निर्मित भारतीय हॉकी फेडरेशन की अनौपचारिक (एडहॉक) समिति के सदस्य भी हैं।

धनराज पिल्लै का जीवन परिचय (Dhanraj Pilly ka jeevan parichay) 

मैच के दौरान हाॅकी खिलाड़ी धनराज पिल्लै (फाइल फोटो)

पिल्लै का जन्म महाराष्ट्र के खड़की में हुआ लेकिन मूल रूप से उनके माता पिता तमिल हैं। पिल्लै ने अपना बचपन ऑर्डिनेंस फैक्ट्री स्टाफ कॉलोनी में बिताया, जहां उनके पिता ग्राउंड्समैन थे। उन्होंने हाकी में अपने हुनर को अपने भाइयों और कॉलोनी के मित्रों के साथ ओएफके मैदान पर टूटी हुई लकड़ियों तथा हॉकी की फेंकी हुई गेंदों के साथ खेलते हुए निखारा। वे महान फॉरवर्ड खिलाड़ी हैं और उनके आदर्श मोहम्मद शाहिद रहे जिनकी शैली की नकल करने का इन पर आरोप भी लगता रहा है। लेकिन ये खिलाड़ी अपनी सफलता का सारा श्रेय अपनी माँ को देता है, जिन्होंने बेहद गरीब होने के बावजूद अपने पांचों बेटों को हॉकी खेलने के लिए प्रोत्साहित किया। इनकी जीवनी 'फोर्गिव मी अम्मा (मुझे माफ कर दो माँ)' शीर्षक से लगभग तीन दशकों के उनके करियर पर नजर रखने वाले पत्रकार सन्दीप मिश्रा ने लिखी है।

पुरस्कार प्राप्त करते हाॅकी खिलाड़ी धनराज पिल्लै (फाइल फोटो)

भाई ने की बेहतरीन स्ट्राइकर बनने में मदद

धनराज अस्सी के दशक के मध्य में अपने बड़े भाई रमेश के पास मुंबई चले गए, जो मुंबई लीग में आरसीएफ के लिए खेलते थे। रमेश पहले से ही अंतरराष्ट्रीय मैचों में भारत के लिए खेल चुके थे और उनके मार्गदर्शन ने धनराज को एक द्रुत गति वाले बेहतरीन स्ट्राइकर के रूप में विकसित होने में मदद की। उसके बाद वे महिंद्रा एंड महिंद्रा में शामिल हो गए जहां उन्हें भारत के तत्कालीन कोच जोआकिम कारवालो द्वारा प्रशिक्षण मिला।

339 मैचों में किए 120 गोल

साथी खिलाड़ियों के साथ धनराज पिल्लै (फाइल फोटो)

धनराज ने अपने लंबे करियर में जो कि 1989 से शुरू हुआ था 339 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले। उनके अंतरराष्ट्रीय गोलों की संख्या 120 बतायी जाती है। वे एकमात्र ऐसे खिलाड़ी हैं जिसने चार ओलंपिक खेलों (1992, 1996, 2000 और 2004), चार विश्व कप (1990, 1994, 1998 और 2002), चार चैंपियंस ट्राफी (1995, 1996, 2002 और 2003) और चार एशियाई खेल (1990, 1994, 1998 और 2002) में भाग लिया है। भारत ने उनकी कप्तानी के तहत एशियाई खेल (1998) और एशिया कप (2003) में जीत हासिल की। उन्होंने बैंकाक एशियाई खेलों में सर्वाधिक गोल दागे थे और सिडनी में 1994 के विश्व कप के दौरान वर्ल्ड इलेवन में शामिल होने वाले एकमात्र भारतीय खिलाड़ी थे।

पत्र लिखकर दी शुभकामना

फिलहाल कोविड-19 के कड़े दिशानिर्देशों के कारण धनराज टीम से नहीं मिल पाए। उन्होंने मनप्रीत और महिला टीम की कप्तान रानी रामपाल को पत्र लिखकर टोक्यो में सफलता की शुभकामना दी है। उन्होंने कहा कि मैं बेंगलुरू में हूं और मुझे उनसे मिलकर अच्छा लगता, लेकिन प्रोटोकॉल के कारण ऐसा संभव नहीं हो पाया। उन्होंने पत्र भेजकर उन्हें शुभकामनाएं दी हैं।

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