Santan Prapti Vala Vriksh: उत्तर प्रदेश के इस शहर में स्थित है संतान प्राप्ति वाला वृक्ष, भर जाती है निःसंतान दम्पतियों की सूनी गोद

Santan Prapti Vala Vriksh: क्या आप जानते हैं कि उत्तर प्रदेश में एक ऐसी जगह है जहाँ से कोई भी खाली हांथ नहीं लौटता। यहाँ के पेड़ की मान्यता है कि जो भी निःसंतान दम्पति यहाँ आता है उसकी गोद हरी हो जाती है।

Update:2024-11-20 14:37 IST

Santan Prapti Vala Vriksh (Image Credit-Social Media)

Santan Prapti Vala Vriksh: चित्रकुट शहर को धर्म नगरी के नाम से भी जना जता है यह वही स्थान है जहां पर भगवान श्री राम ने अपने वनवास काल के 11 साल बिताये थे। वहीं आज हम आपको एक ऐसे खास वृक्ष के बरे में बताने जा रहे हैं जिसकी बेहद मान्यता है और ऐसा भी कहा जता है की जिन दमपतियों को संतान सुख नहीं प्राप्त होता है वो इस वृक्ष के पास अगर जाएं तो उनकी कामना पूरी हो जाती है और कुछ ही साल में उनके घर में किलकारियां भी गुंजाने लगती हैं। आइए जानते हैं कहाँ स्थित है ये वृक्ष और क्यों है इसकी इतनी मान्यता।

संतान प्राप्ति वाला वृक्ष

उत्तर प्रदेश के शहर चित्रकूट में एक कांच मंदिर है जिसके समीप एक वृक्ष है जिसे 'पुत्र दयानी वृक्ष' भी कहा जाता है. इस वृक्ष को लेकर मान्यता है कि यहां पर जो भी दंपति पूरी श्रद्धा भाव से प्रार्थना करते हैं उनके घर में कुछ ही समय के बाद किलकारियां गूंजने लगतीं हैं। दरअसल ये वृक्ष लगभग 500 साल पुराना है और आज भी ये उतना ही हरा भरा है। यहां दूर-दूर से लोग दर्शन करने के लिए और अपनी कामना के साथ आते हैं।

यहां के लोगों का मानना है कि इस वृक्ष की पूजा करने से लोगों की सूनी गोद हरी हो जाती है। इसके अलावा यहां पर हर साल अमावस्या के समय एक मेले का आयोजन भी किया जाता है। इस अवसर पर संतान की इच्छा रखने वाले कई दंपति इस वृक्ष की पूजा करने यहाँ आते हैं। ऐसी भी मान्यता है कि यहाँ पूजा करने के बाद वृक्ष की पत्तियों को घर ले जाने से संतान सुख की प्राप्ति जल्द ही होती है।

वृक्ष का इतिहास

आपको बता दे कि इस पुत्रदायनी वृक्ष का इतिहास बेहद दिलचस्प है इस वृक्ष को वैष्णव संप्रदाय से जुड़ा माना जाता है। साथ ही इसे लक्ष्मी नारायण मंदिर के पास स्थित प्रमोद वन में 'पुत्र जीवन कल्पवृक्ष' के रूप में भी जाना जाता है। आइये जानते हैं इस वृक्ष का क्या इतिहास है।

ऐसा कहा जाता है कि रीवा के एक राजा विश्वनाथ प्रताप को संतान सुख की प्राप्ति नहीं हो रही थी. ऐसे में राजा ने अपने दुर्भाग्य को दूर करने के लिए बद्रीनारायण से सोने की पालकी में अखंड कीर्तन करते हुए इस वृक्ष को चित्रकूट मंगवाया और मंदाकिनी नदी के किनारे इसकी स्थापना की इसके बाद राजा के घर संतान की प्राप्ति हुई और उनके पुत्र रघुराज नारायण का जन्म हुआ। इसके बाद राजा ने संतान प्राप्ति के उपलक्ष में 507 कोठारी बनवाने का आदेश भी दिया जो आज भी चित्रकूट में देखने को मिलती हैं।

इस वृक्ष को देखकर श्रद्धालुओं का विश्वास और भी बढ़ जाता है सा ही यहाँ पूजा करने से जिन दम्पतियों को संतान सुख प्राप्त नहीं होता है उनको भी संतान सुख की प्राप्ति होती है। ऐसा भी कहा जाता है कि जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा भाव से इस वृक्ष की पूजा करता है उसे डेढ़ साल में आशीर्वाद स्वरुप संतान की प्राप्ति हो जाती है। 

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