Bharat Ka Akhri Gaon: भारत का आखिरी गांव चितकुल, जानें कहां है और कैसा दिखता है
India’s Last Village In Himachal Pradesh: आज हम जानेंगे भारत के आखिरी गांव के बारे में, जो अपनी परंपराओं, रीति-रिवाजों और रहन-सहन के लिए मशहूर है।;
India’s Last Village (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
Bharat Ka Akhri Gaon: भारत का आखिरी गाँव चितकुल (Chitkul), हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में स्थित है। यह गाँव अपनी प्राकृतिक सुंदरता, ठंडी जलवायु, पारंपरिक संस्कृति और अद्भुत दृश्यों के लिए जाना जाता है। चितकुल समुद्र तल से लगभग 3,450 मीटर (11,319 फीट) की ऊँचाई पर बसा हुआ है और यह बसपा नदी के किनारे स्थित है। यह गाँव भारत-तिब्बत सीमा के सबसे नज़दीक स्थित बस्ती है, जिसके बाद कोई भी नागरिक क्षेत्र नहीं आता।
चितकुल न केवल पर्यटन के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इस गाँव के बाद भारतीय सीमा सुरक्षा बल (ITBP) की चौकियाँ हैं, जो चीन सीमा की निगरानी करती हैं। यहाँ के लोग अपनी परंपराओं, रीति-रिवाजों और रहन-सहन के लिए जाने जाते हैं। इस लेख में हम चितकुल के इतिहास, संस्कृति, भौगोलिक विशेषताओं और वर्तमान स्थिति के बारे में विस्तार से जानेंगे।
चितकुल का इतिहास (Chitkul Ka Itihas)
चितकुल का इतिहास किन्नौर जिले (Kinnaur) के प्राचीन इतिहास से जुड़ा हुआ है। यह क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से कुनिंद जनजाति और बाद में बौद्ध प्रभाव के अधीन रहा है। किन्नौर जिले का उल्लेख महाभारत, रामायण और अन्य प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। इसे "किन्नर देश" (Kinnar Desh) कहा जाता था, जहाँ किन्नर जाति के लोग रहते थे, जो संगीत और कला में निपुण माने जाते थे।
चितकुल का नाम पुराने तिब्बती और किन्नौरी भाषाओं से आया है, जिसका अर्थ है "शांत गाँव"। यह गाँव पुराने व्यापार मार्ग का हिस्सा था, जो भारत और तिब्बत के बीच व्यापारिक संबंधों को जोड़ता था। यहाँ ऊन, अनाज, नमक और अन्य सामानों का आदान-प्रदान किया जाता था।
चितकुल कभी भी किसी बड़े साम्राज्य के अधीन नहीं रहा, बल्कि यह एक स्वतंत्र क्षेत्र रहा, जहाँ स्थानीय राजा या मुखिया शासन करते थे। यह गाँव किन्नौर क्षेत्र के साथ-साथ तिब्बत और लद्दाख से भी व्यापारिक संबंध रखता था। यहाँ के लोग खेती और पशुपालन पर निर्भर थे।
आधुनिक काल में चितकुल
ब्रिटिश काल में चितकुल और किन्नौर क्षेत्र को ट्रांस-हिमालयन क्षेत्र का हिस्सा माना जाता था। इस दौरान यहाँ कई ब्रिटिश खोजकर्ता और पर्वतारोही आए। भारत की स्वतंत्रता के बाद, यह क्षेत्र भारत सरकार के नियंत्रण में आ गया और अब यह हिमाचल प्रदेश राज्य का हिस्सा है।
कमरू किला पर्यटकों के लिए सिर्फ एक फोर्ट ही नहीं, बल्कि एक पवित्र मंदिर के साथ-साथ एक ऐतिहासिक फोर्ट भी है। यह एक ऐसा फोर्ट है जिसके कई हिस्सों को लकड़ी से बनाया गया है।
कमरू किला (Kamru Fort) के बारे में कहा जाता है कि अब इसे एक मंदिर में बदल दिया गया है और यह मंदिर हिंदू देवी कामाख्या देवी (Kamakhya Devi) को समर्पित है। मंदिर के द्वार पर भगवान भगवान बुद्ध की एक विशाल प्रतिमा भी मौजूद है। पहाड़ी की चोटी पर मौजूद होने के चलते यहां काफी अधिक संख्या में पर्यटक घूमने पहुंचते हैं।
चितकुल गांव में आपको हर तरफ सिर्फ लकड़ी से बने पारंपरिक घर ही मिलेंगे। इनकी दीवारें पत्थरों से बनायी गयी हैं। यह मुख्य रूप से हिमाचल प्रदेश की वास्तुकला है और यही इस गांव की एक बहुत बड़ी खासियत है। शहरों में बने कॉंक्रीट के जंगलों को देखकर अगर आपकी आंखें थक गयी हैं तो हम दावे से कह सकते हैं कि हिमाचली वास्तुकला को देखकर आपको ताजगी महसूस होगी।
परंपराएँ शुरुआत में पूरी तरह से विकृत थीं और मानव बलि काफी आम बात थी। आजकल हर मंदिर में एक उठा हुआ मंच है जो अब पशु बलि के लिए उपयोग किया जाता है। यह क्षेत्र बाद में उत्तराखंड में धौलाधारों के पार बद्रीनाथ और गंगोत्री के करीब होने के कारण हिंदुत्व से प्रभावित हुआ। वास्तव में कमला किले में बद्रीनाथ मंदिर है जो सांगला से चितकुल जाने के रास्ते में है जहाँ हर तीन साल में एक मेला लगता है और यहाँ से शुरू होने वाला जुलूस मूर्ति को गंगोत्री ले जाता है। बौद्ध प्रभाव होने का एक कारण ये भी है कि इस क्षेत्र में भटकते चरवाहे और व्यापारिक समुदाय चरांग दर्रे के पार तिब्बत तक आवाजाही करते हैं।
भौगोलिक विशेषताएँ
चितकुल गाँव हिमालय की गोद में बसा हुआ है। चितकुल, हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में बसपा नदी के किनारे स्थित है। समुद्र तल से इसकी ऊँचाई 3,450 मीटर (11,319 फीट) है। इस गाँव से होकर बसपा नदी बहती है, जो सतलुज नदी की एक प्रमुख सहायक नदी है। यहाँ का मौसम ठंडा रहता है। सर्दियों में यहाँ का तापमान -20°C तक गिर जाता है, जबकि गर्मियों में भी अधिकतम 20°C तक ही पहुँचता है। यहाँ पर देवदार, भोजपत्र, और अन्य शंकुधारी वृक्ष पाए जाते हैं। हिम तेंदुआ, भूरा भालू, और विभिन्न प्रकार के पहाड़ी पक्षी यहाँ देखे जा सकते हैं।
संस्कृति और परंपराएँ
चितकुल के लोग मुख्य रूप से किन्नौरी जनजाति से संबंधित हैं और इनकी भाषा किन्नौरी और हिंदी है। यह गाँव बौद्ध धर्म और हिंदू संस्कृति का अनूठा मिश्रण प्रस्तुत करता है।
1. आराध्य देवता – माता माथी देवी मंदिर
चितकुल में माता माथी देवी का एक प्राचीन मंदिर है, जो इस क्षेत्र के लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। माता माथी को किन्नौर की प्रमुख देवी माना जाता है और यह मंदिर करीब 500 साल पुराना है।
2. लोक नृत्य और संगीत
यहाँ के लोग पारंपरिक लोक संगीत और नृत्य में रुचि रखते हैं। विशेष अवसरों पर किन्नौरी नाटी और अन्य पारंपरिक नृत्य प्रस्तुत किए जाते हैं।
3. पहनावा
यहाँ के लोग ऊनी कपड़े पहनते हैं, क्योंकि यहाँ का मौसम ठंडा रहता है। पुरुष किन्नौरी टोपी पहनते हैं, जबकि महिलाएँ सुंदर कढ़ाई वाले ऊनी वस्त्र पहनती हैं।
4. प्रमुख त्यौहार
फुलैच त्यौहार: यह एक फूलों का त्यौहार है, जो यहाँ के लोगों द्वारा बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। लोसार: यह तिब्बती नववर्ष है, जिसे बौद्ध समुदाय द्वारा मनाया जाता है।दीपावली और दशहरा: हिंदू त्यौहार भी यहाँ धूमधाम से मनाए जाते हैं।
आर्थिक स्थिति और पर्यटन
चितकुल गाँव की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से पर्यटन, कृषि और पशुपालन पर निर्भर है। चितकुल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण पर्यटकों को आकर्षित करता है। यहाँ पर आने वाले पर्यटक निम्नलिखित चीज़ों का आनंद लेते हैं: हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियाँ, बसपा नदी के किनारे घूमना, स्थानीय संस्कृति और भोजन का आनंद लेना। ट्रेकिंग और कैंपिंग। चितकुल में राजमा और आलू की खेती बहुत प्रसिद्ध है। यहाँ की किन्नौरी सेब भी पूरे देश में मशहूर हैं। यहाँ के लोग भेड़-बकरियाँ पालते हैं और ऊनी वस्त्रों का निर्माण करते हैं।
वर्तमान स्थिति और चुनौतियाँ
चितकुल गाँव अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, लेकिन यहाँ कई चुनौतियाँ भी हैं:
मौसम की कठोरता: सर्दियों में यहाँ भारी बर्फबारी होती है, जिससे गाँव कई महीनों तक दुनिया से कट जाता है।
सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण सुरक्षा चुनौतियाँ: चितकुल भारत-तिब्बत सीमा के पास स्थित है, इसलिए यहाँ ITBP की चौकियाँ हैं।
आधुनिक सुविधाओं की कमी: इंटरनेट, बिजली और स्वास्थ्य सुविधाएँ सीमित हैं।
पर्यटन से बढ़ता दबाव: अधिक पर्यटकों के आने से यहाँ के प्राकृतिक पर्यावरण पर असर पड़ रहा है।
चितकुल भारत का आखिरी गाँव होने के बावजूद, अपनी अनूठी संस्कृति, प्राकृतिक सौंदर्य और समृद्ध इतिहास के कारण बहुत खास है। यह गाँव न केवल पर्यटकों के लिए एक स्वर्ग है, बल्कि यह भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक है। हालाँकि, यहाँ की कठिन परिस्थितियाँ और सीमित संसाधन इसे एक चुनौतीपूर्ण स्थान बनाते हैं। भविष्य में अगर यहाँ बुनियादी सुविधाओं का विकास किया जाए और पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी जाए, तो यह गाँव एक आदर्श पर्यटन स्थल के रूप में उभर सकता है।