Sabse Bada Nastik Desh : चीन है दुनिया का सबसे बड़ा नास्तिक देश, आइए जानते हैं लोगों के नास्तिक बनने के कारण
Sabse Bada Nastik Desh China: चीन में नास्तिकता का उदय प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक कारकों के कारण हुआ। चीन में लगभग 90% से अधिक लोग नास्तिक हैं या किसी संगठित धर्म का पालन नहीं करते।;
Duniya Ka Sabse Bada Nastik Desh China
Duniya Ka Sabse Bada Nastik Desh China: चीन आज दुनिया का सबसे बड़ा नास्तिक देश (Duniya Ka Sabse Bada Nastik Desh) माना जाता है। यहाँ धार्मिक विश्वास की तुलना में वैज्ञानिक सोच और तर्कवादी दृष्टिकोण को अधिक महत्व दिया जाता है। यह स्थिति अचानक नहीं बनी, बल्कि इसका एक लंबा ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक विकास हुआ है।
चीन में नास्तिकता का उदय प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक कारकों के कारण हुआ। चीन आधिकारिक रूप से एक नास्तिक देश है. चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी किसी भी धर्म को नहीं मानती है और नास्तिक विचार को तवज्जो देती है।
प्राचीन चीन और धार्मिक परंपराएँ (Ancient China and Religious Traditions)
चीन में प्रारंभिक काल में कई प्रकार की धार्मिक मान्यताएँ थीं। इनमें मुख्य रूप से ताओवाद (Taoism), कन्फ्यूशियसवाद (Confucianism) और बौद्ध धर्म प्रमुख थे।
1. ताओवाद (Daoism)
ताओवाद चीन का एक पारंपरिक धर्म और दार्शनिक विचारधारा है जिसकी स्थापना लाओ त्ज़ु (Laozi) ने की थी। यह धर्म प्रकृति और संतुलन पर आधारित था और ईश्वर के बजाय प्राकृतिक शक्तियों की पूजा को महत्व देता था। यह दर्शन धार्मिक से अधिक व्यावहारिक और दार्शनिक था।
2. कन्फ्यूशियसवाद (Confucianism)
कन्फ्यूशियसवाद की स्थापना कन्फ्यूशियस (Confucius) ने की थी। इसमें नैतिकता, सामाजिक अनुशासन और पारिवारिक मूल्यों पर जोर दिया जाता था। इसे धर्म से अधिक सामाजिक आचार संहिता के रूप में देखा जाता था।
3. बौद्ध धर्म (Buddhism)
बौद्ध धर्म भारत से चीन में लगभग पहली शताब्दी ईसा पूर्व में पहुँचा। इसे कई चीनी राजाओं ने संरक्षण दिया और बौद्ध मठों का निर्माण किया गया। यह चीन में एक प्रमुख धर्म बन गया और इसे जनता में व्यापक समर्थन मिला। इन तीन धार्मिक विचारधाराओं के बावजूद, चीन में धार्मिक कट्टरता कभी अधिक नहीं रही।
साम्राज्यवादी चीन में धर्म की स्थिति
चीन के विभिन्न राजवंशों ने धर्म को एक सामाजिक और नैतिक अनुशासन के रूप में समर्थन दिया। मिंग (Ming) और चिंग (Qing) राजवंशों ने बौद्ध धर्म और कन्फ्यूशियसवाद को बढ़ावा दिया। लेकिन साथ ही, चीनी दर्शन में धार्मिक कट्टरता के लिए बहुत अधिक स्थान नहीं था।
20वीं सदी में नास्तिकता का उदय
साम्राज्यवादी युग का पतन और आधुनिकता की ओर- 1911 में चीन के अंतिम सम्राट पु यी (Puyi) को हटाकर चीन गणराज्य की स्थापना हुई। इसके बाद चीन में साम्यवाद (Communism) और नास्तिकता का उदय होने लगा। आधुनिक चीन में वैज्ञानिक सोच, उद्योगीकरण और तर्कशीलता को अधिक महत्व दिया गया।
माओ ज़ेदोंग और सांस्कृतिक क्रांति- 1949 में माओ ज़ेदोंग (Mao Zedong) के नेतृत्व में चीन में साम्यवादी सरकार की स्थापना हुई। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने धार्मिक आस्थाओं को हटाकर वैज्ञानिक समाजवाद को बढ़ावा दिया। 1966-1976 के बीच हुई सांस्कृतिक क्रांति (Cultural Revolution) के दौरान धार्मिक स्थलों और ग्रंथों को नष्ट कर दिया गया। बौद्ध मठों को ध्वस्त किया गया और धार्मिक नेताओं को गिरफ्तार किया गया। माओ ज़ेदोंग ने "धर्म अफीम है" वाली मार्क्सवादी विचारधारा को अपनाया।
साम्यवादी सरकार की नीतियाँ- चीन में धर्म को व्यक्तिगत स्वतंत्रता से अधिक सरकार के नियंत्रण में रखा गया। धार्मिक शिक्षाओं को प्रतिबंधित कर दिया गया और चर्च, मंदिरों और मस्जिदों पर सरकारी नियंत्रण स्थापित किया गया। चीन की शिक्षा प्रणाली को पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष बनाया गया।
चीन में नास्तिकता के मुख्य कारण (Reasons For Atheism In China)
चीन की सरकार मार्क्सवादी विचारधारा को अपनाती है, जिसमें धर्म को अस्वीकार किया गया है। चीन में वैज्ञानिक शिक्षा को अधिक प्राथमिकता दी जाती है, जिससे धार्मिक आस्थाएँ कम होती गईं। चीनी स्कूलों में धर्मनिरपेक्ष और नास्तिक विचारधारा को बढ़ावा दिया जाता है। चीन में धर्म पर सरकारी नियंत्रण इतना मजबूत है कि धार्मिक गतिविधियाँ सीमित कर दी गई हैं। माओ ज़ेदोंग की नीतियों के कारण नई पीढ़ी धार्मिक आस्थाओं से दूर होती चली गई।
चीन का वैश्विक प्रभाव और भविष्य
चीन दुनिया के अन्य देशों में भी धर्मनिरपेक्षता और नास्तिकता को बढ़ावा दे रहा है। चीन की सरकार धर्म की बजाय वैज्ञानिक विकास, तकनीकी उन्नति और आर्थिक प्रगति पर ध्यान केंद्रित कर रही है। भविष्य में भी चीन में धार्मिक स्वतंत्रता सीमित रहने की संभावना है।
चीन में नास्तिकता का विकास एक ऐतिहासिक प्रक्रिया रही है। प्राचीन दार्शनिक विचारों से लेकर आधुनिक कम्युनिस्ट नीतियों तक, इस देश ने धर्म को धीरे-धीरे पीछे छोड़ दिया है। सरकार की सख्त नीतियों और वैज्ञानिक सोच को प्राथमिकता देने के कारण आज चीन दुनिया का सबसे बड़ा नास्तिक देश बन चुका है।
भविष्य में भी चीन में धर्म पर सरकारी नियंत्रण बना रहेगा, और यह देश नास्तिकता की दिशा में और आगे बढ़ सकता है।
चीन में धर्म और सरकार का दृष्टिकोण
चीन की सरकार का मानना है कि धार्मिक आस्था से वामपंथी विचारधारा कमजोर होती है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) अपने सदस्यों को मार्क्सवादी नास्तिक बनने के लिए प्रोत्साहित करती है और किसी भी धार्मिक गतिविधि में भाग लेने पर सख्त पाबंदी लगाती है।
कम्युनिस्ट पार्टी और धर्म
चीन के पहले कम्युनिस्ट नेता माओ त्से तुंग ने धर्म को खत्म करने की कोशिश की थी। उन्होंने नास्तिकता को बढ़ावा दिया और धार्मिक गतिविधियों को पार्टी की विचारधारा के खिलाफ माना। CCP के अधिकारियों का कहना है कि पार्टी के सदस्यों को सार्वजनिक रूप से किसी भी धार्मिक कार्यक्रम में भाग लेने की अनुमति नहीं है।
उदाहरण के लिए, जनवरी 2015 में पार्टी के 15 अधिकारियों को अनुशासन तोड़ने का दोषी पाया गया था। इनमें से कुछ पर दलाई लामा का समर्थन करने का आरोप था। पार्टी व्यक्तिगत धार्मिक मान्यता को लेकर अधिक चिंतित नहीं है, लेकिन धर्म को एक सामूहिक गतिविधि के रूप में उभरने नहीं देना चाहती।
धर्म पर सरकारी नियंत्रण और पाबंदियां
चीनी सरकार को डर है कि धार्मिक संस्थाएं उसकी सत्ता को चुनौती दे सकती हैं और उसके लिए खतरा बन सकती हैं। इसी कारण चीन में धर्म पर कई तरह की पाबंदियां लगाई गई हैं, विशेष रूप से इस्लाम और ईसाई धर्म के अनुयायियों पर।
चीन के शिनजियांग प्रांत में मुस्लिमों को सख्त पाबंदियों का सामना करना पड़ता है। यहां हिजाब पहनने, दाढ़ी बढ़ाने और रमजान में रोज़ा रखने तक पर रोक है। चीनी सरकार उइगर मुस्लिमों को कट्टरपंथ से जोड़कर देखती है और उनके धार्मिक अभ्यास पर कड़ी निगरानी रखती है।
बौद्ध धर्म के प्रति नरम रवैया
इस्लाम और ईसाई धर्म की तुलना में चीन का बौद्ध धर्म के प्रति रवैया थोड़ा अलग है। बौद्ध धर्म को चीन में अधिक स्वीकृति मिली हुई है। यह दूसरी शताब्दी में चीन में आया था और आज ग्रामीण इलाकों में इसका गहरा प्रभाव है। सरकार इसे अपनी सांस्कृतिक विरासत के रूप में देखती है और इस पर उतनी सख्ती नहीं बरतती जितनी इस्लाम या ईसाई धर्म पर।
चीन में धार्मिक मान्यता का बढ़ता प्रभाव
हालांकि चीन सरकार धर्म पर कड़ी निगरानी रखती है, लेकिन वहां धार्मिक मान्यता रखने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है। शंघाई स्थित ईस्ट चाइना नॉर्मल यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए एक शोध के अनुसार, चीन में 31.4% लोग किसी न किसी धर्म को मानते हैं। गैर-पंजीकृत धार्मिक लोगों की संख्या भी बढ़ रही है। अंडरग्राउंड चर्च और प्रतिबंधित धार्मिक संगठनों में बड़ी संख्या में लोग शामिल हो रहे हैं।
चीन दुनिया की सबसे ताकतवर अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, लेकिन यहां धर्मों की स्थिति कमजोर है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के लगभग 8.5 करोड़ सदस्य हैं। पार्टी के सदस्यों को सख्त चेतावनी दी गई है कि वे किसी भी धर्म का पालन नहीं कर सकते। अगर कोई पार्टी सदस्य धार्मिक गतिविधियों में लिप्त पाया जाता है, तो उसे सजा दी जाती है।
इस्लाम चीन में 7वीं शताब्दी में अरब व्यापारियों के माध्यम से पहुंचा। वर्तमान में चीन में लगभग 1.5 करोड़ से अधिक मुस्लिम हैं। चीनी मुस्लिम मुख्य रूप से सुन्नी हैं, लेकिन उन पर सूफी प्रभाव अधिक है। चीन का मुस्लिम देशों के साथ अच्छे संबंध हैं, इसलिए सरकार उन्हें पूरी तरह अलग-थलग नहीं कर सकती। लेकिन फिर भी, उइगर मुस्लिमों के खिलाफ चीन की सख्त नीतियों के कारण कई इस्लामिक देशों ने चिंता जताई है।
चीन में ईसाई धर्म को लेकर सरकार का रवैया काफी सख्त है। गैर-पंजीकृत चर्चों पर आए दिन छापे मारे जाते हैं और पादरियों को गिरफ्तार किया जाता है।
वर्तमान में चीन की धार्मिक स्थिति
चीन में लगभग 90% से अधिक लोग नास्तिक हैं या किसी संगठित धर्म का पालन नहीं करते। बौद्ध धर्म, ताओवाद और इस्लाम अब भी चीन में मौजूद हैं, लेकिन इन पर सरकार का कड़ा नियंत्रण है। चीन सरकार केवल पाँच धर्मों को मान्यता देती है– बौद्ध धर्म, ताओवाद, इस्लाम, कैथोलिक ईसाई धर्म और प्रोटेस्टेंट ईसाई धर्म। धार्मिक नेताओं को सरकार के प्रति वफादार रहना आवश्यक होता है। कई चर्च और मस्जिदों को नष्ट कर दिया गया है और धार्मिक पुस्तकों को प्रतिबंधित किया गया है। धार्मिक संगठनों को पाँच राज्य-स्वीकृत देशभक्त धार्मिक संघों में से एक के साथ पंजीकृत होना चाहिए, जिनकी देखरेख कम्युनिस्ट पार्टी की एक शाखा यूनाइटेड फ्रंट वर्क डिपार्टमेंट द्वारा की जाती है।
चीन में धर्म और सरकार के बीच हमेशा से एक जटिल रिश्ता रहा है। जबकि सरकार अपने नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता देने का दावा करती है, वास्तविकता यह है कि धार्मिक गतिविधियों पर सख्त नियंत्रण रखा जाता है। चीन में धर्म को नियंत्रित करने की नीति सरकार की सत्ता बनाए रखने की रणनीति का हिस्सा है। हालांकि, बढ़ती धार्मिक मान्यता सरकार के लिए एक नई चुनौती बन सकती है।