Pilgrimage Places in Rajasthan: राजस्थान के कुछ प्रमुख तीर्थस्थल, आइये घुमाते हैं आपको

Pilgrimage Places of Rajasthan : राजस्थान राज्य के बालोतरा शहर से 9 किलोमीटर दूर बालोतरा बाड़मेर नेशनल हाईवे 25 पर स्थित भगवान श्री रणछोड़राय जी का प्राचीन मंदिर अपनी कलात्मक दृश्य से सबका मन मोह लेती है।

Update: 2022-07-14 04:18 GMT

राजस्थान के तीर्थ स्थल (फोटो- सोशल मीडिया)

Pilgrimage places of Rajasthan: रणछोड़ मंदिर , खेड़, राजस्थान (Ranchod Temple, Khed, Rajasthan) राजस्थान राज्य के बालोतरा शहर से 9 किलोमीटर दूर बालोतरा बाड़मेर नेशनल हाईवे 25 पर स्थित भगवान श्री रणछोड़राय जी का प्राचीन मंदिर अपनी कलात्मक दृश्य से सबका मन मोह लेती है। कहा जाता है की यह भगवान श्री रणछोड़ राय जी का दुनिया का पहला मंदिर है।

खेड़ मंदिर का विशाल प्रवेश द्वार भी देखने लायक है। इस पर की गई कारीगरी और नक्काशी बहुत ही सुंदर है। खेड़ मंदिर में प्रवेश करते ही सामने एक मंदिर है।


इस मंदिर में गोयल गोत्र और डाभी गोत्र की कुलदेवी मां नवदुर्गा मां चामुंडा और श्री गणेश जी की प्रतिमा स्थापित है। मां नवदुर्गा मंदिर के पास ही भगवान श्री रणछोड़ राय जी का भव्य मंदिर है। रणछोड़राय जी का मंदिर शीशमहल के जैसा भव्य है। इस मंदिर के आगे का भाग संगमरमर से बनाया गया है।

रणछोड़राय मंदिर के पास श्री भूरिया बाबा हनुमान जी का मंदिर है और पास ही शेषनाग पर विराजमान भगवान श्री नीलकंठ महादेव का मंदिर है। इस मंदिर के दर्शन के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। यहां पर हर पूर्णिमा को लोगों की ज्यादा चहल-पहल रहती है। खासकर गुरु पूर्णिमा को मेले जैसा माहौल रहता है।


रणछोड़राय के मंदिर दर्शन के लिए आपको भारत के प्रमुख शहरों से जोधपुर के लिए बस, रेल या हवाई मार्ग से जोधपुर आकार फिर उपलब्ध है। रेल और सड़क मार्ग से बालोतरा शहर आना होगा।

सती रानी भटियाणी मंदिर
Sati Rani Bhatiani Temple


राजस्थान के जसोल जिले में सती रानी भटियानी मंदिर एक मशहूर तीर्थस्थल है। रानी भटियानी एक हिन्दू देवी है जो पश्चिमी राजस्थान, भारत और सिंध, पाकिस्तान में पूज्य है। उनके प्रमुख मंदिरों में राजस्थान के जसोल, बाड़मेर और जैसलमेर है, जहां उन्हें माजीसा या भुआसा कहा जाता है।

सन 1725 में जैसलमेर जिले के गाँव जोगीदास में ठाकुर जोगराज सिंह भाटी के यहां एक पुत्री का जन्म हुआ जिसका नाम स्वरूप कंवर रखा गया। स्वरूप कंवर बचपन से ही बड़ी रूपवती और गुणवान थी। स्वरूप कंवर का विवाह जसोल के रावल कल्याणमल से हुआ। कल्याणमल की पहली पत्नी देवड़ी से कोई संतान न हुई तो दूसरा विवाह स्वरूप कंवर भटियाणी से किया।

बड़ी रानी देवड़ी स्वरूप कंवर से शुरू से ईर्ष्या करती थी लेकिन राणी स्वरूप कंवर उसे अपनी बड़ी बहन के समान समझती थी। जसोल इलाके में रानी स्वरूप कवर राणी भटियाणी के नाम से जानी जाने लगी। विवाह के दो वर्ष पश्चात् भटियाणी के पुत्र हुआ जिसका नाम लालसिंह रखा गया। रावल के दो विवाह करने के पश्चात् यह पहला पुत्र होने पर जसोल में खुशी मनाई गयी। राणी भटियाणी का पुत्र देवड़ी की आँखों में खटकने लगा।

कुछ समय बाद देवड़ी को भी एक पुत्र हुआ किंतु लालसिंह बड़ा पुत्र होने के कारण जसोल का उत्तराधिकारी बन सकता था । लेकिन देवड़ी ने ईर्ष्यावश लालसिंह की हत्या का षड़यंत्र रचा।

श्रावण की तीज के अवसर पर राणी भटियाणी अपनी सहेलियों के साथ बगीचे में झूला झूलने गयी और कुंवर लालसिंह को महल में अकेला ही सोया हुआ छोड़ गयी। देवड़ी ने मौके की तलाश में कुंवर लाल को दूध में जहर मिलवा कर पिला दिया।

एक मान्यता यह भी प्रचलित है कि कुंवर लालसिंह को महल की सीढियों से लुढ़का दिया गया और उसकी तत्काल मृत्यु हो गई। अब देवड़ी लालसिंह के मौत का खबर सुनकर काफी खुश हुई। उसे लगा अब मेरा पुत्र ही यहाँ का शासक बनेगा।

राणी भटियाणी जब अपनी सहेलियों के साथ तीज का झूला झूल कर वापस आयी तो लालसिंह को मृत पाया। राणी भटियाणी देवड़ी के इस चाल को समझ गयी और पुत्र वियोग में व्याकुल और बीमार रहने लगी। उधर बड़ी रानी को कुंवर लालसिंह को मरवा कर संतुष्टि नहीं हुई उसने राणी भटियाणी को भी मरवाने की सोची। उसने भटियाणी को जहर दिलवा दिया जिससे राणी भटियाणी की मौत हो गई। मृत्यु का समाचार सुन कर जसोल ठिकाने में शोक छा गया।

एक दिन राणी भटियाणी के गांव से दो ढोली शंकर व ताजिया रावल कल्याणमल के यहां कुछ मांगने के लिए चले आये। देवड़ी ने उन्हें भटियाणी के चबूतरे के आगे जाकर मांगने को कहा। दु:खी होकर ढोली अपने गाँव के 'बाईसा के चबूतरे के आगे जाकर सच्चे मन से पुकार करने लगे।

राणी भटियाणी ने प्रसन्न होकर उन दोनों को साक्षात दर्शन दिए और 'परचे के प्रमाण स्वरूप रावल कल्याणमल के नाम एक पत्र दिया जिसमें रावल की मृत्यु उसी दिन से बारहवें दिन होना लिखा और ऐसा ही हुआ। यह बात आस पास के गांवों में फैल गयी। इसके बाद तो राणी भटियाणी ने जनहित में अनेक परचे दिए।

जसोल के ठाकुरों ने राणी भटियाणी के चबूतरे पर एक मंदिर बनवा दिया और उनकी विधिवत पूजा करने लगे। प्रतिवर्ष चैत्र और आश्विन माह के नवरात्र में वैशाख, भाद्रपद और माघ महीनों की शुक्ल पक्ष की तेरस व चवदस को यहां श्रद्धालुओं का ताता लगा रहता है। मन्नत पूरी होने पर यहां भक्त श्रृंगार और सुहाग के समान चढ़ाते हैं।

राजस्थान ही नहीं भारतवर्ष के हर कोने से यहाँ पर श्रद्धालु आते हैं। रानी भटियानी के नाम से हर साल एक पशु मेला भी आयोजित किया जाता है जिसमें ऊंट, घोड़े, बैल आदि की खरीद विक्री होती है।

आसोतरा ब्रह्मा जी का मंदिर
Asotra Brahma Temple


राजस्थान के बारमेड़ जिले में आसोतरा से 11किलोमीटर दूर एक गांव है जहां विश्व का दूसरा ब्रह्मा मन्दिर है। इस मंदिर में आने के लिए जोधपुर से सड़क मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। इस मंदिर का निर्माण ब्रह्मऋषि संत खेतारामजी महाराज ने करवाया था। पहला मन्दिर राजस्थान के पुष्कर में स्थित है।

खेताराम जी महाराज एक ऐसे संत थे जिन्होंने प्राणी मात्र के प्रति दया और सहानुभूति का सन्देश दिया तथा प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से होने वाली जीव हत्या पर रोक लगाई। अप्रत्यक्ष जीव हत्या पर रोक के सन्देश को जीवन में उतारते हुए राजस्थान के राजपुरोहित समाज ने घर में बकरी रखना बन्द कर दिया। राजपुरोहित समाज आज दिन दुनी व रात चौगुनी प्रगति कर रहा है ।

कुलगुरू खेतेश्वर भगवान के आशीर्वाद से राजपुरोहित समाज ने कई सामाजिक कुरीतियों को प्रतिबंधित किया है जिसमें युवाओं को नशा मुक्त कराना जैसे अभियान शामिल है। इस मंदिर में चाहे जितना भी भीड़ हो प्रवेश करते ही भगवान ब्रह्मा के दर्शन हो जाते हैं। हर पूर्णिमा को यहां मेला लगता है।

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