Prayagraj Ashok Stambh Ka Itihas: महाकुंभ यात्रा के दौरान देखना ना भूलें प्रयागराज में यमुना तट पर स्थित अकबर के किले का अशोक स्तंभ
Prayagraj Mein Sthit Ashok Stambh Ka Itihasi: क्या आप जानते हैं कि अशोक स्तम्भ का क्या इतिहास है और इसके निर्माण कार्य को किस तरह पूरा किया गया था,आइये विस्तार से जानते हैं इस बारे में।;
Ashok Stambh Ka Itihas Wikipedia: प्रयागराज में कुंभ मेले के दौरान संगम तट पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। उसी संगम तट पर सम्राट अकबर द्वारा करवाए गए भव्य किले के निर्माण के पीछे का इतिहास काफी रोचक जान पड़ता है। प्रयागराज में संगम के निकट स्थित इस किले को मुगल सम्राट अकबर ने 1575 में बनवाया था। वर्तमान में इस किले का कुछ ही भाग पर्यटकों के लिए खुला रहता है। बाकी हिस्से का प्रयोग भारतीय सेना करती है। इस किले में तीन बड़ी गैलरी हैं जहां पर ऊंची मीनारें हैं। सैलानियों को अशोक स्तंभ, सरस्वती कूप और जोधाबाई महल देखने की इजाजत है। अकबर के बनाए गए इलाहाबाद किले में स्थित अशोक स्तंभ को देखने के लिए पर्यटकों के बीच काफी उत्साह देखा जाता है। अगर आप भी कुंभ की यात्रा के लिए जा रहें हैं तो इलाहाबाद किले में स्थित अशोक स्तंभ को देखना बिल्कुल भी न भूलें।
अशोक स्तंभ को लेकर बेहद लंबा है इतिहास
अशोक स्तंभ को लेकर इसका इतिहास बेहद लंबा है। इतिहासअंग्रेज इतिहासकार जेम्स प्रिंसेस ने सबसे पहले इसकी स्थिति और अभिलेख को पंडित राधाकांत शर्मा की सहायता से पढ़ने ने सक्षम रहे थे। जिसे पढ़ने के बाद यह स्पष्ट हुआ कि ये स्तंभ गुप्त काल के दौरान सम्राट अशोक का बनवाया हुआ है।इलाहाबाद किले में स्थित अशोक स्तंभ को कुछ कथानकों के अनुसार इसे’भीम का गदा भी कहा जाता है। इसकी लंबाई चौड़ाई देखकर इसे महाभारत काल से भी जोड़ कर देखा जाता था। तख्ता पलट और अंग्रेजी हुकूमत के आने तक किले में ही यह स्तंभ कई बार गिराया और पुनः निर्मित किया गया था। यह स्तंभ सन 1838 से यूं ही वर्तमान समय में इसी तरह खड़ा है।
मीरजापुर के लाल बलुआ पत्थरों को तराश कर बनाया गया है ये स्तंभ
प्रयागराज स्थित इस सम्राट अशोक के स्तंभ को मीरजापुर के लाल बलुआ पत्थरों को तराश कर बनाया गया है। स्तंभ की संरचना को लेकर पुरातत्वविदों और इतिहासकारों का मानना है कि इस स्तंभ पर सन 1605 में मुगल सम्राट के तख्त पर बैठने की बात का उल्लेख है। वहीं कुछ इतिहासकारों के मुताबिक प्रयागराज में स्थित अशोक का स्तंभ पत्थर का छिला हुआ गोल खंभा है। जिसका भार 493 कुंटल और लंबाई 35 फीट है। नीचे का व्यास तीन फीट है। खंभे के आकारनुमा यह स्तंभ ऊपर जाकर क्रमशः कम होते दो फीट दो इंच रह गया है। हालांकि कई बार इसे खंडित किए जाने के कारण इसके ऊपर का सिर नहीं है। अनुमान लगाया जा रहा है कि संभवतः अशोक के अन्य स्तंभों के समान यह भी घंटाकार रहा होगा और उस पर सिंह का सिर बना होगा। इतिहासकारों के मुताबिक यह स्तंभ सम्राट अशोक की आज्ञा से कौशांबी में ईस्वी सन से 232 वर्ष पहले खड़ा किया गया था। इस स्तंभ को कब, कौन और कैसे उठा कर लाया। इस बात का उल्लेख कहीं नहीं मिलता है। जिसे लेकर इतिहासकारों का मत है कि फीरोजशाह द्वारा कौशांबी से इस स्तंभ को प्रयागराज लाया गया था। क्योंकि इतिहास में ये बात भी दर्ज है कि, वह ऐसे कई स्तंभ दिल्ली ले गया था। इस बात का भी अनुमान लगाया जा रहा है कि, फीरोजशाह के अपने 1351 से 1388 तक के शासनकाल के दौरान यह स्तंभ किले में लाए जाने की संभावना है।
स्तंभ पर खुदे हुए हैं कई अभिलेख
अशोक के स्तंभ में समुद्र गुप्त की उत्तर से दक्षिण तक की दिग्विजयों, विदेश नीति आदि की जानकारी लिखी है। स्तंभ पर अशोक के छह आदेश, स्तंभ पर सम्राट अशोक, उनकी सम्राज्ञी, समुद्रगुप्त और जहांगीर के खुदवाए हुए अभिलेख हैं। जब यह स्तंभ पृथ्वी पर पड़ा था तब उस समय के बहुत से यात्रियों के नाम और सत संवत इस पर अंकित हैं। इस स्तंभ में अशोक के छह आदेश हैं। सम्राट अशोक ने इसे अपनी प्रजा के हित के लिए अंकित कराए थे। इसकी भाषा प्राकृत अर्थात जनता के बीच बोलचाल की भाषा और लिपि ब्राह्मी है। स्तंभ पर तीन शासकों के लेख खुदे हुए हैं। यह पुरातात्विक समय का उत्कृष्ट नमूना है। बौद्ध काल में प्रयाग की महत्व का प्रमाण अशोक स्तंभ के ऊपर उत्कीर्ण अभिलेखों से भी मिलता है। स्तंभ पर अशोक की दूसरी महारानी कारूवाकी की ओर से कौशांबी के एक बौद्ध विहार को आम की बगिया दान में देने का उल्लेख भी अंकित है। समुद्र गुप्त के शिला लेखक हरिषेण ने संस्कृत भाषा और गुप्तकालीन ब्राह्मी लिपि में 56 पंक्तियों में प्रयाग प्रशस्ति उत्कीर्ण है।
1800 ई.में इस किले की प्राचीर को बनाने के लिए स्तंभ को गिरा दिया गया था। 1838 में अंग्रेजों ने इस स्तंभ के महत्व को समझते हुए इसका पुर्ननिर्माण किया।