Ramanathaswamy Temple History: श्रद्धा, इतिहास और आध्यात्मिक भव्यता का संगम है रामनाथस्वामी मंदिर, जानिए क्या है राम और हनुमान से जुड़ी यहां प्रचलित मान्यता
Ramanathaswamy Mandir Ka Itihas: रामनाथस्वामी मंदिर, जिसे रामेश्वरम मंदिर भी कहा जाता है। यह मंदिर तमिलनाडु के रामेश्वरम द्वीप पर स्थित है।;
Ramanathaswamy Temple History
Ramanathaswamy Temple History: जैसे ही आप रामेश्वरम द्वीप पर कदम रखते हैं, समुद्र की लहरों और हवाओं में एक विशेष आध्यात्मिक ऊर्जा महसूस होती है। मंदिर के प्रांगण में प्रवेश करते ही गोपुरम की ऊंचाई और शिल्प देखकर आपकी दृष्टि स्वयं नीचे झुक जाती है — श्रद्धा से, विनम्रता से। भारत एक ऐसा देश है जहां आस्था और आध्यात्मिकता जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। देश के कोने-कोने में स्थित मंदिर न केवल धार्मिक केंद्र हैं, बल्कि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और स्थापत्य की दृष्टि से भी अद्वितीय हैं। ऐसा ही एक मंदिर है रामनाथस्वामी मंदिर, जिसे रामेश्वरम मंदिर भी कहा जाता है। यह मंदिर तमिलनाडु के रामेश्वरम द्वीप पर स्थित है। इसे बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रस्तावित यात्रा ने एक बार फिर इस मंदिर को राष्ट्रीय चर्चाओं का केंद्र बना दिया है। आइए जानते हैं इस मंदिर का इतिहास, पौराणिक महत्त्व, वास्तुकला की विशेषताएं और इसे आस्था का केंद्र बनाने वाली धार्मिक मान्यताओं से जुड़े तथ्यों के बारे में विस्तार से -
1. पौराणिक इतिहास और धार्मिक महत्व
रामायण से जुड़ी कथा- रामनाथस्वामी मंदिर का इतिहास सीधे-सीधे रामायण काल से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि भगवान राम जब लंका विजय के पश्चात अयोध्या लौटे, तो उन्होंने रावण (जो एक ब्राह्मण था) की हत्या के कारण उत्पन्न हुए ब्रह्महत्या दोष से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की पूजा करने का संकल्प लिया। राम ने हनुमान को कैलाश पर्वत से शिवलिंग लाने के लिए भेजा।
लेकिन जब वे समय पर नहीं लौटे, तो माता सीता ने रेत से शिवलिंग बनाया। यही शिवलिंग ‘रामलिंगम’ कहलाया। हनुमान बाद में जो शिवलिंग लाए, उसे भी वहां स्थापित किया गया और वह ‘वैश्वलिंगम’ कहलाता है।
हनुमान और राम के बीच संवाद
ऐसा कहा जाता है कि हनुमान इस बात से आहत हुए कि उनका लाया शिवलिंग पहले स्थापित नहीं किया गया। इस पर राम ने आदेश दिया कि उनके लाए गए लिंग की पहले पूजा की जाएगी। यह परंपरा आज भी मंदिर में निभाई जाती है। यह घटना वाल्मीकि रामायण या तुलसीदास कृत रामचरितमानस में सीधे शब्दों में वर्णित नहीं है, बल्कि यह एक स्थानीय और परंपरागत लोककथा के रूप में दक्षिण भारत में प्रसिद्ध है।
रामचरितमानस में राम द्वारा रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना का उल्लेख तो है। लेकिन हनुमान द्वारा लाया गया शिवलिंग और उसके आहत होने की कथा का वर्णन नहीं है। रामेश्वरम की स्थापना को लेकर तुलसीदास ने सुंदरकांड के अंत और उत्तरकांड की शुरुआत में कुछ चौपाइयों में भगवान राम की भक्ति को शिव के प्रति समर्पित बताया है।
यहां एक प्रसिद्ध चौपाई है जो रामेश्वरम की शिव भक्ति से जुड़ी श्रद्धा को दर्शाती है:
जाकें प्रिय न राम वैदेही।
तजिये ताहि कोटि बैरी सम जेहि।
(रामचरितमानस, उत्तरकांड)
रामु भगत हित कारन कृपा करी संकरंहि।
बंदउँ सिव पद पंकज प्रीति सहित मन रंहि।
ये चौपटियां शिव और राम की परस्पर भक्ति और प्रेम को दर्शाती हैं।
ऐतिहासिक विकास- इस मंदिर का वास्तु निर्माण 12वीं शताब्दी में शुरू हुआ। इसका विस्तार पांड्य, नायक और चोल राजवंशों के समय में हुआ। पांड्य शासकों ने मंदिर के गर्भगृह का निर्माण करवाया।
नायक वंश ने विशाल गलियारे और प्रमुख गोपुरम का निर्माण किया। बाद में रामनाथपुरम के राजा और सेठुपति वंश ने मंदिर के संरक्षण और सौंदर्यीकरण में योगदान दिया।
द्रविड़ स्थापत्य की भव्यता और इसकी विशेषता- रामनाथस्वामी मंदिर द्रविड़ वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। जिसे देखने के लिए देश विदेश से लोगों का तांता लगा रहता है। मंदिर की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं:
स्तंभों की लंबी शृंखला
इस मंदिर के गलियारे में चलते हुए आप 1,200 मीटर लंबे प्रांगण और 1,212 नक्काशीदार स्तंभों के बीच स्वयं को छोटा, परंतु किसी दिव्यता का हिस्सा महसूस करते हैं। हर स्तंभ पर उकेरी गई आकृतियां जैसे किसी मौन कथा को कह रही होती हैं — राम की यात्रा, शिव की आराधना, भक्तों की निष्ठा।
यह गलियारा इतना लंबा है कि जब आप उसके बीच में होते हैं, तो एक पल को लगता है जैसे समय थम गया है। केवल आप हैं, शिव हैं और शाश्वत शांति।
2 - तीर्थ कुंडों में स्नान — आत्मशुद्धि की अनुभूति
हर तीर्थकुंड में स्नान के साथ एक भाव मन में उठता है — जैसे शरीर से नहीं, आत्मा से धुल रहे हों। अग्नि तीर्थ के जल में खड़े होते हुए समुद्र की लहरें जैसे आपके भीतर के सभी पाप, पीड़ा और भ्रम को बहा ले जाती हैं। यह आत्मशुद्धि का अनुभव है, न केवल जल से, बल्कि श्रद्धा से। रामनाथस्वामी मंदिर के परिसर में 22 तीर्थ कुंड हैं, जिन्हें ‘तीर्थम’ कहा जाता है।
इनका उल्लेख धार्मिक ग्रंथों में मिलता है और मान्यता है कि, इन कुंडों में स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है। प्रत्येक कुंड का अपना अलग धार्मिक और औषधीय महत्व है। इन कुंडों में से सबसे प्रमुख हैं: अग्नि तीर्थ, सूर्य तीर्थ, चंद्र तीर्थ और गंगा तीर्थ।
3 - शिवलिंग के समक्ष — मौन की शक्ति
रामनाथस्वामी मंदिर भारत के चार धाम (बद्रीनाथ, द्वारका, पुरी, रामेश्वरम) में से एक है। यह स्थान वैष्णव और शैव परंपराओं के संगम का प्रतीक है। यहां शिवलिंग की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, ऐसी मान्यता है। यह ज्योतिर्लिंगों में आठवां है और इसका विशेष महत्व दक्षिण भारत में है।
जब आप मुख्य गर्भगृह में रामलिंगम के समक्ष खड़े होते हैं, वहां कोई शब्द नहीं बचते। केवल एक गहरा मौन होता है, जिसमें आप स्वयं को भूल जाते हैं। जलाभिषेक, मंत्रोच्चारण, और घंटियों की गूंज — ये सब मिलकर एक ऐसा वातावरण रचते हैं, जहां देह-मन-आत्मा सब कुछ शिव को समर्पित हो जाता है।
गोपुरम (प्रवेश द्वार)
मंदिर के दो प्रमुख गोपुरम हैं: पूर्व गोपुरम (126 फीट) और पश्चिम गोपुरम (78 फीट)। ये गोपुरम न केवल ऊंचाई में विशाल हैं बल्कि उन पर बनी प्रतिमाएं धार्मिक कथाओं का जीवंत चित्रण करती हैं।
धार्मिक आयोजनों और उत्सवों की महिमा
मंदिर में साल भर धार्मिक आयोजन होते रहते हैं। इनमें से कई ऐसे धार्मिक पर्व हैं। जो कि प्रमुख हैं:-
महाशिवरात्रि
इस पर्व पर यहां की दिव्यता देखने लायक होती है। लाखों श्रद्धालु दर्शन करने के लिए दूर दूर से शिव की आराधना के लिए यहां आते हैं।
थाई पूसम, नवरात्रि, रामनवमी
इस मंदिर में विशेष पूजा और अनुष्ठान के साथ परिसर में थाई पूसम, नवरात्रि, रामनवमी आदि पर्व पारंपरिक रीति-रिवाजों और उत्साह के साथ मनाए जाते हैं।
ब्रह्मोत्सव
ब्रह्मोत्सव का पर्व मंदिर का खास वार्षिक उत्सव होता है। जो 10 दिनों तक चलता है और इसमें रथ यात्रा, अभिषेक, और विविध धार्मिक अनुष्ठान होते हैं।
मंदिर का संरक्षण और रखरखाव
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा इस मंदिर का संरक्षण किया जा रहा है। साथ ही स्थानीय प्रशासन और धार्मिक न्यास भी इसके आधुनिकीकरण और संरचना सुधार में लगे हुए हैं ताकि यह भावी पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रह सके। रामनाथस्वामी मंदिर केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता, संस्कृति और आस्था की जीवंत धरोहर है। यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाता है कि धर्म, अध्यात्म और जीवन मूल्य कैसे एक-दूसरे से जुड़ते हैं। प्रधानमंत्री की इस यात्रा के माध्यम से यह उम्मीद की जा रही है कि इस मंदिर को अंतरराष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर और अधिक पहचान मिलेगी, और भारत की आध्यात्मिक विरासत को एक नई दिशा मिलेगी। रामनाथस्वामी मंदिर की भव्यता उसकी स्थापत्य कला या इतिहास से कहीं अधिक उसकी ऊर्जा में बसती है। यहां आकर लगता है कि आप राम के समय से जुड़ रहे हैं, वह क्षण जब भगवान राम ने विनम्र होकर शिव की आराधना की थी। यह स्थान भक्ति का संगम है — राम की शिवभक्ति और हनुमान की रामभक्ति का केंद्र। रामनाथस्वामी मंदिर का अनुभव सिर्फ एक यात्रा नहीं, वह जीवन भर की स्मृति बन जाती है — एक ऐसा स्पर्श जो आत्मा पर अंकित हो जाता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रस्तावित यात्रा का महत्व
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस मंदिर में प्रस्तावित यात्रा न केवल धार्मिक और राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह देश के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को राष्ट्रीय स्तर पर प्रोत्साहित करने का माध्यम भी बनती है।
इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। युवा पीढ़ी को अपने सांस्कृतिक मूल्यों से जुड़ने का अवसर मिलेगा। मंदिर की अंतरराष्ट्रीय पहचान को भी बल मिलेगा।