Tantra Sadhna Kya Hai: चमत्कारों से भरा है संन्यासियों और अघोरियों का जीवन, क्या है इनके तंत्र साधना से जुड़े रहस्य
Tantra Sadhna Kya Hai: क्या आप जानते हैं कि अघोरी संतों द्वारा चमत्कारिक शक्तियों के तौर पर पूजी जाने वाली आखिर तंत्र विद्या है आइये विस्तार से जानते हैं इसके बारे में।
Tantra Mantra Kya Hai: कुंभ स्नान की तैयारियों के साथ ही आजकल कई औघड़ संतों के चमत्कार से जुड़े वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहे हैं। हालांकि भारत देश में अघोर साधना का इतिहास आदि काल से शिव उपासक के तौर पर विद्यमान है। अब तक कई ऐसे अघोरी संत अपनी चमत्कारिक तंत्र शक्तियों के चलते समय समय पर देश दुनिया में चर्चा का विषय बने रहें हैं, इस परंपरा को आज भी इनके भक्त आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। आइए जानते हैं अघोरी संतों द्वारा चमत्कारिक शक्तियों के तौर पर पूजी जाने वाली आखिर तंत्र विद्या है क्या?
तंत्र एक रहस्यमयी विद्या
चमत्कारिक शक्तियों से जुड़ी तंत्र साधना एक रहस्यमयी विद्या है। सिर्फ हिन्दू धर्म में ही नहीं बल्कि बौद्ध और जैन धर्म में भी इस विद्या का प्रचलन है। तंत्र को मूलतः शैव आगम शास्त्रों(शिव की उपासना) से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन इसका मूल अथर्ववेद में पाया जाता है। तंत्र शास्त्र 3 भागों में विभक्त है-आगम तंत्र, यामल तंत्र और मुख्य तंत्र। तंत्र शास्त्र के मंत्र और पूजा अलग किस्म के होते हैं।
तंत्र शब्द योग शब्द के समान है, जैसे हर तरह की दर्शन के आगे योग लगा दिया जाता है, उसी तरह तंत्र भी। उदाहरणार्थ सांख्य योग को सांख्य तंत्र भी कहा जा सकता है। तंत्र को सिद्धांत शब्द के समान समझ सकते हैं। दक्षिण मार्गी तंत्र साधना का मांस, मदिरा और संभोग से किसी भी प्रकार का संबंध नहीं है। इसमें पूजा, योग, ध्यान, जप, उपवास और तपस्या जैसे धार्मिक और आध्यात्मिक अनुशासन का पालन कर तंत्र विद्या में यंत्रों के स्थान पर मानव अंतराल में रहने वाली विद्युत शक्ति को कुछ ऐसी विशेषता संपन्न बनाया जाता है जिससे शक्तियां नियंत्रण में आ जाती हैं।
ये थे तंत्र परंपरा के प्रथम उपदेशक
तंत्र के प्रथम उपदेशक भगवान शंकर और उसके बाद भगवान दत्तात्रेय हुए हैं। बाद में 84 सिद्ध, योगी, शाक्त और नाथ परंपरा का प्रचलन रहा है। यहां ऐसे हजारों तांत्रिकों के नाम गिनाए जा सकते हैं जिन्होंने तंत्र को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया और सिद्धि एवं मोक्ष प्राप्त करने के लिए नए नए मार्ग खोजे।
इस परंपरा में गुरु गोरखनाथ और उनके गुरु मत्स्येंद्रनाथ एवं दत्तात्रेय के अलावा नारद, पिप्पलाद, परशुराम, सनकादि ऋषि आदि तंत्र को ही मानते थे।
तंत्र साधना के मुख्य स्थल
भारत में बनारस के मणिकर्णिका घाट और कोलकाता का निमतला घाट काले जादू के लिए पहचाना जाता है। यहां श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार किया जाता है। बताया जाता है कि पूरी तरह से सन्नाटा होने के बाद आधी रात को अघोरी साधनाएं करने वाले लोग घाट पर आते हैं और जल रहे शवों का मांस खाते हैं।वे यहां भोर होने से पहले तक बैठकर साधना करते हैं।
इसी तरह ओडिशा की कुशाभद्र नदी के घाटों पर अक्सर इंसानी खोपड़ियों और दूसरे अंगों की हड्डियां मिल जाती हैं। दरअसल, कुशाभद्र नदी के सुनसान पड़े घाटों पर सबसे ज्यादा काला जादू किया जाता है। इसी कड़ी में कामाख्या देवी मंदिर और वाराणसी के मणिकर्णिका घाट को अघोर, तंत्र या काले जादू की साधना का बड़ा केंद्र माना जाता है। मणिकर्णिका घाट पर साधना में जुटे कई अघोरी बाबा आपको आसानी से दिख जाएंगे। कहा जाता है कि वे अपनी साधना के दौरान शवों को खाते हैं। खोपड़ी में पानी पीते हैं। माना जाता है कि इससे उनकी शक्तियों में तेजी से इजाफा होता है।
ये होती है तंत्र साधनाएँ
हर तरह की साधना का एक तंत्र पक्ष भी होता है। तंत्र शास्त्र के रचयिता एवं वक्ता आदिनाथ भगवान शिव कहे गए हैं। किसी न किसी रूप में सभी हिंदू समाज इस मान्यता को मानते हैं। भैरव, वीर, यक्ष, गंधर्व, सर्प, किन्नर, विद्याधर, दस महाविद्या, पिशाचिनी, योगिनी, यक्षिणियां आदि सभी तंत्रमार्गी देवी और देवता हैं। देखा गया है कि कई तांत्रिकों के मसान, पिशाच, भैरव, छाया, पुरुष, से बड़ा, ब्रह्मराक्षस, वेताल, कर्ण-पिशाचनी, त्रिपुरी-सुन्दरी, कालरात्रि, दुर्गा आदि की सिद्धि होती है।तंत्र साधना में शांति कर्म, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन और मारण नामक छः तांत्रिक षट् कर्म होते हैं। इसके अलावा नौ प्रयोगों का वर्णन मिलता हैः- मारण, मोहनं, स्तंभनं, विद्वेषण, उच्चाटन, वशीकरण, आकर्षण, यक्षिणी साधना, रसायन क्रिया तंत्र के ये नौ प्रयोग हैं।
उक्त सभी को करने के लिए अन्य कई तरह के देवी-देवताओं की साधना की जाती है। अघोरी लोग इसके लिए शिव साधना, शव साधना और श्मशान साधना करते हैं। बहुत से लोग भैरव साधना, नाग साधना, पैशाचिनी साधना, यक्षिणी साधा या रुद्र साधना करते हैं।तंत्र साधना में देवी काली, अष्ट भैरवी, नौ दुर्गा, दस महाविधा, 64 योगिनी आदि की साधना की जाती है। इसी तरह देवताओं में भैरव और शिव की साधना की जाती है। इसके अलावा यक्ष, पिशाच, गंधर्व, अप्सरा जैसे करीबी लोक के निवासियों की भी साधना की जाती है ताकि काम जल्दी पूरा हो।
अघोर साधना व तंत्र साधना के बीच अंतर
अधिकतर लोग अघोर साधना व तंत्र साधना को समान समझते हैं। लेकिन दोनों में अंतर होता है। तंत्र मुख्य रूप से दो तरह का होता है वाम तंत्र (दक्षिण मार्ग) और दूसरा सौम्य तंत्र। वाम मार्ग(दक्षिण मार्ग), यौन जीवन को योग अभ्यासों के साथ जोड़ता है. वहीं, दक्षिण मार्ग योग अभ्यासों का दाहिना मार्ग है और इसमें यौन क्रियाकलाप शामिल नहीं होता।
वाम तंत्र में पंच मकार मध, मांस, मत्स्य, मुद्रा और मैथुन साधना में उपयोग लाए जाते हैं। जबकि सौम्य तंत्र में सामान्य पूजन पाठ व अनुष्ठान किए जाते हैं। तंत्र साधना में मुख्य रूप से तंत्र मंत्र और यंत्र का प्रयोग होता है।इन तीनों में तंत्र सबसे पहले आता है। वास्तव में अघोर साधना सूक्ष्मता और संसार की गहराई की जटिल गहरी समझ है तथा स्वयं को उसके अंदर और बाहर रखना है। तंत्र अघोर साधना का ही एक अंग है, बस वाम तंत्र की परंपराएं अलग हैं।
लुप्त हो चुके है तंत्र शास्त्र के अनेक ग्रंथ
वाराही तंत्र के अनुसार तंत्र के नौ लाख श्लोकों में एक लाख श्लोक भारत में हैं। तंत्र साहित्य विस्मृति के चलते विनाश और उपेक्षा का शिकार हो गया है। अब तंत्र शास्त्र के अनेक ग्रंथ लुप्त हो चुके हैं। वर्तमान में 199 तंत्र ग्रंथ हैं। तंत्र का विस्तार ईसा पूर्व से तेरहवीं शताब्दी तक बड़े प्रभावशाली रूप से भारत, चीन, तिब्बत, थाईलैंड, मंगोलिया, कम्बोज, आदि देशों में रहा।
तंत्र साधना से जुड़े चमत्कार
तंत्र एक रहस्यमयी विधा हैं। इसके माध्यम से व्यक्ति अपनी आत्मशक्ति का विकास करके कई तरह की शक्तियों से संपन्न हो सकता है। यही तंत्र का उद्देश्य हैं। इसी तरह तंत्र से ही सम्मोहन, त्राटक, त्रिकाल, इंद्रजाल, परा, अपरा और प्राण विधा का जन्म हुआ है। तंत्र से वशीकरण, मोहन, विदेश्वण, उच्चाटन, मारण और स्तम्भन मुख्यरूप से ये 6 क्रियाएं की जाती हैं, जिनका अर्थ वश में करना, सम्मोहित करना, दो अति प्रेम करने वालों के बीच गलतफहमी पैदा करना, किसी के मन को चंचल करना, किसी को मारना, मन्त्रों के द्वारा कई घातक वस्तुओं से बचाव करन, किसी के मन को चंचल करना, किसी को मारना।
इसी तरह मनुष्य से पशु बन जाना, गायब हो जाना, एक साथ कई रूप बना लेना, समुद्र को लांघ जाना, विशाल पर्वतों को उठाना, करोड़ों मील दूर के व्यक्ति को देख लेना व बात कर लेना जैसे अनेक कार्य ये सभी तंत्र की बदौलत ही संभव हैं।
तंत्र शक्ति से बनते थे घातक हथियार
तंत्र के माध्यम से ही प्राचीनकाल में घातक किस्म के हथियार बनाए जाते थे, जैसे पाशुपतास्त्र, नागपाश, ब्रह्मास्त्र आदि। जिसमें यंत्रों के स्थान पर मानव अंतराल में रहने वाली विद्युत शक्ति को तंत्र क्रिया से कुछ ऐसी विशेषता संपन्न बनाया जाता है जिससे प्रकृति से सूक्ष्म परमाणु उसी स्थिति में रूपांतरित हो जाते हैं जिसमें कि मनुष्य चाहता है। जिनका वर्णन हमारे धर्मशास्त्रों में पढ़ने को मिलता है।
मन्त्र मुख्य रूप से तीन तरह के होते हैं-वैदिक मंत्र, तांत्रिक मंत्र और शाबर मंत्र। तंत्र में सबसे अधिक बीज मंत्रों का उपयोग किया जाता है। जैसे महालक्ष्मी के आशीर्वाद के लिए श्रीं बोला जाता है। मान्यता है कि इन बीज मन्त्रों को बोलने से शरीर में एक विशेष तरंग पैदा होती है, जो इस मन्त्र से जुडी चीज़ों को आपकी और आकर्षित करती है।