दिवाली स्पेशल: UP में कुछ ऐसे मनाते हैं दीपोत्सव, खेलते हैं लट्ठमार दिवारी

बरसाने की लट्ठमार होली तो आपने देखी और सुनी होगी, लेकिन उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड इलाके की लट्ठ मार दीवारी आप को दिखाते हैं जो काफी रोमांचक होती है। बुंदलखंड के जनपद महोबा, हमीरपुर, जालौन, बांदा में परंपरागत " दिवारी नृत्य " की धूम मची हुई है। जिसमे ढोलक की थाप पर थिरकते जिस्म के साथ लाठियों का अचूक वार करते हुए युद्ध कला को दर्शाने वाले नृत्य को देख कर लोग दांतों तले अंगुलियां दबाने पर मजबूर हो जाते हैं। दिवारी नृत्य करते युवाओं के पैंतरे देख कर ऐसा लगता है मानों वो दीपावली मनाने नही बल्कि युद्ध का मैदान जीतने निकले हों।

Update:2016-10-30 02:34 IST

दिवारी नृत्य करते बच्चे

 

महोबा: बरसाने की लट्ठमार होली तो आपने देखी और सुनी होगी, लेकिन उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड इलाके की लट्ठ मार दीवारी आप को दिखाते हैं जो काफी रोमांचक होती है। बुंदलखंड के जनपद महोबा, हमीरपुर, जालौन, बांदा में परंपरागत " दिवारी नृत्य " की धूम मची हुई है। जिसमे ढोलक की थाप पर थिरकते जिस्म के साथ लाठियों का अचूक वार करते हुए युद्ध कला को दर्शाने वाले नृत्य को देख कर लोग दांतों तले अंगुलियां दबाने पर मजबूर हो जाते हैं। दिवारी नृत्य करते युवाओं के पैंतरे देख कर ऐसा लगता है मानों वो दीपावली मनाने नही बल्कि युद्ध का मैदान जीतने निकले हों।

बुंदेलखंड के जनपद महोबा, हमीरपुर और बांदा में होने वाला नृत्य युद्ध सा प्रतीत होता है। दिवारी नृत्य देखने वालो को लगता है जैसे कोई जंग का मैदान हो। हांथों में लाठियां, रंगीन वस्त्र के ऊपर कमर में फूलों की झालर, पैरों में घुंघरू बांधे जोश से भरे यह नौजवान बुंदेलखंडी नृत्य दिवारी खेलते हुए परंपरागत ढंग से दीपोत्सव मनाते हैं।

इस दिवारी नृत्य में लट्ठ कला का बेहतरीन नमूना पेश किया जाता है। वीर रस से भरे इस नृत्य को देख कर लोगों का खून उबाल मारने लगता है और जोश में भर कर बच्चों से लेकर बूढ़े तक थिरकने पर मजबूर हो जाते हैं। यह नृत्य भगवान श्री कृष्ण के समय की कला है।

बुंदेलखंड में होने वाले पर्व वीरता से लबरेज होते हैं। खासकर महोबा जनपद में वीर आल्हा उदल की वीरता की झलक यहां तीज त्योहारों में भी दिखाई पड़ती है। दीपावली पर्व में भी दीवारी नृत्य इसी वीरता की झलक है। मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने जब कंश का वध किया था तो उसी उत्साह में बुंदेलखंड में दीवारी नृत्य खेली गई थी जो आज भी बदस्तूर जारी है।

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बुंदेलखंड के इलाकों में ये दीवारी नृत्य टोलियों में होता है।अपने-अपने गांवों की टोलियां बनाकर सभी वर्गों के लोग आत्मरक्षा वाली इस कला का प्रदर्शन करते हैं। आपस में लाठियां एक-दूसरे को मारते और बचाव करते हैं।

बुंदेलखंड का यह परंपरागत लोक नृत्य दीवारी जिसने ना केवल उत्तर प्रदेश में बल्की पूरे देश में अपनी धूम मचा रखी है। इसमें जिमनास्टिक की तरह इनके करतब वाकई अदभुत है। अलग तरह से ढोलक की थाप खुद बा खुद लोगों को थिरकने के लिए मजबूर कर देती है। यह परंपरा हर गांव और शहर में उत्साह पूर्वक देखी जाती है।

लाल, हरी, नीली, पीली वेशभूषा और मज़बूत लाठी जब दीवारी लोक नृत्य खेलने वालो के हाथ आती है तब यह बुंदेली सभ्यता, परंपरा को और मजबूती से पेश करती है। इस दीवारी कला को बड़े, बूढ़े और बच्चे सभी जानते मानते हैं और इसमें बढ़ चढ कर भाग लेते हैं।

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यह दीवारी नृत्य बुंदेलखंड के जनपद बांदा, चित्रकूट, जालौन, झांसी, ललितपुर, हमीरपुर और महोबा के हर गली चौराहों में देखने को मिल जाता है। बुंदेलखंड का दिवारी लोक नृत्य गोवधन पर्वत से भी संबंध रखता है।

मान्यता है कि द्वापर युग में श्री कृष्ण ने जब गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा कर ब्रजवासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाया था तब ब्रजवासियों ने खुश हो कर यह दिवारी नृत्य कर श्री कृष्ण की इंद्र पर विजय का जश्न मनाया और ब्रज के ग्वालावाले ने इसे दुश्मन को परास्त करने की सबसे अच्छी कला माना। इसी कारण इंद्र को श्री कृष्ण की लीला को देख कर परास्त होना पडा।

बुंदेलखंड में धनतेरस से लेकर दीपावली की दूज तक गांव-गांव में दिवारी नृत्य खेलते नौजवानों की टोलियां घूमती रहती हैं। दिवारी नृत्य देखने के लिए हजारों की भीड़ जुटती है। दिवारी खेलने वाले लोग इस कला को श्री कृष्ण द्वारा ग्वालों को सिखाई गई आत्म रक्षा की कला मानते हैं।

बुंदेलखंड के हर त्योहारों में वीरता और बहादुरी दर्शाने की पुरानी रवायत है तभी तो रोशनी के पर्व में भी लाठी डंडों से युद्ध कला को दर्शाते हुए दीपोत्सव मानाने की यह अनूठी परंपरा सिर्फ इसी इलाके की दीपावली में ही देखने को मिलती है। खास बात यह है इस दीवारी नृत्य में सिर्फ हिन्दू ही नहीं बल्की मुस्लिम भी बढ़ चढ कर भाग लेते हैं और सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश करते हैं।

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