मैक्रों : इतने कम समय में तो हमारे देश में कोई दूल्हा नहीं बनता ये राष्ट्रपति बन गए

Update:2018-03-10 17:28 IST

नई दिल्ली : ये जो फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों अपने देश आए हैं। इनकी कहानी हमारे बॉलीवुड वालों के लिए काफी बिकाऊ हो सकती है। कहानी में इतना नमक है कि टाटा नमक भी फीका लगने लगे। 39 साल की उम्र में फ्रांस में राष्ट्रपति चुन लिए गए थे। आज हम आपको बता रहे हैं इनकी ही कहानी।

1977 में पिकार्डी के डॉक्टर दंपत्ति के घर पैदा हुए मैक्रों। फिलॉसफी में मास्टर्स है। नैशनल स्कूल ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन से पढ़े हैं। ये वही स्कूल है जिसने फ्रांस को तीन राष्ट्रपति दिए हैं। एक मैक्रों, दूसरे फ्रांस्वा ओलांद और तीसरे जैक चिराक।

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ग्रैजुएशन करने के बाद हमारे आपकी तरह मैक्रों ने भी नौकरी खोजी। मिनिस्टरी ऑफ इकॉनमी में फाइनैंशल इंस्पेक्टर की जॉब मिली। यहां मन नहीं लगा तो इन्वेस्टमेंट बैंकर के तौर पर रॉथ्स्चाइल्ड ऐंड साइ बैंक से जुड़ गए। मैक्रों कुछ समय तक सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य भी रहे हैं। मैक्रों सरकार में इकॉनमी, इंडस्ट्री ऐंड डिजिटल अफेयर्स मंत्री भी रहे उस समय पीएम थे मैनुअल वाल्स।

मैक्रों जब राष्ट्रपति बने तो इनकी लव स्टोरी चर्चा में आ गई। जब 15 साल के थे तो अपने से 24 साल बड़ी ड्रामा टीचर ब्रिजिट की मुहब्बत में गिरफ्तार हो गए। ब्रेजिट पहले से ही शादीशुदा तीन बच्चों की मां थीं। मैक्रों के पैरेंट्स को जब बेटे की आशिकी का पता चला। तो ठेठ हिन्दुस्तान वाली स्टाइल में बेटे को पैरिस भेज दिया। लेकिन मैक्रों ठहरे पक्के वाले आशिक। कहा कि शादी करेंगे, तो अपनी टीचर से ही। उधर ब्रिजिट समझ नहीं पा रही थी कि कैसे एक बच्चे से शादी कर लें। लेकिन इशकबाज मैक्रों हार मान लेने को तैयार नहीं थे। आखिर ब्रेजिट शादी के लिए मान ही गई। जब शादी हुई तो मैक्रों 30 साल के हो चुके थे जबकि ब्रेजिट 54 की।

बिना विचारधारा वाले नेता हैं जनाब

जो राजनीति में आता है उसकी कोई विचारधारा होती है। लेकिन मैक्रों इससे परे हैं। उनकी राजनीति इन सबसे परे है। उनके मुताबिक लेफ्ट और राइट दोनों के पास दुनिया को देने लायक कुछ नहीं है।

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केजरीवाल का भाई जो मिला फ्रांस में

कहानी कुछ-कुछ अरविंद केजरीवाल जैसी है। लेकिन मैक्रों स्टाइल में। 6 अप्रैल, 2016 को मैक्रों ने पार्टी बनाई एन मार्शे। बहुत मजाक बना, लेकिन सबके मुहं उस समय बंद हो गए जब बंदा साल भर बाद राष्ट्रपति बन गया। इसमें कोई जादू नहीं हुआ था। बल्कि जैसे अपने देश में केजरीवाल उदय हुआ है। ठीक वैसे ही फ्रांस में मैक्रों का। मैक्रों जो बातें कर रहे थे चुनाव के दौरान वैसी बातें वहां के लोगों के लिए ठीक वैसी ही थीं जैसी अपने केजरीवाल जी की। माहौल बनता गया और मैक्रों सत्ता पर काबिज हो गए।

बातें करने में मोदी जी जैसे ही हैं

चुनाव के समय मैक्रों ने कहा, बॉर्डर सुरक्षा के लिए 5,000 की एक सेना बनाएंगे। इमिग्रेशन सिस्टम को और अधिक लचीला बनाएंगे। जिसे भी फ्रांस की सिटिजनशिप लेनी होगी उसे धाराप्रवाह फ्रेंच आती होनी चाहिए। फ्रेंच वैल्यूज़ को मजबूती से कायम करेंगे। जिन शरणार्थियों की असालयम खारिज होगी, उन्हें तुरंत देश से बाहर कर दिया जाएगा। लेकिन ये सभी चुनावी जुमले ही साबित हुए। जैसे अपने देश में साबित हुए हैं।

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आज फ़्रांस में अर्थव्यवस्था की बैंड बजी हुई है। बेरोजगारी बढ़ी हुई है। विकास दर 1.8 प्रतिशत है। एक तरफ वो रोजगार सृजन की बात करते हैं। तो दूसरी तरफ 14,000 सरकारी अधिकारियों को पद मुक्त करने की भी बात करते हैं। लेबर रिफॉर्म्स के नाम पर मिल मालिकों को ताकत दे रहे हैं। मतलब जैसा समय देखते हैं, वैसे बोल बचन फेंक मारते हैं।

मैक्रों चुनाव के समय उदार बहुत उदार नजर आते हैं। लेकिन जब काम करना होता है तो अपनी मर्जी से करते हैं। उस समय भूल जाते हैं कि क्या वादे किये थे। उनके अभी तक के कार्यकाल को देख अंदाजा होता है कि जितने वादे किए वो सिर्फ जुमले बन कर रह गए हैं। लेकिन जब देश के बाहर होते हैं तो मैक्रों बदले हुए नजर आते हैं। बड़ी बातें, बातों में आदर्शों की चाशनी कुछ अधिक ही नजर आती है। सामने वाले के हिसाब से खुद को ढालने में मैक्रों जरा सा भी समय नहीं लेते। जैसे कि मोदी के सामने मोदी जैसी। लेकिन अगर किसी और देश में हों तो वहां के जैसे बन जाते हैं।

 

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