किन्नर : जो खुद गुमनामी में रह देते हैं प्रसिद्धि और धन का आशीर्वाद, जानिए रोचक 20 रोचक तथ्य
लखनऊ : किन्नर समाज से अलग-थलग रहते हैं और इसी कारण आम लोगों में उनको लेकर जिज्ञासा बनी रहती है। किन्नरों का वर्णन ग्रंथों में भी मिलता है। आज हम आपकी सभी जिज्ञासा को समाप्त करने वाले हैं।
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ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक वीर्य की अधिकता से पुत्र जबकि रज की अधिकता से कन्या का जन्म होता है। वहीँ वीर्य और राज़ समान हो तो किन्नर का जन्म होता है।
महाभारत में जब पांडव एक वर्ष का अज्ञातवास काट रहे थे, तब अर्जुन एक वर्ष तक किन्नर वृहन्नला बनकर रहा था।
पुराने समय में भी किन्नर राजा-महाराजाओं के यहां नाचना-गाना करके अपनी जीविका चलाते थे। महाभारत में वृहन्नला (अर्जुन) ने उत्तरा को नृत्य और गायन की शिक्षा दी थी।
किन्नर की दुआएं किसी भी व्यक्ति के बुरे समय को दूर कर सकती हैं। धन लाभ चाहते है तो किसी किन्नर से एक सिक्का लेकर पर्स में रखे।
एक मान्यता है कि ब्रह्माजी की छाया से किन्नरों की उत्पत्ति हुई है। दूसरी मान्यता यह है कि अरिष्टा और कश्यप ऋषि से किन्नरों की उत्पत्ति हुई है।
पुरानी मान्यताओं के अनुसार शिखंडी को किन्नर ही माना गया है। शिखंडी की वजह से ही अर्जुन ने भीष्म को युद्ध में हरा दिया था।
यदि कुंडली में बुध गृह कमजोर हो तो किसी किन्नर को हरे रंग की चूड़ियां व साडी दान करनी चाहिए। इससे लाभ होता है।
किसी नए वयक्ति को किन्नर समाज में शामिल करने के भी नियम है। इसके लिए कई रीती-रिवाज़ है, जिनका पालन किया जाता है। नए किन्नर को शामिल करने से पहले नाच-गाना और सामूहिक भोज होता है।
देश में किन्नरों की चार देवियां हैं।
कुंडली में बुध, शनि, शुक्र और केतु के अशुभ योगों से व्यक्ति किन्नर या नपुंसक हो सकता है।
किसी किन्नर की मृत्यु के बाद उसका अंतिम संस्कार बहुत ही गुप्त तरीके से किया जाता है।
किन्नरों की जब मौत होती है तो उसे किसी गैर किन्नर को नहीं दिखाया जाता। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से मरने वाला अगले जन्म में भी किन्नर ही पैदा होगा। किन्नर मुर्दे को जलाते नहीं बल्कि दफनाते हैं।
किन्नरों की शव यात्राएं रात्रि को निकाली जाती है। शव यात्रा को उठाने से पूर्व जूतों-चप्पलों से पीटा जाता है। किन्नर की मौत के बाद पूरा समुदाय एक सप्ताह तक भूखा रहता है।
किन्नर समुदाय में गुरू शिष्य परम्परा आज भी यथावत बनी हुई है। किन्नर समुदाय के सदस्य स्वयं को मंगल मुखी कहते है क्योंकि ये सिर्फ मांगलिक कार्यो में ही हिस्सा लेते हैं मातम में नहीं ।
किन्नर समाज कि सबसे बड़ी विशेषता है मरने के बाद यह मातम नहीं मनाते हैं। किन्नर समाज में मान्यता है कि मरने के बाद इस नर्क रूपी जीवन से छुटकारा मिल जाता है। इसीलिए मरने के बाद हम खुशी मानते हैं। ये लोग स्वंय के पैसो से कई दान कार्य भी करवाते है ताकि पुन: उन्हें इस रूप में पैदा ना होना पड़े।
देश में हर साल किन्नरों की संख्या में 40-50 हजार की वृद्धि होती है। देशभर के तमाम किन्नरों में से 90 फीसद ऐसे होते हैं जिन्हें बनाया जाता है। समय के साथ किन्नर बिरादरी में वो लोग भी शामिल होते चले गए जो जनाना भाव रखते हैं।
किन्नरों की दुनिया का एक खौफनाक सच यह भी है कि यह समाज ऐसे लड़कों की तलाश में रहता है जो खूबसूरत हो, जिसकी चाल-ढाल थोड़ी कोमल हो और जो ऊंचा उठने के ख्वाब देखता हो। यह समुदाय उससे नजदीकी बढ़ाता है और फिर समय आते ही उसे बधिया कर दिया जाता है। बधिया, यानी उसके शरीर के हिस्से के उस अंग को काट देना, जिसके बाद वह कभी लड़का नहीं रहता।
अब देश में मौजूद पचास लाख से भी ज्यादा किन्नरों को तीसरे दर्जे में शामिल कर लिया गया है। अपने इस हक के लिए किन्नर बिरादरी वर्षों से लड़ाई लड़ रही थी। 1871 से पहले तक भारत में किन्नरों को ट्रांसजेंडर का अधिकार मिला हुआ था। मगर 1871 में अंग्रेजों ने किन्नरों को क्रिमिनल ट्राइब्स यानी जरायमपेशा जनजाति की श्रेणी में डाल दिया था। बाद में आजाद हिंदुस्तान का जब नया संविधान बना तो 1951 में किन्नरों को क्रिमिनल ट्राइब्स से निकाल दिया गया। मगर उन्हें उनका हक तब भी नहीं मिला था।
आमतौर पर सिंहस्थ में 13 अखाड़े शामिल होते हैं, लेकिन इस बार एक नया अखाड़ा और बना है। ये अखाड़ा है किन्नर अखाड़ा। किन्नर अखाड़े को लेकर समय-समय पर विवाद होते रहे हैं। इस अखाड़े का मुख्य उद्देश्य किन्नरों को भी समाज में समानता का अधिकार दिलवाना है।
किन्नर अपने आराध्य देव अरावन से साल में एक बार विवाह करते है। हालांकि यह विवाह मात्र एक दिन के लिए होता है। अगले दिन अरावन देवता की मौत के साथ ही उनका वैवाहिक जीवन खत्म हो जाता है।