योगी के दिल में धड़कती है अयोध्या, सीएम उस मठ से हैं जिसने अयोध्या को मुद्दा बनाया

Update: 2018-11-04 10:30 GMT

लखनऊ : अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर राजनीति उफान पर है। अध्यादेश की मांग, संतों का आंदोलन और प्राइवेट बिल के बीच अब यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि भगवान राम के नाम पर इस बार एक दीया जलाइए। वहां काम जल्द शुरू होगा। उन्होंने कहा, दिवाली के बाद इस पर काम शुरू हो जाएगा। योगी ने राजस्थान के बीकानेर में ये बयान शनिवार को दिया।

वहीं बीजेपी महासचिव राम माधव ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर कहा कि यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि 1992 से पहले जैसी ही परिस्थितियां फिर से उत्पन्न हो रही हैं। उस समय भी राम मंदिर के मामले पर देर की जा रही थी। वहीं, अब फिर से इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट उसी प्रकार की देरी कर रहा है।

माधव ने कहा कि 29 अक्टूबर से राम मंदिर निर्माण पर सुनवाई की बात सुप्रीम कोर्ट ने खुद ही कही थी। फिर कोर्ट ने ही अब कहा कि तीन महीने बाद इस मामले की सुनवाई होगी. उन्होंने कहा कि देशभर के हिंदू समाज और राम मंदिर से जुड़े सभी लोगों में इस मुद्दे को लेकर चिंता व्याप्त है। इसलिए अध्यादेश लाने में जुटे केंद्र सरकार।

ऐसे में जानिए उस गोरखनाथ मंदिर के बारे में जिसके महंत है योगी और उसका अयोध्या से रिश्ता....

गोरखपुर बाबा गोरखनाथ की धरती। गोरखपुर सीएम योगी आदित्यनाथ का अपना शहर। गोरखपुर बाहुबल का अखाड़ा। आप अपनी सुविधा के लिए इनमें से किसी एक पहचान को अपना सकते हैं। लेकिन हम आपको जो बताने वाले हैं वो सिर्फ राजनीति से जुड़ी बातें नहीं हैं बल्कि ये इतिहास है गोरखपुर का।

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साल 1894 देश पराधीन था। बेडियों में जकड़ा हुआ। इसी साल राजस्थान के उदयपुर में एक ठाकुर परिवार में बच्चा जन्म लेता है। बच्चे का नाम मां-बाप बड़े प्यार से रखते हैं नन्हू सिंह। लेकिन नन्हू 8 साल का ही था जब उसके सिर से मां-बाप का साया उठ जाता है। चाचा नन्हू को नाथ संप्रदाय के योगी फूलनाथ के हवाले कर देते हैं। नन्हू वहां से गोरखनाथ मठ पहुंच जाता है। यहीं गोरखपुर के सेंट ऐंड्र्यूज कॉलेज में उसकी पढाई चलने लगती है। इसी बीच आता है साल 1920 और तब राजनीति में एंट्री मारता है 26 साल का युवक दिग्विजयनाथ। यही हमारा नन्हू है जो अब युवा है। कांग्रेस का हिस्सा है और 1922 के असहयोग आंदोलन में जिले का हीरो भी है।

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इसी बीच 5 फरवरी 1922 में चौरी-चौरा कांड होता है। इस कांड के बारे में आपको पता ही होगा कि कैसे आंदोलनकारियों पर पुलिस फायर करती है और बदले में प्रदर्शनकारी थाने में आग लगा देते हैं। इस आगजनी में 23 पुलिसवालों के साथ 3 आम आदमी जिंदा जलकर मर जाते हैं। आरोप लगता है दिग्विजयनाथ पर और उसकी गिरफ्तारी होती है। जब इस घटना की जानकारी महात्मा गांधी को होती है तो वो असहयोग आंदोलन वापस ले लेते हैं। इससे दिग्विजयनाथ नाराज हो जाते हैं। वो 1937 में कांग्रेस को अलविदा कह हिंदू महासभा का दामन थाम लेते हैं। अपने आक्रामक तेवरों के चलते उन्हें यूनाइटेड प्रोविंस (अभी का यूपी) का अध्यक्ष बना दिया जाता है। लेकिन इससे पहले जो बड़ी घटना घटी वो ये थी कि गोरखनाथ मठ के महंत रहे बाबा ब्रह्मनाथ का देहावसान हो जाता है और 15 अगस्त 1935 को दिग्विजयनाथ गोरखनाथ मठ के महंत बन गए थे।

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और गोरखनाथ मठ चल पड़ा बड़ी ताकत बनने

महंत दिग्विजयनाथ का अंदाज अपने साथ के महंतों से अलहदा था। वो सिर्फ धर्म पर ही चर्चा नहीं करते थे। बल्कि राजनीति में भी मुखर छवि के साथ एक्टिव थे। लॉन टेनिस का आनंद लेते थे। उन्होंने मठ का विस्तार 52 एकड़ तक किया। उसे हिंदुत्व गढ़ बनाया। आजादी आने तक महात्मा गांधी के धुर विरोधी हो चुके थे।

जब गए जेल

30 जनवरी 1948 को गांधी की हत्या होती है। दिग्विजयनाथ को जेल जाना पड़ा। रिपोर्ट्स के मुताबिक गांधी की मौत के तीन दिन पहले दिग्विजयनाथ ने एक स्थान पर हिंदू महासभा के कार्यकर्ताओं को महात्मा की हत्या करने के लिए उकसाया था। लेकिन अगले 9 महीने बाद उन्हें जेल से रिहा कर दिया जाता है।

इसके बाद दिग्विजयनाथ को समझ में आया कि मठ को और स्वयं को और अधिक ताकतवर बनाया जाए। क्योंकि देश पर राज कर रही कांग्रेस उनके लिए खतरा बन सकती है। इसके लिए उन्हें मजबूत मुद्दे की जरुरत थी। जो उन्हें जनसमूह का नेतृत्व सौंप दे। जल्द ही उन्हें ये मिला भी।

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अयोध्या बनी मुद्दा

वर्ष 1949 में दिग्विजयनाथ ने अखिल भारतीय रामायण महासभा की सदस्यता ली। इसी महासभा ने उस समय बाबरी मस्जिद के सामने नौ दिवसीय रामचरितमानस पाठ का आयोजन किया था। नौवें दिन बाबरी मस्जिद के अंदर भगवान राम सीता की मूर्ति पहुंच गई। लोग कहते हैं ये काम दिग्विजयनाथ ने ही किया था।

इतना बड़ा काम करने का उन्हें ईनाम 1950 में मिला और दिग्विजयनाथ हिंदू महासभा के राष्ट्रीय महासचिव बना दिए गए।

1951 और वो पहला चुनाव

देश में पहले आम चुनाव हुए। उस समय गोरखपुर में चार लोकसभा सीटें थीं। वेस्ट, नॉर्थ, सेंट्रल और साउथ। दिग्विजयनाथ वेस्ट और साउथ से हिंदू महासभा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे। चुनाव चिह्न मिला घुड़सवार। लेकिन कोई भी सीट से जीत न सके। साउथ में दूसरे नंबर पर रहे और 25,678 मत मिले। कांग्रेस प्रत्याशी सिंहासन सिंह ने उन्हें 31,772 वोटों हराया। सिंहासन को वोट मिले 57,450।

मजेदार बात ये है कि दिग्विजयनाथ ने अपनी राजनीतिक पारी कांग्रेस से आरंभ की थी। जबकि सिंहासन ने हिंदू महासभा से।

एक शायर ने बनाया था त्रिकोण

साउथ गोरखपुर से सिंहासन सिंह और दिग्विजयनाथ के सामने रघुपत सहाय उर्फ फिराक गोरखपुरी भी मैदान में थे। इस चुनाव में उनकी जमानत तक जब्त हो गई। उनको सिर्फ 9,586 वोट मिले।

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अभी कुछ और भी बाकी है जनाब

महंत गोरखपुर वेस्ट से भी मैदान में थे। यहां तीसरे नंबर पर आए थे। कांग्रेस के रामशंकर लाल जीते। जबकि नॉर्थ में हरी शंकर प्रसाद तो सेंट्रल में पंडित दशरथ द्विवेदी जीते थे।

1962 में एक बार फिर दिग्विजयनाथ ने चुनावी मैदान में ताल ठोकी। इस चुनाव में गोरखपुर लोकसभा सीट अस्तित्व में आ चुकी थी। दिग्विजयनाथ इस बार 3260 वोटों से हारे और उन्हें हराया सिंहासन सिंह ने ही। उन्हें 68,258 वोट मिले। जबकि दिग्विजयनाथ को 64,998 वोट मिले।

सिंहासन का इंकार बना महंत के लिए प्रसाद

1967 में सिंहासन सिंह प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से इमरजेंसी को लेकर नाराज थे। इसलिए चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया। सिंहासन के मैदान से हटने के बाद महंत दिग्विजयनाथ की किस्मत का बंद ताला खुला। उन्हें 1,21,490 वोट मिले। जबकि कांग्रेस के एसएल सक्सेना 78,775 वोट लेकर दूसरे स्थान पर रहे। महंत को 42,715 वोटों से जीत मिली थी। ये पहली बार था जब गोरखपुर गोरखनाथ मठ के कब्जे में आया। 1969 में महंत दिग्विजयनाथ का देहावसान हो गया।

गोरखनाथ मठ के अगले महंत बने अवैद्यनाथ। 1970 में उपचुनाव हुआ तो चुनाव जीते सांसद बने। अवैद्यनाथ इससे पहले मनिराम सीट से तीन बार निर्दलीय विधायक का चुनाव जीत चुके थे। ये वर्ष थे 1962, 1967 और 1969।

1971 में गोरखपुर की सीट इंदिरा लहर में कांग्रेस के पाले में चली गई। महंत अवैद्यनाथ चुनाव हार गए। उनको 99,265 वोट मिले। जबकि कांग्रेस के नरसिंह नारायण पांडेय को 1,36,843 वोट मिले।

जब गोरखपुर लोकसभा सीट हाथ में नहीं रही तो महंत अवैद्यनाथ 1974 में मनिराम सीट से विधानसभा चुनाव लड़ें और जीते भी। 1977 में फिर चुनाव हुआ और महंत एक बार फिर विधायक बनें। इसके बाद महंत 1989 में लोकसभा चुनाव लड़े।

तबतक क्या हुआ गोरखपुर में

1977 में गोरखपुर के सांसद बने हरिकेश बहादुर कांग्रेस प्रत्याशी और सांसद नरसिंह नारायण पांडेय बुरी तरह हारे। हरिकेश को 2,38,635 वोट मिले तो पांडेय को 55,581 वोट मिले।

नए सांसद हरिकेश बहादुर 1980 में पाला बदल कांग्रेस में शामिल हो गए। 1980 का चुनाव वो कांग्रेस के टिकट पर लड़े और जीत गए। हरिकेश को 1,08,796 वोट मिले। 1984 के चुनाव में कांग्रेस के मदन पांडेय को 1,91,020 वोट मिले थे। जबकि हरिकेश को 94,420 वोट।

महंत रिटर्न्स

1984 में महंत ने श्रीरामजन्मभूमि यग्न समिति बनाई। रथ यात्रा निकली। देश राममय होने लगा। 1989 में चुनाव आए। हिंदू महासभा के टिकट पर चुनाव लड़े। अवैद्यनाथ को वोट मिले 1,93,821। दूसरे नंबर पर रहे जनता दल के रामपाल सिंह उन्हें मिले 1,47,984 वोट।

1996 के लोकसभा चुनाव में तो बाहुबली नेता और दो बार विधायक रहे वीरेंद्र शाही अवैद्यनाथ के खिलाफ चुनाव मैदान में उतर गए। समाजवादी पार्टी के टिकट पर। इस बार अवैद्यनाथ बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े थे। अवैद्यनाथ को 2,36,369 वोट मिले। जबकि वीरेंद्र शाही को 1,79,489 वोट।

अब आया ‘एंग्री यंग मैन’ योगी

बूढ़े हो चुके महंत को अपने उत्तराधिकारी की तलाश थी। 1994 में अवैद्यनाथ की ये खोज पूरी हो चुकी थी। 1990 में रामजन्मभूमि आंदोलन के समय उन्हें एक लड़का मिला अजय मोहन बिष्ट। जो आज यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ हैं।

एक प्रदर्शन के दौरान योगी एसएसपी आवास की दीवार पर चढ़ गए। जमकर बवाल हुआ और गोरखपुर की राजनीति में ‘एंग्री यंग मैन’ योगी की एंट्री हुई। इसके बाद योगी और उनके तेवर लोगों के दिलोदिमाग पर हावी होने लगे वो सबके और सब उनके हो गए।

वर्ष 1998 के चुनाव में महंत अवैद्यनाथ ने योगी को गोरखपुर लोकसभा से मैदान में उतार दिया। 26 साल की उम्र में ही वो सांसद बन गए थे। सपा के जमुना प्रसाद निषाद को 2,42,222 वोट मिले। जबकि योगी को 2,68,428 वोट मिले। 1999 के लोकसभा चुनाव में योगी को मिले थे 2,67,382 वोट। जमुना को मिले थे 2,60,043 वोट।

पैदा हुई हिंदू युवा वाहिनी

कम होते वोटों ने योगी को हिला कर रख दिया था। इस से निपटने के लिए योगी हिंदू युवा वाहिनी का गठन किया। इसका काम था हिंदू विरोधी, राष्ट्र विरोधी और माओवादी विरोधी गतिविधियों’ को नियंत्रित करना या ये कहा जाए कि योगी को ताकत देना तो अधिक सही रहेगा।

हिंदू युवा वाहिनी ने न सिर्फ गोरखपुर बल्कि देवरिया, महाराजगंज, कुशीनगर, सिद्धार्थनगर से लेकर मउ, आज़मगढ़ तक योगी को मजबूती दी। इसका फायदा ये रहा कि गोरखपुर में योगी की जीत का अंतर बढ़ने लगा। 2004 के चुनाव में इंडिया शाइनिंग डूबा लेकिन योगी आदित्यनाथ 1,42,039 वोटों से जीते। उन्हें 3,53,647 वोट मिले। वहीं तीसरी बार मैदान में आए जमुना को 2,11,608 वोट मिले। 2009 के चुनाव में योगी 2,20,271 मतों से जीते। इस बार उनके सामने थे विनय शंकर तिवारी। बाहुबली हरिशंकर तिवारी के बेटे। लेकिन इस बार भी योगी को 4,03,156 वोट मिले तो विनय को 1,82,885 वोट। 2014 के लोकसभा चुनाव में वह तीन लाख से भी अधिक वोटों से जीते।

2017 के विधानसभा चुनाव के बाद योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के सीएम हैं। बाकी तो सब आपको पता ही है।

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