वाराणसी: शहर से लगभग 29 किमी दूर मार्कंडेय महादेव धाम मंदिर में दो दिन की शिवरात्रि मनाई जाती है। गंगा-गोमती के संगम पर कैथी गांव में स्थित इस मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। मान्यता है कि यहां दर्शन-पूजन करने से संतान की प्राप्ति जरूर होती है। इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी है।
क्या है इस मंदिर की दिलचस्प कहानी
पास के ही कैथी गांव में रहने वाले समाजसेवी वल्लभाचार्य पाण्डेय बताते हैं कि यह मंदिर प्राचीन है। कहा जाता है कि मृकण्ड ऋषि तथा उनकी पत्नि मरन्धती के कोई संतान नहीं थी। वे सीतापुर के नैमिषारण्य, में तपस्या कर रहे थे। उनके आस-पास वहां और ऋषि मुनि भी तपस्यारत थे। ये ऋषि-मुनि मृकण्ड ऋषि को देखकर अक्सर ताना मारते थे कि- "बिना पुत्रो गति नाश्ति" यानी कि "बिना पुत्र के गति नहीं होती।"
उनका यह ताना सुनकर मृकण्ड ऋषि को बहुत ग्लानी होती थी। वे पुत्र प्राप्ति की कामना के साथ सीतापुर छोड़कर विंध्याचल चले आए। वहां इन्होंने घोर तपस्या प्रारम्भ की। इनकी साधना से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का रास्ता बताया कि हमारी लेखनी को मिटाने वाले सिर्फ एक मात्र भगवान शंकर हैं। आप शंकर जी की उपासना कर उन्हें प्रसन्न करके पुत्र प्राप्त कर सकते हैं। इस बात से प्रसन्न होकर मृकण्ड ऋषि गंगा-गोमती के संगम तपोवन 'कैथी' जाकर भगवान शंकर की घोर उपासना में लीन हो गए।
भगवान शंकर ने दिया सशर्त वरदान
भगवान शंकर ने ऋषि मृकंद की तपस्या से खुश होकर उन्हें दर्शन दिया और वर मांगने के लिए कहा। मृकण्ड ऋषि ने भगवान से कहा कि भगवान मेरा परिवार चलाने के लिए मुझे एक पुत्र का वरदान दें। इस पर भगवान शंकर ने पूछा कि अधिक आयु वाले अनेक गुणहीन पुत्र चाहिए या फिर मात्र सोलह साल की आयु वाला एक गुणवान बेटा। मृकंड ऋषि ने कहा कि उन्हें गुणवान पुत्र ही चाहिए।
बेटे से कम आयु की बात न छिपा सके ऋषि
समय आने पर मुनि के यहां मारकण्डेय नाम के बेटे का जन्म हुआ। समय बीतने के साथ बालक मारकण्डेय की कम आयु की चिन्ता मृकण्ड ऋषि को सताने लगी। दोनों दम्पत्ति दुःखी रहने लगे। मारकण्डेय से अपने माता-पिता का दुःख न देखा जाता। एक दिन उन्होंने अपनी मां- पिता से जिद कर पूछ ही लिया और मृकण्ड ऋषि को साड़ी बात बातानी पड़ी। मारकण्डेय समझ गए कि जब भगवान शंकर के आशिर्वाद से मैं पैदा हुआ हूं तो इस संकट में भी शंकर जी की ही शरण लेनी चाहिए।
मारकण्डेय ने भी कैथी में की तपस्या
मारकण्डेय गंगा-गोमती के संगम पर बैठकर घनघोर तपस्या करने लगे। इस बीच मारकण्डेय की आयु पूरी हो गई और यमराज ने मारकण्डेय को लेने के लिए अपने दूत को भेजा। भगवान शंकर की तपस्या में लीन बालक को देख यमदूत की हिम्मत न पड़ी। उसने जाकर यमराज को पूरी बात बताई। इस पर यमराज स्वयं बालक को लेन भैंसे पर सवार होकर आए। वहां पहुंचकर उन्होंने देखा कि भगवान शंकर और देवी पार्वती स्वयं मार्कंडेय की रक्षा के लिए वहां मौजूद थे। भगवान शंकर ने यमराज को चेताया कि चाहे संसार इधर से उधर हो जाए, सूर्य और चन्द्रमा बदल जाए, लेकिन मेरे परम भक्त मारकण्डेय का तुम कुछ अनिष्ट नहीं कर सकते। इस बालक की आयु काल की गणना मेरे अनुसार होगी। तब से गंगा-गोमती के तट पर बसा 'कैथी' गांव मारकण्डेय जी के नाम से मशहूर हो गया।
शिवरात्रि पर लगता है दो दिवसीय मेला
महाशिवरात्रि के पर्व पर यहां दो दिवसीय मेला लगता है पहले दिन शिव बारात के रूप में लाखों शिवभक्त दर्शन, पूजन करने पहुचते हैं, वहीं इसके अगले दिन मंगल गीत गायन करती लाखों महिलाएं पूजा करती हैं। यह दो दिनों की पूजा ही यहां की खासियत है। दुनिया में किसी अन्य शिवालय पर दो दिन तक शिवरात्रि का उत्सव नहीं मनाया जाता। हाल के वर्षों में देखा गया है कि यहां आने वाले दर्शनार्थियों की संख्या काशी विश्वनाथ मंदिर से भी अधिक होने लगी है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों के बराबर माना जाने वाले इस मंदिर में साल के दो महीने सावन और कार्तिक में मेला लगा रहता है, इसके अलावा हर महीने दोनों त्रयोदशी को मेला लगता है जिसमें लाखों दर्शनार्थी दूर-दूर से यहां दर्शन करने आते हैं।
इस बार भी हुई है विशेष व्यवस्था
दो दिवसीय महाशिवरात्रि मेले के अवसर पर मार्कंडेय महादेव धाम स्थल पर दूर दराज से दर्शनार्थियों का पहुंचना शुरू हो गया है। मेले में दुकाने सज गई हैं और दुकानदारों का आना जारी है। मेले में आने वाले बच्चों के मनोरंजन के लिए झूले, चरखी सज गयी है। पूर्वांचल के विभिन्न जिलों से सोमवार के सुबह गंगा स्नान कर भोले के दर्शन की कामना लिए भक्त कैथी पहुच रहे हैं।