कानपुर: मुगल शासक अकबर के जमाने से हिंदू-मुस्लिम एकता और गंगा-जमुनी तहजीब की कई मिसालें, इतिहास अपने आगोश में समेटे हुए है। आज भी ऐसे उदाहरण कम नहीं। कानपुर के डॉ. एस अहमद मियां पिछले कई सालों से अपने परिवार के साथ मिलजुल कर जन्माष्टमी का त्योहार बिलकुल उसी तरह मानते हैं, जैसे कोई हिंदू परिवार इस दिन उत्सव मनाता है।
कानपुर के बर्रा निवासी डॉ. एस. अहमद मियां के घर में गूंजती घंटियों की आवाज और उसके साथ "ओम जय जगदीश हरे .." आरती गान यह मंजर देख कर बड़े से बड़े सैयाद की आंखों में भी पानी आ जाएगा। जो पानी में शक्कर की तरह घुल चुकी इस संस्कृति को तोड़ने का सपना संजो लेते हैं।
कैसे मिली प्रेरणा
डॉ. अहमद बताते हैं कि बाराबंकी की मजार देवा शरीफ पर हिंदू और मुस्लिम एक साथ इबादत करते हैं। 26 साल पहले मैं अपनी पत्नी के साथ वहां गया था। मेरी मुलाकात एक वीके गुप्ता परिवार से हुई। हम दोनों एक दूसरे के विचारों से इतने प्रभावित हुए कि वो हिंदू परिवार मुहर्रम मनाने लगा और मैं जन्माष्टमी। तब से यह क्रम चला आ रहा है।
ऐसी है अहमद की सोच
डॉ. एस अहमद कहते हैं- ईश्वर और अल्लाह सबके हैं। धर्म की दीवार से भगवान को नहीं बांटना चाहिए। मैंने 26 साल पहले श्री कृष्ण जन्माष्टमी मनाने की शुरुआत की थी। डॉ. अहमद का कहना है कि जब देश के महापुरषों का जन्मदिन हिंदू और मुस्लिम एक साथ मना सकते हैं तो श्री कृष्ण का जन्मदिन मनाने में क्या परहेज?
विरोध की परवाह नहीं
हालांकि बहुत से कट्टरपंथियों ने डॉ. एस अहमद का विरोध भी किया। पर उन्हें इस बात की परवाह नहीं। अब डॉ. एस अहमद के सभी पड़ोसी भी उनकी इस श्रद्धा और जज्बे का एहतराम करते हैं। उनके साथ पूरी श्रद्धा के साथ श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाते हैं।
सजाते हैं झांकी
अहमद बड़े फक्र से कहते हैं- मेरी सजाई गई झांकी में श्री कृष्ण के इतने रूप होते हैं, जो शायद और किसी के घर में देखने को ना मिलें। डॉ. अहमद भी बड़े मनोयोग से श्री कृष्ण की मूर्तियों को किसी बच्चे की तरह सहेज कर रखते हैं।
भगवान श्री कृष्ण की कृपा
अहमद कहते हैं- भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से मेरे एक बेटे ने इंजीनियरिंग की है। वह इलेक्ट्रोनिक्स की शॉप चला रहा है। मुझे या मेरे परिवार को किसी तरह की दिक्कत नहीं है।