एडविना के लिए PM पद तक छोड़ने के लिए तैयार हो गए थे नेहरू

Update: 2016-04-25 08:28 GMT

लखनऊ. जवाहर लाल नेहरू और भारत में ब्रिटेन के आखिरी वायसरॉय लॉर्ड माउंटबेटन की पत्नी एडविना माउंटबेटन के रिश्तों को लेकर बीते वर्षों इंग्लैंड में बहस छिड़ी थी। बहस की शुरुआत एडविना की बेटी पामेला माउंटबेटेन ने खुद की। लॉर्ड माउंटबेटेन और उनकी पत्नी एडविना की बेटी पामेला हिक्स ने अपनी आत्मकथा 'डॉटर ऑफ एम्पायर' में नेहरू और अपनी मां के रिश्तों पर विस्तार से लिखा। वहीं स्टेनले वोलपर्ट ने अपनी किताब में दावा किया है कि नेहरू एडविना से दूर होने के बाद पीएम का पद छोड़ने का मन बना चुके थे।

इंग्लैंड जाकर बसने तक का मन बना चुके थे नेहरू

'नेहरू: ए ट्रिस्ट विद डेस्टिनी' में स्टेनले वोलपर्ट ने जिक्र किया है कि 1950 में एडविना 10 दिनों की यात्रा पर भारत पहुंचीं थीं। एडविना को सामने पाकर नेहरू बहुत खुश हुए और लंबे अंतराल के बाद मिलने पर वे भारत के पीएम की कुर्सी छोड़कर एडविना के साथ लॉर्ड माउंटबेटेन के घर इंग्लैंड के ब्रॉडलैंड्स चले जाने की इच्छा तक जाहिर कर बैठे। एडविना जब इंग्लैंड वापस जाने लगीं तो नेहरू ने अपनी बहन विजयलक्ष्मी पंडित से कहा कि वे प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़ने के बारे में गंभीरता से सोच रहे हैं।

सेक्सुअल नहीं, स्प्रिच्युअल था नेहरू और एडविना का रिश्ता

वहीं एडविना की बेटी पामेला के मुताबिक 'पंडित जी (नेहरू) के रूप में उन्हें एक आध्यात्मिकता और ज्ञान वाला साथी मिला था। पामेला को लगता है कि नेहरू और एडविना के बीच रिश्ता आध्यात्मिक था न कि सेक्सुअल। पामेला ने लिखा है, एडविना और नेहरू के पास इतना वक्त नहीं था कि वे किसी जिस्मानी रिश्ते में उलझें। दोनों की ज़िंदगी बेहद सार्वजनिक थी और वे बहुत मुश्किल से अकेले होते थे। भले ही एडविना की बेटी अपनी मां और नेहरू के रिश्ते को स्पिरिचुअल बताती हैं, लेकिन कई जानकार यह दावा करते हैं कि दोनों के बीच जिस्मानी रिश्ते भी थे।

एडविना की बेटी के पास हैं नेहरू के कई लव-लेटर

पामेला ने खुलासा किया था कि उनकी मां एडविना के पास नेहरू द्वारा लिखे गए पत्र इतने थे की उनसे सूटकेस भर गया था। पामेला के अनुसार इन पत्रों में लिखी बातों से पता चलता था कि दोनों एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे। पामेला ने बतया था कि भारत को आजादी मिलने के दस वर्ष बाद नेहरू ने एक पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने कहा था कि हम दोनों के बीच कुछ तो ऐसा था जो हम दोनों के बीच आकर्षण का कारण था, यही कारण हमें करीब ले आया था।

नेहरू को करना पड़ा था बचाव

बताया जाता है कि 1948 में लार्ड माउंटबेटन और एडविना के लंदन लौटने के बाद भी नेहरू और एडविना के प्यार में कमी नहीं आई। एडविना और नेहरू हर रोज एक दूसरे को पत्र लिखते रहे। हालांकि बाद में पत्रों को लिखने के बीच अंतराल आने लगा। लेकिन इन पत्रों में उन दोनों के बीच के प्यार की वही गहराई कायम रही। नेहरू भारत के प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाल रहे थे और उन पर बड़ी काम का बोझ बढ़ता गया। ऐसे में एडविना के पत्र उनके लिए 'स्ट्रेस बस्टर' का काम करते थे। एडविना नेहरू से मिलने वर्ष में एक बार दिल्ली जरूर आती थीं और कई दिनों तक ठहरा करती थीं। माना जाता है कि इसका असर नेहरू के काम-काज पर पड़ने लगा और लोगों में इस बात को लेकर चर्चा शुरू हो गई, लोगों ने चटखारे लेकर दोनों के संबंधों की चर्चा शुरू कर दी थी। मामला बढ़ते देख 1953 में नेहरू ने संसद में एडविना का बचाव तक किया।

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