एक मुस्लिम जो BJP का फाउंडर मेंबर था, आज हैप्पी बड्डे हैं...जानिए 30 बातें
नई दिल्ली : सिकंदर बख्त फाउंडर मेंबर थे बीजेपी के जी हां! सही पढ़ा है आपने। सिकंदर फाउंडर मेंबर थे उस बीजेपी के जिसका हर छोटा बड़ा नेता पानी पी पी कर मुस्लिमों के बारे में अनाप शनाप बोलता है। (अटल बिहारी को छोड़ कर) आज इन्हीं सिकंदर साब का हैप्पी बड्डे है।
ये भी देखें : UAE की 700 करोड़ की हेल्प नहीं लेगी मोदी सरकार, वजह मनमोहन हैं
ये भी देखें :राहुल जी, चचा नेहरू के समय से आजतक ‘National disaster’ सिर्फ एक जुमला है
जानिए सिकंदर के बारे में वो जो बहुत खास है
- 24 अगस्त 1918 में पैदा हुए थे सिकंदर। दिल्ली के एंग्लो-अरेबिक कॉलेज (अब जाकिर हुसैन कॉलेज) से पढ़ाई हुई।
- 1945 तक वो भारत सरकार के सप्लाई डिपार्टमेंट में क्लर्क थे।
- 1952 में सिकंदर कांग्रेस से एमसीडी इलेक्शन जीते।
- 1968 में वो दिल्ली इलेक्ट्रिक सप्लाई अंडरटेकिंग के चेयरमैन चुने गए।
- 1969 में जब कांग्रेस का बंटवारा हुआ तो सिकंदर कांग्रेस (ओ) के हो लिए। इससे इंदिरा समर्थक उनसे नाराज बेहद नाराज हो गए।
- 25 जून 1975 को देश में इमरजेंसी घोषित हुई सिकंदर को जेल में डाल दिए गए।
- दिसंबर 1976 तक सिकंदर रोहतक जेल में रहे।
- इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी का गठन हुआ। सिकंदर ने जपा के सदस्य बन चुके थे।
- 1977 में चांदनी चौक से लोस इलेक्शन जीते मोरारजी देसाई की सरकार बनी तो सिकंदर बख्त मिनिस्टर बने।
- सिकंदर 1979 तक मंत्री रहे।
- इमरजेंसी में सिकंदर अटल बिहारी वाजपेयी के नजदीक आए और कब जिगरी बन गए पता ही नहीं चला।
- 1980 में जनता पार्टी से कुछ नेताओं ने अलग होकर बीजेपी का गठन किया तो सिकंदर बख्त अटल के साथ बीजेपी में शामिल हुए और पार्टी महासचिव का पद भी मिला।
- 1984 में सिकंदर को पार्टी उपाध्यक्ष बनाया गया।
- 1990 में सिकंदर मध्य प्रदेश से राज्यसभा सांसद बने।
- 1992 में राज्यसभा में नेता विपक्ष चुने गए।
- 1996 में फिर राज्य सभा सांसद बने।
- 1996 में जब बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए सरकार बनी सिकंदर को पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने शहरी मामलों का मंत्री पद ऑफर किया। लेकिन बख्त को ये मंजूर नहीं था।
- 24 मई 1996 को सिकंदर को विदेश मंत्रालय का अतिरिक्त कार्यभार दिया गया। लेकिन सरकार 13 दिन बाद गिर गई।
- बख्त हफ्ते भर के विदेश मंत्री बन कर रह पाए।
- सिकंदर फिर से राज्यसभा में नेता विपक्ष बनाए गए।
- 2000 में उन्हें पद्म विभूषण से नवाजा गया।
- 9 अप्रैल 2002 को सिकंदर ने राज्य सभा का कार्यकाल पूरा किया। उसके ठीक 9 दिन बाद ही उन्हें केरल का राज्यपाल बना दिया गया।
- 83 वर्ष और 237 दिन की आयु में किसी अहिंदी भाषी राज्य के वे पहले राज्यपाल थे।
- 23 फरवरी 2004 को तिरुवनंतपुरम मेडिकल कॉलेज में उनका देहांत हो गया। वो पहले राज्यपाल थे, जिनका राज्यपाल रहने के दौरान देहांत हुआ।
- आरोप लगा कि अनदेखी के चलते उनका निधन हुआ।
- सीएम एके एंटनी ने जांच के आदेश दिए, लेकिन ऐसा कुछ साबित नहीं हो सका।
- फाउंडर मेंबर होने के बाद भी उन्हें कभी पार्टी प्रेसिडेंट नहीं बनाया गया।
- हमेशा बीजेपी ने उन्हें कम महत्वपूर्ण पद ही दिए लेकिन सिकंदर को विरोध जाताना आता था और वो अपनी नाराजगी जाहिर भी कर देते थे।
- आरएसएस को कभी भी सिकंदर पसंद नहीं थे। जून 1952 में ऑर्गनाइजर ने सिकंदर बख्त पर एक भद्दी स्टोरी लिखी जिसमें उनपर जमकर किचड़ उछाला गया। लेकिन उन्होंने कभी भी इसका जवाब नहीं दिया।
- राजनैतिक जीवन में उन्होंने वही किया जो अटल ने कहा। लेकिन अटल से जब उनके मतभेद होते तो यही दोनों नेता मिल बैठ उसे निपटाते। किसी तीसरे को दखल देने की अनुमति नहीं थी। बीजेपी में आजतक अटल और सिकंदर से अधिक कोई भी नेता लोकप्रिय नहीं हुआ।