कारगिल विजय दिवस: शहीद जवान की कहानी, सदमे में मां की मौत, पत्नी से बोला था ये बात...
लखनऊ: 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जा रहा है। कारगिल वॉर में फतेह मिले 19 साल हो चुके हैं, लेकिन उस जंग में शहीद हुए केवलानंद द्विवेदी की पत्नी के लिए जैसे कल की ही बात है। उन्होंने अपने हसबैंड से जुड़ी यादें शेयर कीं।
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9 साल की शादी में कुल 4 बार आए घर
कमला देवी बताती हैं, ''मेरी उनसे शादी 1990 में हुई थी। मैं महज 20 साल की थी और वो 22 साल के। हर लड़की की तरह मेरे भी अरमान थे कि पति के साथ दुनिया देखूं, लेकिन ऐसा कभी हो नहीं पाया।'' उन्हें छुट्टियां बहुत कम मिलती थीं। शादी के बाद वे कुल चार बार घर आए थे। फिर उनके शहीद होने की खबर ही आई। हमें एकदूसरे के साथ टाइम बिताने का मौका ही नहीं मिला।"
ये थे उनके अंतिम शब्द
कमला ने बताया, ''30 मई 1999 की सुबह अचानक मेरा फोन बजा। उठाकर देखा तो इनका फोन आ रहा था। मैं डर गई, कहीं कुछ हो तो नहीं गया। फोन उठाया तो इनकी आवाज सुनकर सुकून मिला। पहले हालचाल पूछा, फिर ये बोले- सुनो, मुझे कारगिल वॉर के लिए भेजा जा रहा है। अपना और दोनों बेटों का ख्याल रखना। यह कहते हुए उन्होंने फोन रख दिया। मेरी उनसे वो आखिरी बातचीत थी।"
"6 जून 1999 को फिर से उनका फोन आया। इस बार मेरे ससुर ने रिसीव किया। फोन का रिसीवर पकड़े हुए अचानक उनका हाथ कांपने लगा। उनके चेहरे की रंगत उड़ गई थी। मैंने डरते हुए पूछा- पिताजी क्या कहा उन्होंने, कब वापस आ रहे हैं। वो बोले- बेटा केवल नहीं रहा। वो जंग लड़ते हुए शहीद हो गया।"
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सदमे ने ली मां की जान
कमल बताती हैं, "इनकी शहादत की खबर सुनकर पूरा परिवार सदमे में था। मेरी सास अचानक से बीमार पड़ गईं। बीमारी में भी वो इनका नाम जपा करती थीं। उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट करवाया, लेकिन कुछ दिन बाद ही उन्होंने प्राण त्याग दिए।" केवलानंद द्विवेदी का जन्म 12 जून 1968 को पिथौरागढ़ में हुआ। दो भाइयों में वे बड़े थे। पिता ब्रह्मदत्त द्विवेदी आर्मी में सुबेदार थे। वे दोनों बेटों को आर्मी में भेजना चाहता थे, लेकिन सिर्फ केवलानंद ही उनके सपने को पूरा कर पाए।
अब ऐसी है फैमिली लाइफ
कमला बताती हैं, "मेरा बड़ा बेटा हेमचन्द्र एमबीए और छोटा तीरथ एमसीए की पढ़ाई कर रहा है। ससुर हमारे साथ ही रहते है। मेरी ख्वाहिश है कि मेरे दोनों बच्चे अपने पिता की तरह देश का नाम रोशन करें।"